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साहित्य

प्रभाष जोशी पर हुई पहली पी-एच.डी.

किसी भी पत्रकार की शैली पर पहला शोध प्रबंध : स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात के हिंदी के सर्वाधिक महत्वपूर्ण पत्रकार प्रभाष जोशी पर छत्तीसगढ़ के पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर द्वारा पी-एच.डी. प्रदान की गई है। ‘जनसत्ता’ में कार्य कर चुके दीपक कुमार पाचपोर को उनके शोध प्रबंध ‘प्रभाष जोशी की रचनाओं का शैली वैज्ञानिक अध्ययन (दैनिक जनसत्ता के स्तंभ ‘कागद कारे’ के विशेष संदर्भ में)’ हेतु यह पी-एच.डी. प्रदान की गई है। उन्होंने अपना शोध प्रबंध डॉ. राजेश दुबे (प्राचार्य, संत गहिरा गुरू रामेश्वर शासकीय महा.,लैलूंगा, जिला रायगढ़) के निर्देशन और डॉ. के.एल. वर्मा (अध्यक्ष, साहित्य एवं भाषा अध्ययनशाला, पं.रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर) व डॉ. आभा तिवारी (प्राचार्य, शासकीय कालेज पिथौरा, जिला महासमुंद) के सह-निर्देशन में पूरा किया।

<p>किसी भी पत्रकार की शैली पर पहला शोध प्रबंध : स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात के हिंदी के सर्वाधिक महत्वपूर्ण पत्रकार प्रभाष जोशी पर छत्तीसगढ़ के पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर द्वारा पी-एच.डी. प्रदान की गई है। ‘जनसत्ता’ में कार्य कर चुके दीपक कुमार पाचपोर को उनके शोध प्रबंध 'प्रभाष जोशी की रचनाओं का शैली वैज्ञानिक अध्ययन (दैनिक जनसत्ता के स्तंभ 'कागद कारे’ के विशेष संदर्भ में)’ हेतु यह पी-एच.डी. प्रदान की गई है। उन्होंने अपना शोध प्रबंध डॉ. राजेश दुबे (प्राचार्य, संत गहिरा गुरू रामेश्वर शासकीय महा.,लैलूंगा, जिला रायगढ़) के निर्देशन और डॉ. के.एल. वर्मा (अध्यक्ष, साहित्य एवं भाषा अध्ययनशाला, पं.रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर) व डॉ. आभा तिवारी (प्राचार्य, शासकीय कालेज पिथौरा, जिला महासमुंद) के सह-निर्देशन में पूरा किया।</p>

किसी भी पत्रकार की शैली पर पहला शोध प्रबंध : स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात के हिंदी के सर्वाधिक महत्वपूर्ण पत्रकार प्रभाष जोशी पर छत्तीसगढ़ के पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर द्वारा पी-एच.डी. प्रदान की गई है। ‘जनसत्ता’ में कार्य कर चुके दीपक कुमार पाचपोर को उनके शोध प्रबंध ‘प्रभाष जोशी की रचनाओं का शैली वैज्ञानिक अध्ययन (दैनिक जनसत्ता के स्तंभ ‘कागद कारे’ के विशेष संदर्भ में)’ हेतु यह पी-एच.डी. प्रदान की गई है। उन्होंने अपना शोध प्रबंध डॉ. राजेश दुबे (प्राचार्य, संत गहिरा गुरू रामेश्वर शासकीय महा.,लैलूंगा, जिला रायगढ़) के निर्देशन और डॉ. के.एल. वर्मा (अध्यक्ष, साहित्य एवं भाषा अध्ययनशाला, पं.रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर) व डॉ. आभा तिवारी (प्राचार्य, शासकीय कालेज पिथौरा, जिला महासमुंद) के सह-निर्देशन में पूरा किया।

प्रभाष जोशी की रचनाओं को साहित्यिक निबंधों के समतुल्य साबित करते हुए शोधकर्ता ने उनके जीवन और व्यक्तित्व के अलावा उनके विचारों को प्रभावित करने वाले व्यक्तियों और तत्वों की जानकारी दी है। उनकी रचनाओं का महत्व प्रतिपादित करते हुए इस शोध प्रबंध में प्रभाष जोशी की सामाजिक-राजनैतिक-सांस्कृतिक विचार प्रक्रिया का भी अनुशीलन किया गया है। विचार पक्ष के अंतर्गत उनके गांधीवादी चिंतन, राजनैतिक दृष्टिकोण, सामाजिक व आर्थिक समझ, धार्मिक अवधारणा, सांस्कृतिक चेतना, भाषायी आग्रह, हिन्दी के प्रति अनुराग और खेल-दर्शन की विस्तृत मीमांसा की गई है।

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किसी भी पत्रकार की भाषा और शैली पर हुए इस प्रथम शोध में उनकी भाषायी और शैलीगत विशेषताओं पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है। चयन, विचलन, समान्तरता, बिम्ब विधान, प्रतीकात्मकता, सादृश्य विधान, लोकोक्तियों-मुहावरों का प्रयोग आदि के शैलीविज्ञान के मानदंडों पर उनकी भाषा को कसते हुए यह बतलाया गया है कि वे कौन से तत्व हैं जिनके कारण प्रभाष जोशी के लेखन की पृथक और विशिष्ट शैली है। भाषा के स्तर पर उनके प्रयोगों की विस्तृत व्याख्या देने के साथ ही प्रभाषजी के प्रमुख अवदान ‘जनसत्ता’ के माध्यम से हिन्दी पत्रकारिता को उनके अतुल्य योगदान पर प्रकाश डाला गया है।

प्रभाष जोशी के लेखन में मिलने वाली विभिन्न शैलियों का भी वर्णन शोध छात्र ने किया है।  प्रभाष जोशी के लेखन के संदर्भ में इस शोध प्रबंध में प्रसिद्ध चिंतक के.एन. गोविंदाचार्य, पत्रकार राम बहादुर राय, अच्युतानंद मिश्र, रवीश कुमार व ललित सुरजन और राजनैतिक विश्लेषक अभय कुमार दुबे के साक्षात्कार भी शामिल किए गए हैं।  इस शोध प्रबंध के अंतर्गत शैलीविज्ञान के विभिन्न पक्षों और स्वरूपों पर तो चर्चा की ही गई है, साहित्य व पत्रकारिता के अंतर्संबंध, शैली का साहित्य और पत्रकारिता से संबंध, शैली और लेखक का व्यक्तित्व जैसे आयामों पर भी विस्तार से प्रकाश डाला गया है।

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दीपक कुमार पाचपोर से संपर्क [email protected] या +91 9893028383 के जरिए किया जा सकता है.

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