(मनीषा पांडेय)
Manisha Pandey : ये अनुराधा दीदी के बारे में नहीं है। दिलीप सर के बारे में है। आज वो मेरे बॉस नहीं हैं। निजी लेन-देन और ताकत का कोई रिश्ता हमारे बीच नहीं। इसलिए अब ये लिख सकती हूं। ये बातें पहले कभी कही नहीं। कभी लिखी नहीं। इसलिए नहीं कि इन बातों पर पहले मुझे विश्वास नहीं था, इसलिए क्योंकि जिस दुनिया में और जिन लोगों के बीच ये लिखा और पढ़ा जा रहा है, उस दुनिया पर, उन लोगों पर विश्वास नहीं था। आज भी नहीं है। मुझे बिलकुल यकीन नहीं कि ये दुनिया प्यार समझती है। मन समझती है। दुख समझती है। मुझे सचमुच यकीन नहीं कि बिना किसी निजी मतलब कि किसी के आगे आदर से नतमस्तक हो जाने का अर्थ ये दुनिया समझती है, कि लोगों का हृदय सबके लिए करुणा से भरा हुआ है। नहीं। ऐसा नहीं है। ऐसा नहीं था, इसलिए ये कभी कहा भी नहीं मैंने कि दिलीप सर मेरे जीवन के उन अपवाद लोगों में से हैं, जिन्हें देखकर, अनुराधा दीदी के साथ उनके रिश्ते को देखकर प्यार और रिश्तों पर यकीन करने को दिल चाहता है।
अनुराधा दीदी 17 सालों तक दवाइयों की खुराक पर नहीं, इसी प्यार की खुराक पर जिंदा रहीं। उनके होने की वजह सिर्फ और सिर्फ प्रेम ही थी। मुझे यकीन है कि जिस दुनिया में मैं रहती हूं, वहां लोग प्रेम करना नहीं जानते। इसलिए वो प्रेम को समझ भी नहीं पाते। समझ नहीं पाते क्योंकि प्रेम कोई कहने की बात नहीं। ये आपके अस्तित्व में घुली होती है। आपके होने में निहित। दिलीप सर जैसे रिजर्व और खुद को कभी भी एक्सप्रेस न करने वाले इंसान के भीतर की करुणा, हर बात को शब्दों में समझने वाले संसार को कभी समझ में नहीं आ सकती। दो साल उनके साथ काम करते हुए हमेशा ये महसूस हुाअ कि उनकी सारी ऊपरी कठोरता और आलोचना के भीतर कितनी करुणा छिपी है। ऑफिस में कोर्इ उनसे ज्यादा बात नहीं करता, वो भी नहीं करते। लेकिन उनकी मौजूदगी में ही प्यार था। बहुत सारा। सबके लिए।
जब उन्होंने इंडिया टुडे की नौकरी छोड़ी तो लोगों ने तरह-तरह की बातें कीं। कुछ मेरे कानों तक भी पहुंची। गलती उनकी भी नहीं है। वो समझ ही नहीं सकते कि कोई पुरुष एक स्त्री को इतना प्रेम कैसे कर सकता है कि आखिरी वक्त एक-एक पल उसके साथ बिताने के लिए सबकुछ छोड़ दे। दिल, दिमाग, देह से सिर्फ उसके साथ होना चाहे। कुछ और न सही तो बस उसका हाथ ही थामे बैठा रहे। मैं जिस दुनिया में रहती हूं, वहां लोग शादी करते हैं, सेक्स करते हैं, बच्चे पैदा करते हैं, पैसे कमाते हैं, साथ पहाड़ घूमने जाते हैं, लेकिन कभी हाथ नहीं थामते। किसी के दिल को सहेजकर नहीं रखते। मुझे यकीन है कि हर दुनियावी काम करने वाला इंसान भी हाथ थामना, दिल को सहेजकर रखना नहीं जानता। दिलीप सर जानते थे, जानते हैं।
संसार की क्रूरताओं का तो ये आलम है कि बाद में लोग कहने लगे कि दिलीप ने बड़ा त्याग किया। सचमुच? क्या ये त्याग है? इतनी निष्ठुरता के साथ कैसे जी लेते हो तुम सब? क्योंकि मेरा दिल कहता है कि ये त्याग नहीं है। त्याग कहकर उसकी गरिमा को धो डाला तुमने। त्याग होगा तुम्हारे लिए, क्योंकि तुम क्रूर हो। उनके लिए तो जीने का यही तरीका था। उन्होंने ये सोचकर नहीं किया कि कुछ बहुत बड़ा त्याग कर रहे हैं। उनके लिए ये फैसला वैसे ही था, जैसे पानी का बहना, जैसे हवा का चलना। बिलकुल सहज। जीने का सहज तरीका। बहुत साधारण, लेकिन उतना ही असाधारण। असाधारण लगता है, क्योंकि दुनिया साधारण सी भी नहीं है। किसी को सचमुच प्रेम कर सकने की अपनी सारी ताकत के साथ दिलीप सर असाधारण लगते हैं, लेकिन सच तो ये है कि वो सबसे साधारण इंसान हैं। बिलकुल वैसे, जैसा इंसान को होना चाहिए था। जैसा संसार को होना चाहिए था। लेकिन हुआ नहीं। अनुराधा दीदी की जिंदगी जितनी भी रही, हम सब स्त्रियों से बेहतर रही क्योंकि उनकी जिंदगी में प्रेम था। हम जिंदगी के 70-80 बरस भी, अगर जिए तो प्रेमविहीन संसार की प्रेमविहीन गलियों में बिता देंगे। प्रेम करने वाले बिरले ही होते हैं।
Manisha Pandey : खुद अनुराधा दीदी की तबीयत ठीक नहीं थी और वो मेरे मामूली सी अस्वस्थ हो जाने पर परेशान मेरा हाल पूछतीं। आखिरी बार उन्होंने मुझे ये मैसेज भेजा था और कहा था, तीन महीने ये करके देखो। स्वस्थ रहोगी।
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“यह तीन महीने के लिए योजना है। कुछ भी नया नहीं, पर करके देखो। अगर कोई फरक नहीं पड़े तो किसी बड़े अस्पताल में विशेषज्ञ को दिखाओ। मेफटॉल की जगह पैरासिटामोल से काम चले तो अच्छा, क्योंकि मेफटॉल के साइड-इफेक्ट में हाजमा गड़बड़ा जाता है।
1. सुबह-सुबह 3 गिलास पानी पियो
2. दो किलोमीटर दौड़ लगाओ
3. 15 मिनट शरीर के सब जोड़ खोलने के लिए हिलो-डुलो
4. रोज 15 मिनट धूप में रहो
5. रोज़ तीन तरह के फल, तीन तरह की सब्जियां खाओ
6. आलू का भुर्ता, आलू का झोल और आलू की भुजिया- ये एक ही सब्जी है। पालक, पत्ता गोभी टमामटर की मिली-जुली सब्जी का बड़ा कटोरा= तीन सब्जियां
7. रोज कम से कम 3 लीटर पानी
8. समोसा, ब्रेड पकोड़ा, बर्गर, चाऊमीन, दोसा, चाय कॉफी, हुक्का दारू से बिल्कुल दूर।
9. तकियों और मच्छरों से दूर।
10. रोज़ कम से कम 6 घंटे की नींद”
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मैंने हंसकर पूछा, अनु दी बाकी सब तो ठीक है, लेकिन तकिए से दूरी क्यों। मैं तो 3-4 तकिया लेकर सोती हूं। तो हंसकर बोलीं, “तकिए की जगह ब्वॉयफ्रेंड से काम चलाना पड़े तो अच्छा नहीं है क्या।”
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ये 17 सितंबर की बातचीत है। वक्त तेजी से नजदीक आ रहा था, लेकिन क्या मजाल कि उनकी हिम्मत को, उनकी हंसी को डिगा दे। इनबॉक्स में उनका आखिरी मैसेज है – Bye Bye. वो चली गईं और मेरे बिस्तर पर चारों तकिए वैसे ही उदास पड़े हुए हैं।
Manisha Pandey : अनुराधा दीदी ने 17 साल तक कैंसर के साथ सर्वाइव किया। आपको क्या लगता है, दवाइयों के कारण। नहीं। प्रेम के कारण। दिलीप जी का प्रेम ही उनकी जीवनी शक्ति थी।
Manisha Pandey : मैं जब अपने दुखों से हारने लगती तो अनुराधा दीदी के बारे में सोचती थी। उनकी किताब पढ़ती- एक कैंसर विजेता की डायरी। और सोचती, अगर कभी ऐसा हुआ कि उनकी जगह मैं हुई तो ऐसे ही लड़ पाऊंगी क्या। शायद नहीं। वो अनोखी ही थीं। जिंदगी से हर दिन लड़ती हुई और हर दिन जीतती हुई। कभी कहा नहीं उनसे कि दिल के किसी निजी कोने में कितना प्यार है उनके लिए। मन कैसे आदर से भर-भर आता है। कितनी अच्छी हैं आप, कितनी बहादुर, कितनी जीवट। कभी नहीं बताया और वो चली भी गईं। ऐसा अकसर नहीं होता कि कुछ कहने के लिए दुनिया का हर शब्द नाकाफी लगने लगे। क्यों आज कुछ वैसा ही लग रहा है।
इंडिया टुडे से जुड़ी चर्चित पत्रकार, ब्लागर और फेमनिस्ट मनीषा पांडेय के फेसबुक वॉल से.