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उत्तराखंड

कोरोना की मार के बीच पौड़ी के पत्रकारों की रार!

-इन्द्रेश मैखुरी

आम तौर पर खबर लिखने का काम पत्रकारों का है. लेकिन जब पत्रकारों पर खबर लिखी जाने लगे तो समझिए कि पत्रकारों का मामला गड़बड़ा गया है. ऐसा ही लगता है कुछ गढ़वाल मण्डल के मुख्यलय पौड़ी के पत्रकारों के साथ हो गया है.

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18 मई को पौड़ी के पत्रकारों के एक हिस्से ने प्रेस क्लब की कार्यकारिणी को भंग करने की घोषणा की. इसके लिए एक वर्चुअल बैठक की गयी. वर्चुअल बैठक करके प्रेस क्लब की कार्यकारिणी भंग करने की घोषणा और वह भी चरम कोरोना काल में!

यह ऐसा समय है जब सारा देश ही कोरोना की दूसरी लहर से त्राहि-त्राहि कर रहा है और पौड़ी भी उससे अछूता नहीं है. ऐसे में पौड़ी के पत्रकार वर्चुअल बैठक, प्रेस क्लब की कार्यकारिणी को भंग करने के लिए कर रहे हैं तो सहसा मन में ख्याल आता है कि ऐसी क्या आपातकालीन स्थिति पैदा हो गयी? क्या प्रेस क्लब की कार्यकारिणी को झेल पाना कोरोना महामारी की मार झेल पाने से अधिक दुष्कर हो रहा था पौड़ी के पत्रकारों को?

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ऐसे क्या मसले उठ खड़े हुए या ऐसे कौन से हित थे, जो प्रेस क्लब की कार्यकारिणी के साथ बैठ कर नहीं सुलझा या साध पा रहे थे पौड़ी के पत्रकार?

गौरतलब है कि पौड़ी में प्रेस क्लब का गठन गत वर्ष अक्टूबर में हुआ था. राजीव खत्री अध्यक्ष चुने गए थे, मुकेश बछेती सचिव,मुकेश सिंह,प्रमोद खंडूड़ी व मनोहर बिष्ट उपाध्यक्ष, कुलदीप बिष्ट सहसचिव तथा दीपक बर्थवाल कोषाध्यक्ष चुने गए थे.
सात-आठ महीनों में ही ऐसी क्या नौबत आन पड़ी कि ऑनलाइन समानांतर बैठक करके पौड़ी के पत्रकारों ने कार्यकारिणी भंग करने की घोषणा कर दी ? समानांतर इसलिए क्यूंकि अखबार में छपी खबरों के अनुसार मुख्य पधाधिकारी तो उक्त बैठक में मौजूद नहीं थे.

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पत्रकारों से यह अपेक्षा होती है कि वे एकतबद्ध हो कर जनता के पक्ष में मजबूती से खड़े रहेंगे. लेकिन वही पत्रकार जब जन मुद्दों के बजाय आपसी सिर-फुटव्वल करके एक-दूसरे को ठिकाने लगाने पर उतर आयें तो यह बिरादरी के तौर पर पत्रकार बिरादरी का नुक्सान तो करेगा ही, आम जनता का भी इससे अहित होगा. पत्रकारों की आपसी फूट शासन-प्रशासन के जन विरोधी कदमों की राह सुगम बनाएगी.

पौड़ी के पत्रकारों को याद रखना चाहिए कि पत्रकारों के ऐसे आपसी झगड़े में देहरादून के प्रेस क्लब पर बरसों ताला लगा रहा. इसलिए पत्रकारों का हित तो इसी में है कि वे एकजुट रहें. प्रेस क्लब कोई सत्ता का केंद्र या सत्ता की कुर्सी नहीं है कि जिसे हासिल करने के लिए या जिससे किसी को बेदखल करने के लिए तमाम तरह के छल-छद्म और तिकड़म करनी पड़े. यह पत्रकारों के आपसी सहयोग और समन्वय के लिए बनी संस्था है. पत्रकारों में आपसी सहयोग और समन्वय ही इसकी प्राथमिकता बना रहना चाहिए.

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-इन्द्रेश मैखुरी
[email protected]

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