हर्ष कुमार-
नवरात्र में मीट की दुकानें बंद कराने को लेकर हल्ला मचा हुआ है। हिंदू होने के नाते ये भावनाएं भी जायज हैं। लेकिन हकीकत यह है कि इस समय हिंदुओं में भी नानवेज खाने की प्रवृत्ति बेहद बढ़ी है।
इस ग्राफिक्स में आप देख सकते हैं कि देश की 70% आबादी मांसाहारी हो चुकी है। इसे एक फैशन की तरह देखा जा रहा है। आफिसों में रोजाना किसी ना किसी को चिकन की दावत के लिए एक दूसरे को आमंत्रित करते हुए देखता हूं। यही हाल रिश्तेदारों और मित्रों का है। दाल, सब्जी, रोटी को तो दावत में माना ही नहीं जाता।
मीट का दुकानें बंद कराने के लिए आतुर हिंदुओं से ये पूछना चाहूंगा कि आपके परिवार में कितने सदस्य नानवेज खाते हैं? अगर आप नहीं खाते तो ही दुकानें बंद कराने का शोर मचाएं नहीं तो चुप रहें।
अणु शक्ति सिंह-
मांसाहार को लेकर कुछ ज़रूरी फ़ैक्ट्स –
- मांसाहार भारतीयों के मौलिक अधिकार में शामिल है।
- 80% भारतीय हिंदू मांसाहारी हैं। 2018 की बीबीसी की एक खबर इस बात की तस्दीक करती है।
- किसी पर्व या त्योहार पर मांस दुकानों का बंद होना आम नागरिक के अधिकारों का हनन है।
- दशहरे में बलि प्रदान भारत की संस्कृति में शामिल रही है।
- मुंडन और उपनयन के मौक़ों पर भी देवी को बलि की प्रथा रही है।
- मछली को बिहार और बंगाल में शगुन माना जाता है। इसके बिना कोई भी शुभ कार्य सम्पन्न नहीं होता।
- बिहार में (मिथिला में) श्राद्ध के बाद मांस-मछली पकाने का विशेष आयोजन होता है।
- किसी प्रशासनिक संस्था के द्वारा लोगों के खान-पान को प्रभावित करने का निर्णय लेना घोर अलोकतांत्रिक है। यह नागरिक अधिकारों का जबरन हनन है।
- भारत धर्म-निरपेक्ष देश है। इस बात को बार-बार नोट कर लिया जाना चाहिए।
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