Nadim S. Akhter : “आह !!! प्रो Raghav Chari आज IIMC की जिम्मेदारियों से मुक्त हो गए. लेकिन मेरे लिए इसके अलग मायने हैं. मतलब अाज के बाद जब मैं उनके कमरे में जाऊंगा तो गर्मजोशी से भरी उनकी आवाज, उनका इस्तकबाल और उनका मुस्कुराता चेहरा वहां नहीं होगा. अब मुझे ये कहने का मौका नहीं मिलेगा कि सर, ये शर्ट आप पे बहुत जंच रही है. स्मार्ट लग रहे हैं और फिर हंसते हुए वे कहेंगे कि अरे यार !!! मैं तो स्मार्ट ही हूं हमेशा से !!! IIMC का सिर्फ वो कमरा ही खाली नहीं हुआ, हमारे दिलों के कई कोने वीरान हो गए. क्या कहूं उनके बारे में. अगर वे ना होते तो आज, मैं, मैं ना होता. आईआईएमसी तो एक बहाना था.
मेरे जैसा आदमी अगर इतने दिनों तक यहां टिका तो इसकी वजह सिर्फ और सिर्फ चारी साब थे. कई दफा मैं उनसे कह भी देता कि अगर आप यहां ना होते, तो मैं सब कुछ छोड़छाड़ कर कब का यहां से चल देता. और फिर वो मुस्कुरा देते. कहते- अरे नहीं, ऐसा भी कभी होता है !!! आप लोग टैलेंटेड लोग हो और जो कुछ भी हो, अपनी काबलियत के बल पर हो. मैं खुशनसीब हूं कि पत्रकारिता में जहां मृणाल पांडे और मधुसूदन आनंद जैसे गुणी सम्पादकों के साथ काम करने का मौका मिला, उनका बेहिसाब प्यार मिला, पग-पग पर मार्गदर्शन मिला वहीं जब एकेडेमिक्स में accidentally आया (वो भी एक करीबी मित्र की सलाह पे) तो IIMC में राघवचारी साहब का साथ मिल गया. पहले में यहां बतौर एक छात्र पढ़ाई करके गया था लेकिन अब उनके मार्गदर्शन में मुझे रेडियो-टीवी डिपार्टमेंट के संचालन में अपना योगदान देना था.
मैं असमंजस में था कि IIMC जॉइन करूं या ना करूं क्योंकि मैं active journalism छोड़कर यहां आने से कतरा रहा था. फिर एक दिन चारी साहब ने बुलावा भेजा कि एक बार आकर उनसे मिलूं. मैं आया, उनसे मिला, उन्होंने कॉफी पिलाई और फिर ढेर सारी बातें हुईं. और उस मुलाकात के बाद मैंने फैसला कर लिया कि Journalism से ब्रेक लेकर मुझे IIMC आना चाहिए. और फिर मैं यहां आ गया. चारी साहब मेरे गुरु हैं. साल 2000-2001 के दौरान IIMC में उन्होंने मुझे पढ़ाया था लेकिन इस दफा वो बिलकुल एक अलग अवतार में दिख रहे थे. एक-एक चीज समझाते कि एकाडेमिक्स में कहां क्या-क्या करने की जरूरत है, किन चीजों को नजरअंदाज करना चाहिए और एक शिक्षक के रूप में आपसे छात्रों की क्या अपेक्षा रहती है. एक पत्रकार के रूप में आप अलग अवतार में रहते हैं और एक टीचर के रूप में बिलकुल अलग रूप में, ये उन्हीं से सीख-जान पाया. बस ये समझिए कि उन्होंने उंगली पकड़कर मुझे सबकुछ सिखाया. और सम्मान-प्यार-दुलार-स्नेह इतना दिया कि पूछिए मत !!! कभी लगा ही नहीं कि वे मेरे टीचर-गुरु-कलीग-बॉस हैं.
हमेशा एक दोस्त की तरह व्यवहार किया, एक अभिभावक की तरह मेरे साथ खड़े रहे. इसी बीच वो दौर भी आया, जब मेरे व्यक्तिगत जीवन में तूफान उठ खड़ा हुआ. लगा सब कुछ बिखर रहा है. चीजें मेरे कंट्रोल के बाहर जा रही थीं. वो ताड़ तो गए थे कि कुछ गड़बड़ है, पूछा भी कि सब ठीक है ना !!! पर मैं असमंजस में था कि उन्हें बताऊं या ना बताऊं. फिर एक दिन उनसे लम्बी बात हुई. सारा हाल कह सुनाया. और पता है, मेरी बातें सुनने के बाद उन्होंने जो बातें मुझे बताईं-समझाईं, वह कोई पिता ही अपनी सगी औलाद को बता सकता है. उन्होंने मुझे उस मानसिक स्थिति से निकलने में मदद की, जिसमें मैं बुरी तरह फंस गया था. हिम्मत तो थी मुझमें, खुद को संभाले हुए भी था, किसी और को पता नहीं चलने दिया लेकिन गुरु की नजर पारखी होती है. चारी साहब समझ गए थे कि मेरे साथ सब कुछ ठीक नहीं है. और ये उनका प्यार ही था कि मैंने अपना दिल खोलकर उनके सामने रख दिया. उन्होंने मुझे जीवन और परिस्थितियों से compromise करने की सलाह दी, बहुत कुछ बताया, अपने निजी जीवन के अनुभव साझा किए पर फैसला मुझ पर छोड़ दिया और कहा कि जो ठीक लगे, आप करो. पर वे चाहते रहे कि मैं समझौता कर लूं और मेरा स्वभाव है कि मैं टूट जाऊंगा पर समझौता नहीं करूंगा और ना मैंने किया. पर उनकी कही एक-एक बात मेरे लिए किसी अमृत से कम ना थी.
और इसी का कमाल था कि मैं दुबारा उठ खड़ा हुआ. लोग कहते हैं कि आप बहुत मैच्योर हैं, समझदार हैं लेकिन चारी साहब के सामने मैंने कभी नहीं चाहा कि मैं मैच्योर बनूं. हमेशा यही चाहता रहा कि उनसे liberty लूं. के ऐसा करूंगा तो क्या होगा, वैसा करूंगा तो क्या होगा. और इसी क्रम में उनसे बहुत कुछ सीखता चला गया. इसे यूं भी कह लें कि उन्होंने अपने जीवन के सारे अनुभवों का निचोड़ मुझे बता दिया-सिखला दिया-समझा दिया. गुणी सम्पादकों (मुृणाल पांडे-मधुसूदन आनंद-बालमुकुंद सिन्हा आदि क्योंकि इनके बाद की पीढ़ी वाले सम्पादक दूसरों को कितना बता-सिखा पाएंगे, मुझे नहीं पता. हां, Qamar Waheed Naqvi साहब के साथ टीवी में काम नहीं कर पाया, इसका मलाल ताउम्र जरूर रहेगा और जब उनसे मिला था तो ये बात मैंने उनसे कही भी थी) की एक पीढ़ी के साथ काम करने का फायदा ये रहा कि जिस तरह पत्रकारिता में अब कोई मेरा हाथ नहीं पकड़ सकता, ठीक उसी तरह राघवचारी साहब के साथ काम करने का असर ये हुआ कि अब Academics में भी कोई मेरा हाथ पकड़ नहीं पाएगा.
उन्होंने मुझे इस काबिल बना दिया कि अब मैं अपने दम पर पत्रकारिता का पूरा कोर्स स्ट्रक्चर बनाकर एक पूरा डिपार्टमेंट सफलतापूर्वक चलाने का हौसला रखता हूं. छोटी से छोटी बारीक बातें, जो आपको कहीं किसी किताब में नहीं मिलेंगी, उन्होंने मुझे बताईं-समझाईं और बहुत कुछ करके दिखाया. लोग समझते हैं कि मैं यहां IIMC में पढ़ा रहा हूं लेकिन सच्चाई तो ये थी कि मैं यहां Prof. Chari का स्टूडेंट था और यहां मेरी ट्रेनिंग चल रही थी. चारी साहब आज भले IIMC से चले गए हों लेकिन मेरी ये ट्रेनिंग ताउम्र जारी रहेगी. वे मुझे जीवनभर पढ़ाते रहेंगे. आज जब उनको छोड़ने कार तक गया तो मैंने उनसे हाथ मिलाया और उनकी मुलायम हथेली को दबाते हुए कहा कि –Thank you so much Sir for everything !!! इसके अलावा मेरे मुंह से कोई और शब्द नहीं निकला और ना ही कुछ बोल पाया. मेरी बात सुनकर चारी साहब मुस्कुरा दिए, थोड़ा इमोशनल हुए, जवाब में Thank you बोला और गाड़ी में बैठ गए. लेकिन मेरे इस Thank you का मतलब वहां खड़ा दूसरा कोई समझ नहीं पाएगा. ये बात सिर्फ और सिर्फ चारी सर समझ रहे थे. और मैं समझ रहा था. Once again Thank you Chari Sir for everything you have done for me. I will miss you but I know you are around.
अभी अलविदा मत कहो दोस्तों, के फिर हमारी मुलाकात होनी है
के फिर वो मंजर बनने हैं, के फिर कई दौर की बात होनी है.
(आज पहली दफा चारी साब के साथ IIMC के मेन गेट पर फोटुक खिंचवाई. और एक शानदार लम्हा कैमरे की इलेक्ट्रॉनिक सर्किट में कैद हो गया)”
पत्रकार और शिक्षक नदीम एस. अख्तर के फेसबुक वॉल से.
saccha patrakar
September 1, 2015 at 10:34 am
chaari sir is a well known name in school of journalism he is simply as he always tell people… you are GENIUS 🙂 take care Mr. chari