बहाई धर्म का प्रसिद्ध पूजा स्थल, नई दिल्ली का “लोटस टेंपल” अपनी अद्भुत स्थापत्य कला के लिए जाना जाता है। यहां हर धर्म के लोगों का स्वागत होता है। बहाई धर्म एक विश्व धर्म है जो सभी धर्मों और जातियों के लोगों को एक सूत्र में बांधने के उद्देश्य से बनाया गया था। कमल के फूल के स्वरूप वाले इस अद्वितीय टेंपल में 27 पंखुड़ियां हैं जो एक अलग ही नज़ारा पेश करती हैं।
इसका आर्किटेक्चर तो अद्भुत है ही, मुझे एक और बात ने बहुत प्रभावित किया। यहां बने एक प्रार्थना हाल में जब आप बैठते हैं तो आपको कहा जाता है कि आप आंखें बंद करें और अपने इष्ट देव को याद करें। आपको यह नहीं कहा जाता कि फलां देवी-देवता या भगवान को, वाहेगुरू को, अल्लाह को या जीसस क्राइस्ट को याद करो, बल्कि यह कहा जाता है कि अपने इष्ट देव को, चाहे वे जिस भी धर्म के हों, याद करो। पर्यटक लोग अपने-अपने धर्म की प्रार्थना करने और अपने इष्ट देव को याद करने में एक अनूठे ही आनंद की अनुभूति करते हैं।
हाल ही में मैं कुछ ऐसे लोगों से मिला जो नीचे गिरे, ऊपर उठे और फरिश्ते बन गए। ये अनाम लोग हैं, इनका कोई नाम नहीं है और ये एक अनूठा काम कर रहे हैं। इन फरिश्तों के बारे में कुछ बताऊं, उससे पहले दो साल पूर्व आई फिल्म “उड़ता पंजाब” का जि़क्र प्रासंगिक है। फिल्म का नायक एक सफल पॉप सिंगर है। पैसा है, नाम है, पर वह नशे की लत में पड़कर अपना जीवन बरबाद कर लेता है। आज के ये अनाम फरिश्ते भी ऐसे ही लोग हैं जिन्हें कभी जीवन में “कुछ और” चाहिए था, कुछ अलग, कुछ रोमांच, और वह रोमांच मिला नशीली दवाओं में। अनाम फरिश्तों का यह समूह उन पुरुषों और महिलाओं का संगठन है जिनके लिए नशा कभी एक बड़ी समस्या थी।
ये नशा करने के लिए जीते थे और जीने के लिए नशा करते थे। इनका जीवन नशीले पदार्थों से नियंत्रित होने लगा। ये लोग एक लगातार बढ़ती रहने वाली ऐसी बीमारी की जकड़ में थे जिसका अंत अस्पताल, जेल और अंतत: मौत है। इनके परिवारों ने इन्हें संभालने की कोशिश की, डाक्टरों, हकीमों को दिखाया, सामाजिक संस्थाओं में ले गए, संतों के पास गए। कुछ समय के लिए लगता था कि सब ठीक हो गया है, लेकिन किसी न किसी तरह ये लोग फिर दोबारा नशे की लत में वापिस आ जाते थे।
नशे के शिकार इन लोगों की इच्छाशक्ति समाप्त हो जाती है, खुद पर कोई नियंत्रण नहीं रहता। इनका जीवन इतना नारकीय होता है कि अक्सर खुद इनके परिवार वाले ही इनसे नफरत करने लगते हैं। इनमें से कुछ लोगों को समझ आ जाती है कि नशा उनके जीवन को तबाह कर रहा है। नशे के शिकार किसी व्यक्ति को जब लगता है कि नशे की लत के कारण वह आत्महत्या की राह पर है तो एक संभावना बन जाती है, क्योंकि नशे का शिकार व्यक्ति खुद अपनी नशेबाजी से छुटकारा पाने को लालायित होता है। ऐसे में अगर उसे कोई सहारा मिल जाए तो नशा छूट सकता है। अनाम फरिश्तों का यह समूह नशे के शिकार व्यक्ति को सहारा देता है।
यह समूह “नारकोटिक्स एनॉनिमस” कहलाता है। यहां नशे के शिकार किसी व्यक्ति से सवाल नहीं पूछे जाते, उनसे कोई शपथ लेने को नहीं कहा जाता, कोई फार्म नहीं भरवाया जाता, कोई फीस नहीं ली जाती। ‘नारकोटिक्स एनॉनिमस’ की खासियत यह है कि इसके सदस्य वे लोग हैं जो खुद कभी “नशेड़ी” थे, जो इस नारकीय जीवन से बाहर आ गये, फिर से समाज के जि़म्मेदार सदस्य बन गए, और अब वे उन लोगों की सहायता कर रहे हैं जो अभी नशे की लत का शिकार हैं। नारकोटिक्स एनॉनिमस सभी तरह के ड्रग्स के प्रयोग से रोकथाम का कार्यक्रम है। इनका तरीका बहुत साधारण है। ये हर सप्ताह आपस में मिलते हैं, अपने अनुभव बांटते हैं और एक दूसरे के लिए प्रेरणा बन जाते हैं। एक व्यक्ति जो खुद कभी नशे का शिकार रह चुका हो, उस नारकीय जीवन में कभी गहरा धंसा रहा हो, नशे के शिकार किसी भी दूसरे व्यक्ति का दर्द बड़ी शिद्दत से समझ सकता है, यही कारण है कि नशा छुड़वाने का इनका इलाज सबसे ज़्यादा कारगर है।
दरअसल नशा छुड़वाने की कोई कारगर दवाई नहीं है, क्योंकि कोई दवाई संगत नहीं छुड़वा सकती, इस गलतफहमी से नहीं बचा सकती कि “कभी-कभार मज़ा ले लेने में क्या बुराई है”। परिणाम यह होता है कि नशे के गर्त से बाहर आने की कोशिश कर रहा व्यक्ति फिर से नशे का शिकार हो जाता है। नारकोटिक्स एनॉनिमस की सदस्यता का लाभ यह है कि यहां सभी सदस्य व्यसन से बचे रहने में एक-दूसरे की सहायता करते हैं। इसके लिए उन्होंने 12 चरणों वाला एक बहुत सरल कार्यक्रम बना रखा है। ये हर सप्ताह आपस में मिलते हैं। इन साप्ताहिक बैठकों में मिलने वाली प्रेरणा से लोग धीरे-धीरे नशे की गिरफ्त से बाहर आ जाते हैं।
यहां सभी सदस्यों की पहचान गुप्त रखी जाती है ताकि उन्हें कानूनी अथवा सामाजिक परेशानियां न झेलनी पड़ें। नारकोटिक्स एनॉनिमस कोई धार्मिक संस्था नहीं है हालांकि वे अपने सदस्यों को भावनात्मक सहायता देने के लिए आध्यात्मिकता का सहारा लेते हैं। लोटस टेंपल और नारकोटिक्स एनॉनिमस में यही समानता है कि यहां किसी एक धर्म की बात नहीं होती। नारकोटिक्स एनॉनिमस की एक और बड़ी खासियत है कि यह किसी बाहरी व्यक्ति से कोई आर्थिक सहायता स्वीकार नहीं करता और इसके सदस्य ही इसके कार्यक्रमों का खर्च उठाते हैं।
अब भारतवर्ष में नारकोटिक्स एनॉनिमस की साप्ताहिक बैठकें आंध्र प्रदेश, असम, चंडीगढ़, नई दिल्ली, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-काश्मीर, कर्नाटक, महाराष्ट्र, ओडिशा, पंजाब, राजस्थान, सिक्किम, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश तथा पश्चिमी बंगाल में नियमित रूप से होती हैं, परंतु इस सबके बावजूद इन्हें बड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। चूंकि ये डोनेशन स्वीकार नहीं करते, इसलिए खर्च इनके लिए बड़ी समस्या है। साप्ताहिक बैठकों के लिए जगह का इंतजाम बड़ी समस्या है क्योंकि लोग समझते हैं कि यह नशेड़ियों का जमावड़ा है, ये शोर मचाएंगे, तोड़-फोड़ कर देंगे।
नारकोटिक्स एनॉनिमस की बैठकें सबसे पहले अमरीका में शुरू हुईं और बाद में धीरे-धीरे दूसरे देशों में फैलीं। पश्चिमी समाज ने इन्हें ज्यादा आसानी से स्वीकार किया, चर्च इनकी सहायता के लिए आगे आया। इनकी ज्यादातर बैठकें चर्च में होती हैं, कुछ जगहों पर स्कलों या कुछ सामाजिक संस्थाओं ने भी इन्हें जगह दी है, पर ऐसा बहुत कम है।
नशे की गिरफ्त में फंसा व्यक्ति अपराध की राह पर भी जा सकता है इसलिए आवश्यक है कि भारतीय समाज नारकोटिक्स एनॉनिमस जैसे कार्यक्रमों को समझे और खुले मन से स्वीकार करे। क्या ही अच्छा हो यदि सामाजिक संस्थाएं इन्हें बैठकों के लिए स्थान दें, पुलिस इन्हें नशे के शिकार लोगों की सूचना दे, अस्पताल नशे के रोगियों को इन तक पहुंचाएं ताकि समाज को नशे के श्राप से मुक्ति मिल सके, अपराधों से मुक्ति मिले सके और अनुपयोगी हो चुके लोग फिर से समाज के जि़म्मेदार नागरिक बन सकें।
‘दि हैपीनेस गुरु’ के नाम से विख्यात पी.के खुराना दो दशक तक इंडियन एक्सप्रेस, हिंदुस्तान टाइम्स, दैनिक जागरण, पंजाब केसरी और दिव्य हिमाचल आदि विभिन्न मीडिया घरानों में वरिष्ठ पदों पर रहे। वे कई कंपनियों के संचालक भी हैं।
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