मैं और बीबीसी-10 आज मैं पिछला नहीं बल्कि कल की ही एक ताज़ा सूचना से शुरू करना चाहूंगी. कल मुझे पता चला कि मिस्टर झा ने बीबीसी से इस्तीफ़ा दे दिया है. जैसे ही मुझे पता चला चंद लोगों के लिए रही सही इज्जत भी मेरे दिल से खत्म हो गई. कुछ लोगों पर बहुत …
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(पार्ट नौ) वंचित तबके की लड़की मीना कोतवाल की जुबानी बीबीसी की कहानी
मेरी स्टोरी सरकारी फाइल की तरह राजेश प्रियदर्शी और महिला डेस्क के बीच झूलती रहती मैं और बीबीसी- 9 ‘कहां से हो?’ ‘दिल्ली से ही, जन्म-पढ़ाई सब दिल्ली से ही हुआ है, लेकिन राजस्थान से भी संबंध रखते हैं.’ ‘राजस्थान..? राजस्थान में कहां से हो?’ ‘बूंदी ज़िले से’ ‘अच्छा… राजस्थान में क्या हो?’ ‘दलित हैं …
पार्ट आठ : मैंने BBC हिंदी के संपादक मुकेश शर्मा से कह दिया- किसी भी स्टोरी के लिए राजेश प्रियदर्शी के पास न जाऊंगी!
मैं और बीबीसी- 8 समय के साथ-साथ मेरे मन में गुस्सा उत्पन्न होना शुरू हो गया. मुझे हमेशा से अपने आत्मसम्मान से बहुत प्यार रहा है. न्यूज़रूम में तीन बार जिस तरह राजेश प्रियदर्शी सर ने मुझे सबके सामने डांटा था, उससे मेरे आत्मसम्मान को गहरा धक्का लगा था.
पार्ट सात : राजेश प्रियदर्शी सर का मैसेज आया- ‘इंटरनेट के जमाने में कोई दलित नहीं होता’
मैं और बीबीसी-7 मैं इतने तनाव में आ गई थी कि मेरा ऑफिस जाने का मन ही नहीं करता था. मन में हमेशा यही चलता रहता था कि मेरा एक्सीडेंट हो जाए, मुझे कुछ हो जाए… बस ऑफिस ना जाना पड़े.
(पार्ट छह) मीना को BBC हिंदी के डिजिटल संपादक राजेश प्रियदर्शी करते थे मानसिक रूप से प्रताड़ित!
मैं और बीबीसी-6 मॉर्निंग मीटिंग में ज़्यादातर चर्चा स्टोरी आइडिया को लेकर होती है. अधिकतर स्टोरी राजेश प्रियदर्शी सर ही अप्रूव करते थे, जो बीबीसी हिंदी के डिजिटल संपादक हैं और मीटिंग में अधिकतर समय मौजूद होते थे. मैं भी उस मीटिंग में स्टोरी आइडिया लेकर पहुंचती, लेकिन अधिकतर आइडिया रिजेक्ट कर दिए जाते. शुरू …
मीना कोई अकेली नहीं, भारतीय मीडिया को पूरा दलित वर्ग कुबूल नहीं!
Tahir Mansuri : बीबीसी से मीना कोतवाल को हटाए जाने की घटना को सामान्य मत समझिये. मीना अकेली नहीं हैं जिन पर यह गाज़ गिरी है बल्कि पूरा दलित वर्ग भारतीय मीडिया में अस्वीकार्य है. बीबीसी की मानसिकता पर मुझे पहले भी कोई शक नहीं था कि वह दोगले हैं, मनुवादी एजेंडे पर हैं.
तुम पागल हो जो ये सब लिख रही हो, तुम्हें कोई नौकरी नहीं देगा!
Meena Kotwal : मैं और बबीसी सीरीज़ से इतर… तुम पागल हो, जो ये सब लिख रही हो… तुम्हें कोई नौकरी नहीं देगा… तुम उनके सामने कमजोर हो… तुम विक्टिम कार्ड खेल रही हो… मैं जानती/ता हूं कि तुम्हारे साथ गलत हुआ है पर भेदभाव नहीं हुआ होगा… तुम तो अपना पेपर भी नहीं दे …
(पार्ट पांच) वंचित तबके की लड़की मीना कोतवाल की जुबानी बीबीसी की कहानी
मैं और बीबीसी-5 डेस्क पर काम करते हुए मुझे नौ महीने हो गए थे. कुछ लोगों का रवैया मेरे प्रति बदलने लगा था. मेरे पीछे से मेरा मज़ाक बनाया जाने लगा, मुझे उल्टा-सीधा कहा जाने लगा. मेरे प्रति कुछ लोगों की बेरुखी साफ़ दिखाई देने लगी थी. मुझे इसका एक कारण ये भी लगा कि …
(पार्ट चार) वंचित तबके की लड़की मीना कोतवाल की जुबानी बीबीसी की कहानी
मैं और बीबीसी-4 “आप ही मीना हो?” “हां, क्यों क्या हुआ?” “नहीं कुछ नहीं, बस ऐसे ही.” “आपने इस तरह अचानक पूछा..? आप बताइए न किसी ने कुछ कहा क्या?” “नहीं, नहीं कुछ ख़ास नहीं.” (थोड़ी देर बात कर उन्हें विश्वास में लेने के बाद) “बताइए न मैं किसी को नहीं बताऊंगी.” “मुझसे किसी ने …
(पार्ट तीन) वंचित तबके की लड़की मीना कोतवाल की जुबानी बीबीसी की कहानी
मैं और बीबीसी- 3 ट्रेनिंग खत्म हो चुकी थी. दो अक्टूबर को मैं और मेरे साथ जॉइन करने वाले सभी ऑफ़िस पहुंच चुके थे. न्यूज़रूम में ये हमारा पहला दिन था. बीबीसी के लिए ये दिन बहुत ख़ास था क्योंकि इस दिन बीबीसी हिंदी का टीवी बुलेटिन शुरू हो रहा था, जिसके उपलक्ष्य में बीबीसी …
(पार्ट दो) वंचित तबके की लड़की मीना कोतवाल की जुबानी बीबीसी की कहानी
मैं और बीबीसी- 2 ऑफ़िस के कुछ दिन ट्रेनिंग में ही बीते. जब तक ट्रेंनिंग थी तब तक तो सब कुछ कितना अच्छा था. ऑफ़िस के कई लोग आकर बताते भी थे कि ये तुम्हारा हनीमून पीरियड है, जिसे बस एंजॉय करो.
(पार्ट एक) वंचित तबके की लड़की मीना कोतवाल की जुबानी बीबीसी की कहानी
मैं और बीबीसी-1 चार सितम्बर, 2017 का दिन यानि बीबीसी में ऑफिस का पहला दिन. रातभर नींद नहीं आई थी, बस सुबह का इंतज़ार था. लग रहा था मानो एक सपना पूरा होने जा रहा है. क्योंकि आज तक घर में तो छोड़ो पूरे परिवार में भी कोई इस तरह बड़े-बड़े ऑफिस में काम नहीं …
मीडिया में नौकरियां रेफरेंस के आधार पर दी जाती हैं और रेफरेंस आधारित भर्ती प्रक्रिया में सवर्ण लोगों को ज्यादा फायदा मिलता है
: मीडिया में दलित और दलितों के सरोकार : आखिर क्या वजह है कि मीडिया में दलितों के साथ दलितों के सरोकार भी अनुपस्थित हैं? क्या इसके पीछे जातीय आग्रह-पूर्वाग्रह जिम्मेदार नहीं है? आमतौर पर छिटपुट खबरों के अलावा मैन स्ट्रीम मीडिया में दलित सरोकारों के कवरेज के प्रति नकारत्मक रवैया ही देखने को मिलता है। तमाम विकास के दावों के बावजूद जातीय आधार पर भेदभाव बरता जाना आज भी हमारे देश में आम बात है। यह जातीय भेदभाव मीडिया में भी आसानी से देखा जा सकता है। मीडिया में फैसले लेने वाले ऊपर से नीचे 1 से 10 तक पदों पर दलित ढूंढने से भी नहीं मिलेंगे।