मैं हरा दिया गया… राजनीति के दोगले चरित्र को आज करीब से देखा। Press Association के लिए हुए चुनाव के वोटों की गिनती में जब मैं संयुक्त सचिव के पद पर अपनी 4 वोटों की हार के खिलाफ recounting की मांग कर रहा था तो मेरी मांग का समर्थन कता के बजाए, हमारा पूरा पैनल मूक दर्शक बना रहा।
विरोधी पैनल से महासचिव पद पर बुरी तरह हारे साथी ने मेरी recounting की मांग का विरोध किया फिर भी हमारी तरफ से महासचिव सीके नायक ने मुँह नहीं खोला। अध्यक्ष जयशंकर गुप्त भी खामोश रहे। बाकी सभी साथियों ने खामोशी ओढ़ना ही राजीनीतिक जरूरत समझी। चुनाव अधिकारियों ने हमारे पैनल को भी मेरे साथ खड़ा न देख recounting की मांग खारिज कर दी।
अलबत्ता मेरे लिए दूसरे पैनल के होने के बाद भी कोषाध्यक्ष पद पर शानदार जीत दर्ज करने वाले संतोष ठाकुर महासचिव उम्मीदवार अरविंद शर्मा समेत कई अन्य साथियों ने उपयुक्त समय पे recounting मांग रखी। सभी की मांग खारिज कर दी गई। माँग खारिज होने के बाद जयशंकर गुप्त ने दो चार शब्द बोलना मुनासिब समझा। वे तब बोले जब recounting का फैसला खारिज कर दिया गया। उन्हें पता था अब कुछ नहीं हो सकता।
ठीक है। शायद यही राजनीति है। सीख मिली। क्या 4 वोट के मामूली अंतर से हार के बाद मेरा recounting की मांग करना गलत था? क्या मेरे साथियों को मेरा साथ नहीं देश चाहिए था? ये सवाल अब वायुमंडल में तैरने को छोड़ता हूँ।
जीते हुए सभी साथियों को जीत मुबारक। शुभकामनाएं। क्या हुआ आपको पता होना चाहिए, सो बताया। पर आप सब के लिए लड़ेंगे साथी।
वरिष्ठ पत्रकार शिशिर सोनी की एफबी वॉल से।
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