तुम पागल हो जो ये सब लिख रही हो, तुम्हें कोई नौकरी नहीं देगा!

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अपने मां पिता के साथ युवा पत्रकार मीना कोतवाल

Meena Kotwal : मैं और बबीसी सीरीज़ से इतर… तुम पागल हो, जो ये सब लिख रही हो… तुम्हें कोई नौकरी नहीं देगा… तुम उनके सामने कमजोर हो… तुम विक्टिम कार्ड खेल रही हो… मैं जानती/ता हूं कि तुम्हारे साथ गलत हुआ है पर भेदभाव नहीं हुआ होगा… तुम तो अपना पेपर भी नहीं दे सकती तुम्हारा पति जो सवर्ण है वो देता है… तुम्हें क्या लगता है कि ये सब कर के तुम्हें अपनी नौकरी वापस मिल जाएगी? हर चीज़ कास्ट के चश्मे से देखोगी तो इसमें तुम्हारा ही नुकसान है… अगर इतनी ही परेशान थी या इतना ही सब कुछ हो रहा था तो इंटर्नल कम्पलेन क्यों नहीं की?

इस तरह की और भी कई बाते मुझे कही जा रही हैं. अभी पांच ही पोस्ट सीरीज़ के रूप में लिखी हैं. जिसमें मैं अपना अनुभव लिख रही हूं. इसमें मैंने अभी कहीं भी ये नहीं कहा है कि मैं दलित हूं इसलिए मुझे बीबीसी से निकाला गया, ना मैंने ये कहा है कि मेरे साथ कोई भेदभाव हुआ है. मैं सिर्फ़ वो लिख रही हूं जो मैंने महसूस किया. क्यों किया या मेरे साथ ऐसा क्यों किया गया, ये आप ही पढकर बताइयेगा.

लेकिन जिस तरह से मेरा चरित्र हनन किया जा रहा है वो वाकई काबिल-ए-तारिफ़ है, नहीं! जिस तरह एक महिला को पता चल जाता है कि सामने वाले पुरुष का व्यवहार आपके प्रति क्या है? किस नियत से देख रहा है, कौन उसे बहन, बेटी, दोस्त या पत्नि की नज़र से देख रहा है. वैसे ही मैंने भी कुछ महसूस किया जो मैं आपके सामने रख रही हूं. लेकिन कुछ लिबरल/प्रोग्रेसिव (ब्राह्मणवादी) लोग मुझे डराने की हर वो संभव कोशिश कर रहे हैं, जिससे मैं लिखना बंद कर दूं और डर कर चुप बैठ जाऊं.

पायल तड़वी या रोहित वेमुला जैसा अगर मैं कुछ कर लेती, तो आप में से ही कई लोग सहानुभूति के लिए आते कि मुझे एक बार बताना तो चाहिए था और आज जब मैं सब सामने ला रही हूं तो आप मुझे काबिलियत का सर्टिफिकेट पकड़ाना चाहते हैं! क्यों आपको वंचितों और शोषितों की आवाज़ बनना है? हमारे पास भी जुबां हैं, अपना दर्द हम आपसे ज्यादा बेहतर ढ़ंग से लिखना और बताना जानते हैं. आप अपनी काबिलिय कहीं और आज़माइये. क्योंकि अब मैं पायल तड़वी नहीं बनूंगी.

जिस तरह उन्नाव रेप की पीड़िता को अपने साथ हुए दुर्व्यवहार याद है, उसे याद है कि किस तरह उसने किसी की लपलपाती आंखें और अनियंत्रित हाथों को अपने शरीर पर झेला है, ये वही जानती है. इसलिए वो एक विधायक के सच को सामने लाना चाहती है, लेकिन उसे भी रोकने के लिए हर संभव कोशिश की गई. वो फिर भी चुप नहीं हुई तो उसे मारने की कोशिश की गई, क्यों? क्योंकि आपकी कथित समाज में बनी हुई कथित इज्जत या नाम ना खराब हो जाए!

उसी तरह आपकी आंखों में मैंने अपने लिए नफ़रत और घृणा देखी है जो किसी और को समझ भले ना आई हो पर मैं सब समझ रही थी. हां, चलो मान लिया मुझे कुछ नहीं आता मैं एकदम ज़ीरो हूं लेकिन फिर भी किसी को हक़ नहीं की वो मेरे सम्मान के साथ खेले. मैं अपने खानदान की पहली पीढ़ी हूं जो यहां तक अपने दम पर पहुंची है, आप अपनी पहली पीढ़ी को याद कीजिए, वो कहां तक गई थी! जितना मुझे आता है मेरे लिए काफ़ी है लेकिन सीखना कभी खत्म नहीं किया.

आप को परेशानी ये है ना कि मैं आपके साथ बैठकर काम कैसे कर सकती हूं! इतना पढ़ कैसे सकती हूं! अच्छा काम कैसे कर सकती हूं! अगर मैं कोई कामवाली बाई, सफ़ाई वाली या आपकी गुलामी वाला ही ऐसा कोई काम करती, जहां आप जता सकते कि आप महान है और मैं आपकी जूती हूं तो शायद आपको कोई परेशानी ही नहीं होती. लेकिन बात यहां सम्मान की है जो आप मुझे बराबर में बैठाकर दे नहीं सके. अगर आपको लगता है कि मैं ये सब नौकरी के लिए कर रही हूं तो आप अपनी नौकरी अपने पास रखिए. इस नौकरी के डर से मैं पहले ही बहुत देर कर चुकी हूं, सच सबके सामने लाने में. वैसे भी मैं आपके दायरे में कहां फिट बैठती हूं! मुझे तो जी हज़ूरी भी नहीं करने आती साहेब, काम से काम रखना जानती हूं.

हां, मेरा पति सवर्ण है लेकिन ये भी सच है कि आपका धर्म आसानी से बदला जा सकता है, जाति नहीं. आप कहते हैं कि मेरा पेपर मेरा पति देता है और वो तो एक सवर्ण ही है. तो क्या आप साबित करना चाहते हैं कि दलितों को कुछ नहीं आता! जितने भी दलित अव्वल दर्ज़े पर पहुंचे हैं वो अपनी काबिलियत पर नहीं सवर्ण के कारण पहुंचे हैं! दलित का पेपर सवर्ण देगा तो ही वो कुछ कर पाएगा!

वाह, आपकी सोच पर हंसी भी आ रही है और आप पर तरस भी कि इतना पढ़ने के बाद भी कुंठित ही रहे. आपको लगता है कि मैंने विक्टिम कार्ड खेला है तो कोई एक इंसान बता दीजिए, जिसके पास मैं अपना दुखड़ा जाकर रोयी हूं. संपादक पद पर बैठे लोगों को बताना मेरा कर्तव्य था, जो मैंने शुरु में ही किया. ये सब कब-कैसे क्या हुआ उसके लिए मैं विस्तार से रोज़ाना लिख रही हूं, नज़र बनाए रखें. आप जितना चाहे मुझे आगे बढ़ने से रोक लें, लेकिन मैं अब एक स्प्रिंग का रूप ले चुकी हूं आप जितना दबाएंगे उतना तेज और दूर तक उछलूंगी. रोक सको तो रोक लो.

कल मैं थोड़ा तनाव महसूस कर रही थी, इसलिए कुछ काम करने का मन नहीं था. ‘मैं और बीबीसी’ सीरीज़ की अगली कड़ी भी नहीं लिख पाई थी. लेकिन जानकर अच्छा लगा कि कई लोग अब इस सीरीज़ का बेसब्री से इंतजार करते हैं, जिसके लिए मुझे कई कॉल और मैसेज़ भी आए. नौकरीपेशा होने के कारण कुछ लोग मेरी पोस्ट पर रिएक्ट नहीं करते लेकिन वे उसे पढ़ते भी है और मुझे प्रोत्साहित भी कर रहे हैं. आप सभी का इस साथ के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया.

युवा पत्रकार मीना कोतवाल की एफबी वॉल से.

पूरे प्रकरण को समझने के लिए नीचे की पोस्ट्स को एक-एक कर पढ़ें-

(पार्ट एक) वंचित तबके की लड़की मीना कोतवाल की जुबानी बीबीसी की कहानी


(पार्ट दो) वंचित तबके की लड़की मीना कोतवाल की जुबानी बीबीसी की कहानी


(पार्ट तीन) वंचित तबके की लड़की मीना कोतवाल की जुबानी बीबीसी की कहानी


(पार्ट चार) वंचित तबके की लड़की मीना कोतवाल की जुबानी बीबीसी की कहानी


(पार्ट पांच) वंचित तबके की लड़की मीना कोतवाल की जुबानी बीबीसी की कहानी


(पार्ट छह) मीना को BBC हिंदी के डिजिटल संपादक राजेश प्रियदर्शी करते थे मानसिक रूप से प्रताड़ित!

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Comments on “तुम पागल हो जो ये सब लिख रही हो, तुम्हें कोई नौकरी नहीं देगा!

  • BBC jaise badey sansthan mein is tarah ka watawaran…! Badaa ajib sa lag raha hai..! Padhe-likhe log bhi aisi mansikta se sarabor hain…! Dhikkar hai aise logon par. Meena ne jo likha, wo jari rahni chahiye aur sabko “Nanga” karo tum Meena. Ye baat BBC ke Sheersh management tak jani chahiye. Aur iske liye tumhari madad Bhadas4media ke madhyam se kiya jayega. Yashvant ji bhi Sawarn hain, lekin yahan par unhoney “Nispakshta” se tumhari baat prakashit ki hai, iske liye unhein sadhuwad…

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  • Vikash gupta says:

    शानदार लेखिका, बहादुर लड़कीं, आपके जज्बे को सलाम, आपकी लेखनशैली ने बीबीसी के कलमकारों को आइना दिखा दिया है. दुनिया बहोत बड़ी है, मीडिया छोड़ो आगे बढ़ो.

    विकास गुप्ता, पत्रकार प्रयागराज

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