मैत्रेयी पुष्पा बनी हिंदी अकादमी की उपाध्यक्ष : अकादमिक चयन में केजरीवाल सरकार के कदम ज्यादा स्वीकार्य

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एक अच्छी और लोकप्रिय सरकार का काम है कि कम से कम अकादमिक संस्थाओं में काबिल और अविवादास्पद लोगों को बिठाए। इन पर कैडर को बिठा देने का मतलब होता है कि सरकार के पास योग्य व्यक्तियों का अकाल है। एनडीए की पूर्व अटल बिहारी सरकार इस मामले में खरी उतरी थी। अकादमिक संस्थाओं में दक्षिणपंथी विद्वान बिठाए जरूर गए थे मगर उनकी योग्यता पर कोई अंगुली नहीं उठी थी। पर मोदी सरकार के वक्त ऐसे लोग बिठा दिए गए हैं जो योग्यता में बौने तो हैं ही विवादास्पद भी हैं। 

यही कारण है कि चाहे वह इतिहास का मामला हो अथवा विज्ञान का सब जगह बौने बैठ गए हैं। हालांकि ऐसा नहीं है कि दक्षिणपंथी आरएसएस के विचारकों में विद्वानों और अविवादास्पद लोग न हों पर सरकार जब तय कर ले कि वह तो चुन-चुनकर भक्तों को ही बिठाएगी तो क्या कहा जा सकता है। इसी के बरक्स तुलना करिए दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल द्वारा हिंदी अकादमी के उपाध्यक्ष पद पर चर्चित व प्रतिष्ठित साहित्यकार मैत्रेयी पुष्पा (Maitreyi Pushpa) का चयन। 

यह चयन अधिक औचित्यपूर्ण व बुद्धिमत्ता का कदम है। मैत्रेयी जी न सिर्फ साहित्य की दुनिया में चर्चित नाम है वरन् समाजशास्त्रीय विश्लेषण में भी लाजवाब हैं। उनके सारे उपन्यास एक पूरी कथा ही नहीं पूरे समाज को व्याख्यायित भी करते हैं। चाक, अल्मा कबूतरी और ईसरी जैसे असंख्य अद्भुत और समाज व इतिहास का आईना दिखाने वाले उपन्यास लिखने वाली मैत्रेयी जी को बधाइयां।

शंभुनाथ शुक्ला के एफबी वॉल से



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