Connect with us

Hi, what are you looking for?

साहित्य

खुदकुशी कर रहे हैं होरी, धनिया और हल्कू : ममता कालिया

प्रेमचंद जयंती की पूर्व संध्या पर गुफ़्तगू की तरफ से हुआ वेबिनार, ममता कालिया, मुनव्वर राना, नासिरा शर्मा आदि ने विचार व्यक्त किए

प्रयागराज। किसे पता था कि प्रेमचंद के होरी, धनिया और हल्कू आज पहले से
भी दीन दशा में हमारे समाज में दिखाई देंगे। कम से कम तब वे जीवित तो थे।
आज बेचारे पेड़ों पर लटके हुए हैं खुदकुशी कर रहे हैं। आज के समाज की
स्थिति और अधिक दयनीय है। यह बात गुरुवार को ‘गुफ़्तगू’ की तरफ से मुंशी
प्रेमंचद जयंती की पूर्व संध्या पर आयोजित बेविनार में मशहूर कथाकार ममता
कालिया ने ‘प्रेमचंद की कहानियों के पात्र आज कितने प्रासंगिक’ विषय पर
विचार व्यक्त करते कहा।

Advertisement. Scroll to continue reading.

मशहूर साहित्यकार नासिरा शर्मा ने कहा कि मुंशी प्रेमचंद की कहानियों और
उनके उपन्यास पर सवाल करना तब वाजिब बनता है जब हिंदुस्तान मे हर वर्ग ने
करवट बदल ली हो, और उसका मुखड़ा बदल गया हो। कहने का मतलब ही कि ऊपरी
पहनावा तो लोगो का बदल गया है, अब हाथों में मोबाइल आ गया है, फैशनबल
कपडे भी लोगो ने पहन लिये हैं, दिखावे का बाजार ने घर भी सजा दिये है।
अब तो निम्न से निम्न वर्ग भी मैगी खाता है, मतलब, जिस बात को प्रेमचंद
जी ने इंगित किया है वो इंसान की प्रवृत्ति नही बदली है। और न ही हालात
बदले हैं। इसलिये मुझे ताज्जुब होता है, जब लोगों से कहते सुनती हूं कि
आज के दौर में प्रेमचंद जी की कहानियां प्रासंगिक नहीं है। तो मैं
आश्चर्य के साथ सोचती हूं कि वो कहानी या उपन्यास में किस चीज को देखकर
वो ऐसी बात करते हैं। ऊपरी दिखावे को, प्रवृतियों को, हालात को या
लापरवाहियों को करप्शन मौजूद हैं, किसान पहले आत्महत्या नहीं करते थे अब
कर रहे है, और अब तो डॉक्टर, पत्रकार भी सुसाइड कर रहे है। वजह क्या है?
मेरे ख्याल से अगर प्रेमचंद जी होते वे इसके बारे में भी लिखते।

मशहूर शायर मुनव्वर राना ने कहा कि देश की मौजूदा हालात में मुंशी
प्रेमचंद के किरदारों को लौटने में पचास साल से अधिक लग जाएंगे, देश का
माहौल नफ़रत से भरा हुआ बना दिया गया, ऐसे में वे पात्र फिर से नहीं लौटने
वाले। प्रेमचंद के गरीब, मजदूर, लाचार पात्र भी उनकी कहानियों में बादशाह
की तरह मुख्य किरदार में होते थे, जिनका आज के समाज में लौटना लगभग
नामुमकिन है। फिल्म संवाद लेखक संजय मासूम ने कहा कि प्रेमचंद की
कहानियां और उनके सारे पात्र आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने वे अपने
रचना समय में थे। वक्त बदलने के साथ बदलाव तो बहुत हुए हैं, लेकिन जो
जमीनी लेवल पर हर क्षेत्र में बदलाव होना चाहिए, वो नहीं हुआ है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी ने कहा कि प्रेमचंद के पात्र आज भी समाज में हमारे
सामने खड़े हैं, उनकी समस्याएं कम होने की वजाए दिनो-दिन बढ़ती जा रही है।
जिन लोगों की जिम्मेदारी इनकी समस्याएं कम करने की है, वे लोग उनकी
समस्याओं में इजाफा कर रहे हैं, यह हमारे लिए बहुत ही दुखदायी है।
इनके अलावा ऋतंधरा मिश्रा, शगुफ्ता रहमान ‘सोना’, दया शंकर प्रसाद, मासूम
रजा राशदी, डा. नीलिमा मिश्रा, इसरार अहमद, डा. ममता सारुनाथ, अनिल
मानव, अर्चना जायसवाल आदि ने भी विचार व्यक्त किए। संयोजन इम्तियाज़ अहमद
ग़ाज़ी ने किया।

https://youtu.be/rM1tVLifETc
Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement