कृष्ण कल्पित-
कहानी क्या है, कोकशास्त्र का गुटका संस्करण है!
‘हंस’ के मई अंक में प्रकाशित चर्चित लेखिका रजनी मोरवाल की कहानी ‘कोका किंग’ बहुत साहसिक, बोल्ड और पोर्न का परस करने वाली कहानी लिखी गई हैं । स्त्री-यौनिकता को लेकर इस तरह की कहानियाँ हिंदी में कम है । मृदुला गर्ग के उपन्यास ‘चितकोबरा’ के (बहु)चर्चित कर दिए गए चार पन्ने भी इस कहानी के सामने मासूम और पवित्र नज़र आते हैं ।
कुछ दिनों से चरमसुख-चरमसुख का ढोल बजाती नारीवादियों को तो यह कहानी ज़रूर पढ़नी चाहिए । इस कहानी की मध्यमवय की खेली-खाई नायिका चरमसुख की भीख नहीं मांगती बल्कि वह सीधे अपना पर्स उठाकर किसी पंचसितारा होटल का रुख़ करती है और रात-भर के लिए एक कोका-किंग/पुरुषवेश्या/जिगोलो/मेल एस्कॉर्ट को बुक करती है और चरमसुख/चर्म सुख प्राप्त करने की कोशिश करती है ।
यह किस वर्ग की नायिका है जो अपनी ऊब और चरमसुख की चाहना/वासना में दस हज़ार जिगोलो पर, दस हज़ार होटल पर और दस हज़ार पेय/वेय पर जब चाहे तब ख़र्च कर सकती है ? उच्च वर्ग की या उच्च मध्यमवर्ग की जिसके पास उड़ाने को पैसा है और प्राप्त करने को चरमसुख ।
यह सच है कि इन दिनों वेश्याओं की बनिस्पत पुरुष वेश्याओं की मांग अधिक है । बढ़ती हुई बेरोज़गारी ने भी ज़रूर इसमें इज़ाफ़ा किया होगा । यह व्यापार गुप्त रूप से चलता रहा है लेकिन अब यह स्टेटस-सिंबल बनता जा रहा है । यह कोई कम क्रांति नहीं कि आज की औरतें न केवल इन विषयों पर चर्चा करती हैं बल्कि वे इसके लिए आंदोलन भी करती हैं और कहानी भी लिखती हैं ।
यह कहानी हमारे बदलते हुए समय की कहानी है जो देहधर्म पर ही नहीं रुकती बल्कि वह पुरुषवेश्या की मज़बूरी और वेदना तक जाती है । आज से सौ बरस पहले ऐसी क्रांतिकारी कहानियाँ लिखी जाती थीं जब पुरुष लेखक किसी वेश्या के पास जाते थे और थकहार कर उस वेश्या की कहानी सुनते थे कि उसे किस मज़बूरी में यह पेशा अख़्तियार करना पड़ा । कामुकता से वेदना की तरफ़ जाने वाली कहानी ।
रजनी मोरवाल की भी कहानी वैसी ही है बस यहाँ पुरुष की जगह स्त्री और वेश्या की जगह जिगोलो ने ले ली है । रजनी मोरवाल की भाषा मोहक है और उनमें स्थितियों के वर्णन का भरपूर कौशल है । यह इस बात से साबित है कि शुरू करने के बाद मुझे यह कहानी पूरी पढ़नी पड़ी ।
सवाल है कि यदि राजेन्द्र यादव ‘हंस’ के सम्पादक होते तो क्या वे इसे प्रकाशित करते । ज़रूर करते । जनवाद को सेक्स से जोड़ने का पुनीत कार्य वे करते रहे हैं । उनकी ‘हासिल’ कहानी भी इसी तरह की थी । हो सकता है राजेन्द्र यादव रजनी मोरवाल से और मिहनत करवाते और हो सकता है इसे उपन्यासिका में परिवर्तित करवाते और सेक्स-प्रसंगों के वर्णन को विस्तृत करने को कहते ।
रजनी मोरवाल कुछ विवादों के बावज़ूद हिंदी की चर्चित कथाकार रही हैं । यह तय है कि ‘कोका किंग’ जैसी बोल्ड कहानी लिखने के बाद वे अधिक चर्चित होंगी ।
रजनी मोरवाल को हिंदी की ऐसी वयस्क/साहसिक/बोल्ड/सॉफ़्टपोर्न कहानी लिखने के लिए साधुवाद । आपको यह कहानी पढ़नी ही चाहिए/होगी ।
कोई दूसरा रास्ता नहीं !