कुछ साल पहले मैं एक फैक्ट फाइंडिंग में दीमापुर गया था। वहां से लौटा, तो अंग्रेज़ी की एक महिला पत्रकार ने मुझसे संबंधित खबर के बारे में फोन पर बात की। उसने पूछा- आप कहां गए थे? मैंने कहा- नगालैंड। उसका अगला सवाल था- इज़ इट अब्रॉड? मैंने सिर पीट लिया।
नेपाल में जन आंदोलन अपने चरम पर था। पूरी दुनिया की निगाह इस पर थी। नारायणहिति पैलेस घेरा जा चुका था। इसी सिलसिले में मंडी हाउस पर एक प्रदर्शन था। हम लोगों को तिलक मार्ग थाने ले जाया गया और वहां से बस में भरकर जंतर-मंतर पर गिरा दिया गया। वहां भारी जमावड़ा हुआ। एनडीटीवी 24*7 की एक लंबी सी महिला ने आकर मुंह के सामने माइक लगा दिया और पूछा- ”नेपाल में क्या हुआ है कि आप लोग प्रदर्शन कर रहे हैं?” मैंने सिर पीट लिया।
इसी दौरान हिंदी के एक पत्रकार ने फोन कर के कहा, ”बॉस, नॉर्थ ईस्ट के किसी जानकार का नंबर दीजिए न!” मैंने पूछा, ”क्या हो गया नॉर्थ ईस्ट में?” वे बोले, ”अरे, वो नेपाल में बवाल चल रहा है न, उसी पर प्रतिक्रिया लेनी है।” मैंने सिर पीट लिया।
इस बार मैं कतई सिर नहीं पीटूंगा। एकाध भारतीय माइकवीर अपनी बला से पिटकर आ जाएं, तब शायद उनका भूगोल दुरुस्त हो। बज्र अनपढ़ हैं सब… मूर्खता की भी एक सीमा होनी चाहिए।
अभिषेक श्रीवास्तव के एफबी वाल से
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is media ka bhagwan malik hai.