न्यूज स्टेट चैनल के एक रिपोर्टर ने लंबा चौड़ा खत लेकर चैनल को गुडबाय कह दिया है. ये रिपोर्टर छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर-सरगुजा जिले के हैं. नाम है मनीष कुमार उर्फ मनीष सोनी.
मनीष का पत्र अपने आप में दस्तावेज है. ये दस्तावेज आज के जिले जिले में मौजूद हजारों हजार स्ट्रिंगर्स की पीड़ा, आकांक्षा, इच्छा, जज्बात, सोच, संवेदना का प्रकटीकरण है.
मनीष का पत्र हर किसी को पढ़ना चाहिए और कई बार पढ़ना चाहिए. नोएडा, दिल्ली, भोपाल, रायपुर, लखनऊ में बैठे बड़े पत्रकारों से उम्मीद की जाती है कि वे ये पत्र पढ़कर अपने स्ट्रिंगर्स से कम से कम अच्छे से बात करेंगे. उनकी पीड़ा को समझेंगे. उनके हक के लिए आफिस के अंदर दो बोल बोलेंगे.
मनीष के पत्र में न्यूज स्टेट चैनल के वरिष्ठों पर कई गंभीर आरोप भी हैं. संभव है न्यूज स्टेट प्रबंधन अब पत्रकारिता की जगह पैसाकारिता में लीन हो इसलिए रिपोर्टरों-स्ट्रिंगरों को मनी मशीन में कनवर्ट करने की कोशिश की जा रही है. तभी तो न्यूज स्टेट चैनल का मध्य प्रदेश के पन्ना का रिपोर्टर अपने चैनल के वरिष्ठों के लिए पैसे मांगता आडियो में धरा गया.
एक के बाद एक हो रहे घटनाक्रम से न्यूज स्टेट चैनल की साख धड़ाम हुई है. साख बनाने में वक्त लगता है पर धड़ाम करने में बहुत थोड़े वक्त की जरूरत होती है.
वैसे, आजकल के बाजारू दौर में बड़े लोग साख की सोचते कहां हैं. उन्हें तो पैसे चाहिए होते हैं, पद चाहिए होते हैं, एलीट लाइफस्टाइल चाहिए होती है.
जिनके अंदर पत्रकार की आत्मा जिंदा होगी, वो मनीष के इस पत्र को पढ़कर जरूर थोड़ी देर सोचेंगे-विचारेंगे.
पढ़िए मनीष कुमार उर्फ मनीष सोनी का पत्र-
न्यूज़ स्टेट में अब तक का साथ बढ़िया रहा, आप सभी का शुक्रिया।
भूमिका मैडम, आपका सहयोग विशेष रूप से स्ट्रिंगर्स को मिलता रहा, इसलिए आपका विशेष धन्यवाद।
मैंने अवैध रेत उत्खनन पर ख़बर की। आपने No Need कह दिया। कोई बात नहीं। आपके चैनल की पॉलिसी है। हम कुछ नहीं कर सकते।
पर मेरी बात भी आप और ग्रुप में मौजूद सभी समझें और विचार करें-
बात यदि नियम क़ानून/पॉलिसी की है तो…
1- आपके एग्रीमेंट के हिसाब से स्ट्रिंगर को ख़बरों के बदले में कितनी राशि देने की बात थी, याद करें!
2- आप कहते हैं स्ट्रिंगर पहले अप्रूवल लें। आपके यहाँ से कितने ख़बरों का अप्रूवल मिलता है?
ये स्टोरी पर निर्भर करता है कि हम पहले अप्रूवल लें या सीधे कवरेज करने जाएं. इसलिए इस नियम का कोई औचित्य नहीं क्योंकि हम लोकल में जनता की नजऱ में पत्रकार हैं, हमे न्यूज़ बनाना ही है। उसके बाद आप किस फार्मेट में अप्रूवल देते हैं, ये सोचिये… ज्यादातर मेल पर जवाब आता है OK AS AVB.
3- बड़ी से बड़ी खबरें भेज कर देख चुके। फोनो तक नहीं होना है। फोनो होगा तो रायपुर से नामदेव जी का या नामदेव जी के हस्तक्षेप के बाद हमारा।
4-आज तक जिसे मिला वो जाने। मुझे न तो आई कार्ड मिला न तो PRO लेटर (जिसकी मुझे कतई ज़रूरत नहीं) पर आपके यहाँ कोई ऐसा बन्दा नहीं कि छोटे छोटे जिलों में काम कर रहे स्ट्रिंगर की वो बड़ी ज़रूरत पर ध्यान देकर उन्हें कुरियर करा सके, क्योंकि उन्हें इसकी जरूरत होती है।
5- आप के मुताबिक खबरें जिलों से छूट रही हैं। अच्छी बात है कि आप लोगों ने कभी ज़्यादा परेशान नहीं किया पर सवाल है कि न्यूज़ के लिए आप डिमांड करेंगे भी तो किस मुंह से? आपके पास देने लिए पैसे तो हैं नहीं।
6- जनसाधारण के लिए, प्रशासन के लिए हम पत्रकार हैं। खबर कोई भी हो, जाना तो पड़ता है। पर खबरें यदि जनहित में हों, समाज से जिसका सरोकार हो, उनके हक़ अधिकार की हो तो ख़बरें दिखनी भी चाहिए… ऐसा मुझे लगता है। पर हम ख़बर बना कर आ जाएं ,आप मेल पर ‘नो नीड’ कर दें… तो पत्रकार की विश्वसनीयता पर भी सवाल खड़ा हो जाता है … जिनकी खबर है वो यही सोचता है कि पत्रकार कैमरा चमकाकर चला गया …ले दे कर निपट लिया होगा… क्योंकि खबर तो चली/दिखी ही नहीं।
7-मैं नहीं जानता कि इस ग्रुप में मौजूद तमाम स्ट्रिंगर रेत माफ़ियायों के ख़िलाफ़ ख़बर करते हैं या नहीं या किस उद्देश्य से करते हैं।
पर भूमिका जी आपकी ये कही बात मुझे रात भर परेशान करती रही… आपने कहा कि मुझे पता है कि लोकल स्ट्रिंगर्स रेत उत्खन्न की ख़बर क्यों करने जाते हैं?
लानत है ऐसी पत्रकारिता पर कि किसी गाँव के सैकड़ों ग्रामीण किसी रेत माफ़िया के कारण डर- डर के जी रहे हैं, उनके बच्चे नदियों में जाने से डर रहें हैं और कोई भयादोहन कर रकम वसूली कर ले।
पर आप ज़्यादा अनुभवी हैं… मैं भी जानता हूँ कि ऐसा भी होता है।
पर एक ही तराजू में सबको तौलने की कोशिश न करें बेहतर होगा।
यहां यह भी समझना जरूरी है कि जो पत्रकार बनने की चाह में इंटर्नशिप करने आपके ऑफिस में काम कर रहा, असाइनमेंट देख रहा है, उन्हें या फिर चैनल के स्ट्रिंगर यदि वे सोचते हैं कि वो पत्रकारिता कर रहे हैं तो वे ग़लत हैं।
सरकार की दलाली सीखने से बेहतर है हम स्वतंत्र पत्रकारिता करके अपनी पहचान बनाएं।
ऐसा नहीं कि चैनल को सरकारी पैकेज मिला और स्ट्रिंगर्स को फ़ील्ड में दौड़ा दिए। सच को झूठ और झूठ को सच बताने स्ट्रिंगर को हिदायत दे दिए।
ये कम से कम मेरे जैसा पत्रकार तो नहीं करेगा। मेरा ज़मीर मरा नहीं है अभी।
भ्रष्ट व्यवस्था से लड़ने की मेरी आदत रही है, जेल जाने से डरता नहीं, काम के आगे किसी को समझता नहीं।
17 सालों में एक बात जानता हूँ कि कभी भी भयादोहन कर किसी ग़रीब और लाचार को नहीं सताया बल्कि मदद किया।
पैसे कमाने के और भी रास्ते हैं जिससे मेरा भी काम चलता है। आपको बताता चलूं कि आपके चैनल की आईडी से मेरी पहचान नहीं है।
आपकी मानसिकता ने यह साफ कर दिया है कि सारे स्ट्रिंगर लुटेरे और वसूलीबाज हैं… रेत माफ़ियाओं या कोई भी उल जुलूल ख़बरों से उन्हें पर्याप्त आमदनी हो जाती है।
आपकी सोच जैसी सोच ही चैनलों में बैठे लगभग सभी लोगों की है क्योंकि आपकी ऐसी सोच के लिए ही तो आप लोग लाखों तनख्वाह ले रही हैं।
इसलिए न्यूज़ स्टेट तो क्या कोई भी चैनल पैसा नहीं देना चाहता।
आपकी ये बात सारे स्ट्रिंगर्स को समझनी चाहिए और मुझे लगता है उनका ज़मीर जिंदा हो तो आपके इस बात का उन्हें विरोध भी करना चाहिए।
ऐसी संस्था में मेरे जैसा पत्रकार काम करने की नहीं सोच सकता।
सड़क पर चाय बेच सकता हूँ पर अपना ईमान बेचकर सरकार की गलत नीतियों पर वाहवाही करने और ग़लत को सही कह कर जनता के सामने झूठ नहीं परोस सकता।
जो ख़बर मैं बनाता हूं वो निष्पक्ष journalism करने वाले कई अलग अलग प्लेटफॉर्म पर चलती है जो मुझे आत्मीय शांति देती है। व्यवस्था सुधार नहीं सकता पर व्यवस्था सुधार की कोशिश करने वालों में नाम रहेगा, ये मुझे पता है।
लाखों की सैलरी लेकर आप लोग यदि स्ट्रिंगर्स के लिए इतना ही पैरवी करतीं कि सभी को कम से कम पेट्रोल, मोबाईल का ख़र्च चैनल से मिल जाये तो आज पत्रकारिता जिंदा होती।
पर हर किसी को सिर्फ़ अपनी पड़ी है। कभी अंतरात्मा की आवाज़ सुनिए, समझिए कि आप क्या कर रहे हैं? एक स्ट्रिंगर्स यदि किसी पुलिसिया कार्रवाई में फँस जाए तो कोई चैनल नहीं जो अपने स्ट्रिंगर्स की मदद के लिए सामने आए। सब पल्ला झाड़ लेते हैं।
स्ट्रिंगर्स से मुफ़्त में काम लेने और सरकार के ग़लत नीतियों का गुणगान कर, देश और समाज को धोखा देकर मिलने वाले सैलरी से अपने बच्चे की परवरिश करना हर किसी से नहीं हो पाता।
आपको मुबारक।
मनीष कुमार
(मनीष कुमार उर्फ मनीष सोनी से संपर्क उनके मोबाइल नंबर 9303138030 या मेल [email protected] के जरिए किया जा सकता है)
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R N Agarwal
June 9, 2020 at 8:43 pm
मनीष सोनी भाई, ये केवल आपका दर्द नहीं है। यहां पूरे कुएं में भांग पड़ी है। जिन्हें मीडिया हाउस स्ट्रिंगर का दर्जा देकर दोयम दर्जे का बर्ताव करते हैं, उनके बिना एक दिन भी चैनल की प्रोग्रामिंग करके दिखा दें तो मैं मान जाऊंगा कि चैनल के लिए स्ट्रिंगर नाम का जीव आवश्यक वस्तु नहीं है।
Manish Kumar
June 14, 2020 at 1:20 pm
ग़लती हम ही करते हैं और उसे दोहराने हमारे जैसे लोग ही आ जाते हैं।। फ्री में काम करने की लत लग गयी है क्या करिएगा। आपके ऊर्जा देने वाले संदेश के लिए शुक्रिया।