शीला चोर है, शीला बेईमान है, ये देखो, केजरी को शर्म नहीं आई

शीला चोर है. शीला को हम जेल भेजेंगे. शीला बेईमान है. इसी तरह के आरोप लगाये जाते थे. अब देखिये एक भ्रष्ट पूर्व मुख्यमंत्री के साथ हंसी-ठिठोली की जा रही है, साथ में स्वादिष्ट व्यंजनों का लुत्फ़ उठाया जा रहा है। 

हम नेता लोग एक होते हैं जी, दिल पर मत लेना जी

अब सब ठीक है जी. हम राजनीति करना सीख गए हैं जी. लड़ते भिड़ते हैं टीवी पर एफबी पर ट्विटर पर अखबार में लेकिन सिर्फ जनता को दिखाने रिझाने के लिए जी. बाकी तो जानते ही हैं जी कि हम नेता लोग एक होते हैं जी. दिल पर मत लेना जी. पार्टी शार्टी में तो बुलाना ही पड़ता है जी. योगेंद्र यादव प्रशांत भूषण को क्यों नहीं बुलाया जी? 

मैत्रेयी पुष्पा बनी हिंदी अकादमी की उपाध्यक्ष : अकादमिक चयन में केजरीवाल सरकार के कदम ज्यादा स्वीकार्य

एक अच्छी और लोकप्रिय सरकार का काम है कि कम से कम अकादमिक संस्थाओं में काबिल और अविवादास्पद लोगों को बिठाए। इन पर कैडर को बिठा देने का मतलब होता है कि सरकार के पास योग्य व्यक्तियों का अकाल है। एनडीए की पूर्व अटल बिहारी सरकार इस मामले में खरी उतरी थी। अकादमिक संस्थाओं में दक्षिणपंथी विद्वान बिठाए जरूर गए थे मगर उनकी योग्यता पर कोई अंगुली नहीं उठी थी। पर मोदी सरकार के वक्त ऐसे लोग बिठा दिए गए हैं जो योग्यता में बौने तो हैं ही विवादास्पद भी हैं। 

केजरी बनाम मीडिया बहस में थानवी ने रख दीं दुखती रग पर उंगलियां, खूब निकला गुबार

 

अपने एफबी वॉल पर आज सुबह जनसत्ता के संपादक ओम थानवी ने आम आदमी पार्टी के शीर्ष नेता एवं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के ताजा मीडिया एक्शन पर गंभीर प्रतिप्रश्न का आगाज कर दिया। उनकी पोस्ट में उठाए गए सवाल पर सहमतियां कम, असहमतियां ज्यादा हैं। और इसी बहाने कारपोरेट मीडिया के चाल-चलन की जमकर लानत-मलामत भी हो रही है।