Rajiv Nayan Bahuguna : ‘नैनीताल समाचार’ के बंद होने की आहट सुन रहा हूँ. चार दशक से यह अखबार उत्तराखंड के किसी ढोली या पुरोहित की तरह हर सुख दुःख में नौबत और घंटी बजाता रहा है. मैं लगभग पहले अंक से ही इसका पाठक और यदा कदा लेखक भी रहा हूँ. कयी बनिये और लाले अखबार, मैगज़ीन, चैनल आदि घाटा उठाकर भी चलाते रहे हैं, चलाते रहेंगे. क्योंकि उसके जरिये वह अपने कई टेढ़े हुए उल्लुओं को सीधा करते हैं.
एक्टिविस्ट वणिक Rajiv Lochan Sah नि:संदेह इस लोकयज्ञ को घाटा सह कर चलाते रहे हैं, और इस अखबार के कारण उन्हें चाहे सामाजिक प्रतिष्ठा मिली हो, लेकिन आर्थिक-राजनैतिक रूप से उनके लिए यह घाटे का सौदा ही रहा है. आर्थिक और पारिवारिक कारणों से वह इसे बंद करने का अप्रिय निर्णय ले रहे हैं, तो इसके लिए उनकी भर्त्सना नहीं की जा सकती. आखिर वह कोई हातिमताई नहीं हैं, जो अपने चूतडों का गोश्त काट कर जनता को खिलाते रहें.
उस प्रतिष्ठान में कार्यरत महेश जोशी का विस्थापन अवश्य चिंता का विषय है, और उनका पुनर्वास अकेले साह की नहीं, अपितु हम सबकी ज़िम्मेदारी है.. मैं अपने स्तर पर मदद करूंगा. मित्रों को भी प्रेरित करूँगा. आप भी करिए.
वरिष्ठ पत्रकार, रंगकर्मी और एक्टिविस्ट राजीव नयन बहुगुणा की एफबी वॉल से. इस स्टेटस पर आए कुछ प्रमुख कमेंट्स इस प्रकार हैं….
Kamlesh Bhatt जरूर चार दशक अपने आप में इतिहास हैं
Jayprakash Panwar Its a sad news for me too……I started my journalism carrier with Nainital Samachar in 1988……It should be online e paper now but who will take responsibilities this is a big question. I think Shah ji should think about it…..
Jitendra Anthwal Uttarakhand Ka Durbhagya Hai Ki Bahar Ke File Copy Wale Gairbhashi Akhbar Bhi Is Rajya Mein Falful Rahe Hain Aur Dusari Taraf Nainital Samachar Jaisi Dharohar Khatm Ho Rahi Hai. Uttarakhand Ke Tamam Sangharsho Aur Hr Sukh-Dukh Ke Sakshi Rahe Nainital Samachar Ko Bachaya Jana Jaruri Hai, Vrna Ek-Ek Kr Khatm Ho Rahe Pahad Ke Mool Akhbaro Ke Baad Nayi Pidhi Ke Samne Jo Hoga Wo Hamar Nahi Hoga…..
Sanjay Kothiyal Nainital samachar uttrakhand ki patrakarita ki samridh virasat ko aage baraane wala saathi rshs he.
Dhananjay Singh दुखद है. ई-पेपर के रूप में बचा रहना चाहिए.जानकार लोग शाह जी की मदद करें
Devendra Budakoti Shahji should call for fresh renewal of subscription.
Sanjay Kothiyal Janpaksh ko rakhne wale ab bache hi kitne akhbaar hain. Aaj jabki har second aur har line biki hui he ese me yah khabar vichlit kar rahi he. Rajiv da ko nirnay lene me jaldbaazi nahin karni chaahiye.
Deepak Chand कई छिपे हुई पाक्षिक मासिक ऐसे ही सहीद होते गए है जैसे बिग बाज़ार माल के बगल में पान का खुमचा कब गयब हो जाता है किसी को पता नहीं चलता 🙁
Dinesh Semwal इस अखबार को चलाने की जिम्मेदारी अब आपको स्वयं संभालनी होगी तभी आपकी क्षमता का भी पता चल सकेगा वरना लाला की नौकरी ताे सभी कर लेते हैं।
Joy Prakash Bisht इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है। येसे मुकाम़ बन जाते हैं जब सतत् प्रयास भी थम जाता है।
Dataram Chamoli इस समाचार पत्र का बंद होना जनता के लिए बहुत ही दुखद खबर होगी।
Hari Mohan Bhatt कुछ करना चाहिऐ..!! मेरा पहला अखबार था नैनीताल समाचार..!! क्या सरकार से मदद मिल सकती है?
Rupesh Kumar Singh पूंजीवाद के दौर में सहकारिता पर टिकी व्यवस्था और कितने दिन चलेगी ? सच है तो सही नहीं है । राजीव दा, महेश दा, यह मैं क्या सुन रहा हूं. नैनीताल समाचार को पढ़ने लिखने का पुराना वास्ता है । सहकारिता पर चलने वाला संस्थान बंद करने का निर्णय किसका है? क्या इसके लिए आम राय ली गयी? नहीं तो यह फैसला सहकारिता के सिद्धांत के खिलाफ है।
Vijay Narayan Uniyal जब जब तकनीक विकसित होती है पुरानी तकनीक समाप्त होती जाती है। उदाहरण के लिए कलम लकड़ी की फिर निब होल्डर फिर स्याही भरने वाला पेन फिर रिफिलिंग फिर जाटर तमाम। इसी तरह अन्य चीजों मे भी है। ग्रामोफोन से आधुनिक 3d. स्वचालित तकनीक ब्लूचिप। वायरलेस लैंडलाइन से एन्डोयड फोन। वायरलेस से वटसअप। इसी प्रकार अखबार पत्रिका न्यूज चैनल टीवी कम्प्यूटर मे बदलते गये है। किसी ऐतिहासिक चीज का समाप्त होना व्यक्ति और समाज के लिए सोचनीय तो है परन्तु तेजी से हो रहे परिवर्तन को अपनाना अनिवार्य हो जाता है। इतना किया जा सकता है कि पुरानी चीज के विकल्प मे जो चीज नयी आ रही है उनको प्राथमिकता से आबंटित हो जिन्हे पुराना अनुभव है। जैसे इस केस मे शाह सर को टीवी चैनल सीरियल आबंटित किये जाये। सुझाव है।
Chandan Bangari सरोकारी पत्रकारिता की पहचान नैनीताल समाचार के बंद होने की खबर बड़े आघात से कम नहीं है। मैं स्तब्ध हूँ। पत्रकारिता का क मैंने इसी अख़बार से सीखा। हर महीने महेश दा का फ़ोन आ जाता कि तुम लिखते नहीं हो। कुछ समय समाचार के लिए भी निकालो। मगर परिस्थितियां चाहे जो भी रही हो मगर ये बहुत बुरी खबर है।