पश्चिमी उत्तर प्रदेश के एक जिले के पत्रकारों के कुछ वीडियोज इन दिनों वायरल हुए हैं. इसमें डांस, मस्ती है, शराब है, किन्नर हैं, ठुमके हैं, हंसी है, नशा है, बहकना है. सब कुछ है. संभव है ये वीडियो होले के मौके का हो. होली की मस्ती के मौके पर उत्तर भारत में ऐसे दृश्य आम होते हैं. संभव है ये होली का न हो. खास बात ये है कि इन वीडियोज में पत्रकार हैं. इसीलिए नैतिकता का सवाल उठ रहा है. क्या पत्रकारों को अपने आफिस में इस तरह शराब-डांस की पार्टी करनी चाहिए.
क्या ऐसी पार्टी में किन्नरों को भी नाचने के लिए बुलाना चाहिए.
जाहिर है, पत्रकारों से एक न्यूनतम नैतिकता की तो अपेक्षा की ही जाती है. कल्पना कीजिए, ये नाच, शराब, किन्नर, आफिस वाले दृश्य अगर अफसरों के होते या नेताओं के होते तो ये मीडिया वाले इसे शूट करने के बाद किस किस तरह से परोसते, नैतिकता के कितने सवाल उठाते. पर जिनके कंधों पर सवाल करने की जिम्मेदारी है, वे ही अगर धुत्त हो जाएंगे, वे ही इस तरह किन्नरों के साथ आफिस के भीतर बहकेंगे, नाचेंगे, चिल्लाएंगे तो उनसे सवाल कौन करेगा? आज के डिजिटल दौर में चीजें देर तक छुपी ढंकी नहीं रहती. अगर ये प्राइवेट पार्टी थी, तो आफिस के अंदर क्यों किया गया. अगर ये प्राइवेट पार्टी थी तो इसमें मोबाइल को क्यों एलाउ किया गया.
पर वीडियो में साफ साफ दिख रहा है कि लोग मोबाइल से शूट कर रहे हैं और इसमें किसी को कोई आपत्ति नहीं है. यानि पत्रकार खुद को सारे नैतिकताओं, सवालों से उपर मान रहे हैं. मीडियावालों का ये दंभ, ये अहंकार ठीक नहीं है. इस वीडियो में जो पत्रकार दिख रहा है, उनके बारे में बताया जाता है कि कोई एएनआई न्यूज एजेंसी से है तो कोई भाजपा का मीडिया संयोजक है. ये भी कहा जा रहा है कि ये दावत भाजपा की तरफ से थी. पत्रकारों पर वैसे ही आरोप लगते हैं कि इन्हें जो खिला पिला दे, उनके लिए गाने-लिखने लगते हैं. उम्मीद करें वीडियो में दिखने वाले लोग खुद अपने लेवल पर चिंतन-मनन करेंगे ऐसे आयोजनों से परहेज करेंगे, ऐसे दृश्यों को फिर पब्लिक डोमेन में आने का मौका नहीं देंगे.
देखें वीडियो-