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सुख-दुख

रवीश कुमार ने लॉंच की अपनी वेबसाइट

रवीश कुमार-

नमस्कार दोस्तों , मैंने अपने लिए एक नई वेबसाइट बनाई है। RAVISHKUMAR.ORG नाम से। हमारे पास अपने लिखे हुए पर सोशल मीडिया के मालिकाना हक़ से निकलने का रास्ता होना चाहिए। सोचिए कोई पेज बंद हो जाए और हाड़ तोड़ मेहनत से लिखा सारा कुछ किसी और के क़ब्ज़े में रह जाए। आपका लिखा लोगों तक पहुँचे यह भी आपसे ज़्यादा सोशल मीडिया की टेक्नॉलजी कंपनी के हाथ में हैं। क्योंकि आप कहीं पहुँचने के लिए श्रम नहीं करना चाहते हैं। सब कुछ एक जगह चाहते हैं। इसी आदत से लड़ना है। यहाँ भी घूम फिर कर देखना और जानना है।ज़्यादा लाइक्स और लाखों लोगों तक पहुँचने की ज़िद अच्छी नहीं है। इसी ज़िद में राजनीति बर्बाद हो गई। तो धीरे धीरे अब इसी वेबसाइट पर लिखना होगा। आपमें से जो पढ़ने के लायक़ समझेंगे उस साइट तक पहुँच ही जाएँगे।

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यह मेरी अपनी एक छोटी सी जगह होगी। जहां लिखने का एक ही दबाव होगा कि मेरा मन करे, मुझे लगे कि इस पर लिखना चाहिए तभी लिखूँगा। पहले की तरह खूब पढ़ने और विचारने के बाद लिखूँगा। जहां लिखना एकांत की प्रक्रिया हो। बहुत सी किताबें पढ़ने का इंतज़ार कर रही हैं। आप भी नई नई किताबें पढ़ें। सोचें समझें। सोशल मीडिया जीवन का हिस्सा है। इसे हिस्से की तरह ही बरतें। जीवन न बनाएँ। हमारे काम की सबसे ख़राबी अब यही है कि सोशल मीडिया जीवन से भी ज़्यादा हो गया है। दिनभर रहना पड़ता है। इसका विकल्प न हो लेकिन इसके व्यवहार को फिर से नियंत्रित करना होगा।

मैं पहले रेडियो रवीश के नाम से पॉडकास्ट करता था। उसका अभ्यास कर रहा हूँ। जल्दी ही पॉडकास्ट भी शुरू करने वाला हूँ। मैंने पिछले साल कम लिखा है। हाथ का दर्द अभी ठीक होने में लंबा वक्त लगेगा।

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इसलिए जीने की रफ़्तार धीमी कर रहा हूँ।यह बेहद ज़रूरी सबक है। उम्र के साथ पीछे हटने का अभ्यास भी करना चाहिए और ख़ुद को नए काम या विषय की तरफ़ मोड़ना चाहिए तभी आप नया सीखेंगे । लोकप्रियता एक दुश्चक्र बनाती है। आप खुद को प्रासंगिक बनाए रखने के रोग के शिकार हो जाते हैं। मैं नहीं हुआ लेकिन इसका दबाव तो रहता ही है। आपमें से कई लोग पूछ भी रहे हैं कि मैं यहाँ वहाँ क्यों नहीं दिखता। मुझे दिखना ही नहीं था। मैं धीरे धीरे एक दिन ओझल हो जाऊँगा !

आपने वो गाना सुना होगा जिसके बोल हैं मुझको देखोगे जहां तक मुझको पाओगे वहाँ तक। मैं ही मैं हूँ दूसरा कोई नहीं। यह गाना प्रेम के जोश के लिए ठीक है लेकिन पढ़ने लिखने की दुनिया के लिए नहीं। मैं अब दूसरों के काम में ज़्यादा दिलचस्पी लेता हूँ। दूसरों का लिखा पढ़ता हूँ। वरना कई लोगों को इस रोग का शिकार होते देखा है। जिन्हें लगता है कि हर चीज़ वो पढ़ चुके हैं। हर चीज़ वो जान चुके हैं। हर चीज़ वो लिख और बोल चुके हैं। बहुत मुश्किल होता है दूसरों को सुनना और पढ़ना। मैं इस बीमारी और मुग़ालते से दूर रहना चाहता हूँ। आप भी नए नए लोगों का लिखा खोज कर पढ़ें। उनका हौसला बढ़ाएँ। मेरा कोटा पूरा हो चुका है। मुझे पार्क में टहलता देखें तो अकेला छोड़ दें। मैं आपके प्यार को अपने एकांत में महसूस करना चाहता हूँ।

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मैं चाहता हूँ कि इस बीमारी से दूर रहने का संघर्ष आप भी करें। त्योहार आता नहीं कि लोग मैसेज भेजने लग जाते हैं। आप भी भेजते हैं। मैं भी भेजता हूँ। पूरा दिन इस बीमारी में निकल जाता है। अब मैंने नियम बनाया है। किसी बधाई संदेश का जवाब नहीं दूँगा।आप भी न दें। कितना समय जाता है। इस समय को बचा कर कोई अच्छा लेख साझा करें। किसी किताब की सूचना साझा करें। और नेता के झूठ से सावधान रहें। उसके झूठ ने इस मुल्क को बर्बाद कर दिया है। अब आपकी भूमिका भी समाप्त हो चुकी है। जनता बनने का अभ्यास शुरू कीजिए।

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