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सियासत

देश में 97.5 फीसद नागरिकों ने कानून का उपयोग नहीं किया

JP Singh

छत्तीसगढ़ आरटीआई के तहत सभी सालाना रिपोर्ट फाइल करने वाला अकेला राज्य, उप्र ने एक भी नहीं दी

कल 12 अक्टूबर को आरटीआई दिवस था। देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ मजबूत हथियार के रूप में लागू किये गये सूचना के अधिकार (आरटीआई) कानून के उपयोग की गति बीते 14 सालों में धीमी रही है और सिर्फ 2.5 फीसदी लोगों ने इस कानून का इस्तेमाल किया। देश में 97.5 फीसद नागरिकों ने कानून का उपयोग नहीं किया तब भी सरकारें सुचना देने में इतना डॉ गयीं कि इस कानून को ही भोथरा बनाने की उच्च स्तरीय कोशिशें हो रही हैं।सूचना मांगने वालों को सुचना आयोग के स्तर पर हतोत्साहित/ उत्पीडित किया जा रहा है।देशभर में कई आरटीआई एक्टिविस्टों की हत्याएं तक हो चुकी हैं। राज्यों के मामले में उत्तर प्रदेश ने 14 साल में एक भी वार्षिक रिपोर्ट पेश नहीं की है, जबकि बिहार सूचना आयोग की अब तक वेबसाइट भी नहीं बन पायी है।

ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया (टीआईआई) ने शुक्रवार को एक रिपोर्ट पेश की, जिसके मुताबिक आरटीआई एक्ट के तहत सभी सालाना रिपोर्ट फाइल करने वाला छत्तीसगढ़ अकेला प्रदेश है। उधर, उत्तर प्रदेश ने 2005 यानी जब से यह एक्ट लागू हुआ है, तब से अब तक एक भी रिपोर्ट फाइल नहीं की है। आरटीआई एक्ट के तहत यह रिपोर्ट देना आवश्यक है।आरटीआई डे की पूर्वसंध्या पर टीआईआई ने यह रिपोर्ट जारी की है । इसके लिए संस्था ने देश के 28 राज्यों के सूचना आयोग की कार्यप्रणाली का विश्लेषण किया।रिपोर्ट के मुताबिक, छत्तीसगढ़ ने 2005 से 2018 तक आरटीआई एक्ट के तहत अपनी हर रिपोर्ट प्रकाशित की। 28 में से केवल 9 राज्य ऐसे थे, जिन्होंने 2017-18 तक की सालाना रिपोर्ट प्रकाशित की। इनमें जम्मू-कश्मीर शामिल नहीं था।

आरटीआई एक्ट 2005 का सेक्शन 25(1) कहता है कि केंद्रीय सूचना आयोग और राज्यों के सूचना आयोगों को एक्ट के प्रावधानों को लागू करने को लेकर एक सालाना रिपोर्ट तैयार करना आवश्यक है। इसकी कॉपी संबंधित सरकारों को भी भेजनी होती है।रिपोर्ट में सामने आया कि सूचना अधिकारी के तौर पर महिलाओं की नियुक्ति के मामले में भी राज्य पीछे हैं। केवल 7 राज्यों में ही महिलाओं की हिस्सेदारी है। सभी स्वीकृत पदों में केवल 4.5% पर महिलाओं की नियुक्ति की गई है। एक सूचना आयोग में 10 इन्फर्मेशन कमिश्नर के पद होते हैं। इनके अलावा चीफ इन्फर्मेशन कमिश्नर होता है।टीआईआई के आंकड़े बताते हैं कि चीफ इन्फर्मेशन कमिश्नर और इन्फर्मेशन कमिश्नर के 155 पदों में से 24 पद अभी खाली हैं। पिछले साल के बाद से खाली पदों की संख्या घटकर आधी रह गई है।

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रिपोर्ट के मुताबिक, बिहार को छोड़कर सभी राज्यों की वेबसाइट चालू हालत में हैं। हालांकि, गुजरात और राजस्थान को छोड़कर बाकी राज्यों की सूचना आयोग की वेबसाइट महज रस्म अदायगी है, क्योंकि इनमें केवल बेसिक जानकारी ही दी गई है। इसमें सूचना आयोग की कार्यप्रणाली के बारे में वास्तविक जानकारी नहीं दी गई। एक्ट के तहत तमिलनाडु में 2005 से अब तक 4.61 लाख शिकायतें और अपील की गईं। यह सबसे ज्यादा है, जबकि तेलंगाना में इसी समयावधि में 10,619 और पश्चिम बंगाल में 20058 अपील और शिकायतें की गईं।

मनमोहन सरकार ने सरकारी कामकाज की जानकारी मांगने का अधिकार आम जनता को देने के लिए साल 2005 में सूचना का अधिकार कानून (आरटीआई) बनाया गया था।यह कानून भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में बेहद कारगर हथियार भी साबित हो रहा है।इस कानून को बने 14 साल गुजर चुके हैं, लेकिन देश के 97.5 फीसदी लोगों ने इसका आजतक इस्तेमाल ही नहीं किया।

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रिपोर्ट के मुताबिक सबसे ज्यादा 78 लाख 93 हजार 687 आरटीआई आवेदन केंद्र सरकार को मिले। वहीं दूसरे नंबर पर महाराष्ट्र रहा, जहां 61 लाख 80 हजार 69 आवेदन आए।इसके अलावा तमिलनाडु में 26 लाख 91 हजार 396 कर्नाटक में 22 लाख 78 हजार 82 और केरल में 21 लाख 92 हजार 571 आवेदन आए।

केन्द्रीय सूचना आयोग और राज्यों के सूचना आयोगों में आरटीआई के इस्तेमाल से जुड़े तथ्यों के अध्ययन के आधार पर तैयार रिपोर्ट के मुताबिक, केन्द्रीय आयोग की तुलना में राज्यों के सुस्त रवैये के कारण पूरे देश का रिपोर्ट कार्ड प्रभावित हुआ है। रिपोर्ट के अनुसार, आरटीआई के पालन को लेकर जारी वैश्विक रैकिंग में भारत की रैकिंग दूसरे स्थान से गिरकर अब 7वें पायदान पर पहुंच गई हैं। वैश्विक रैंकिंग में जिन देशों को भारत से ऊपर स्थान मिला हैं, उनमें ज्यादातर देशों में भारत के बाद आरटीआई कानून को लागू किया है।

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गौरतलब है कि देश में 12 अक्टूबर 2005 को आरटीआई कानून लागू होने के बाद से हर साल इस दिन आरटीआई दिवस मनाया जाता है। यह कानून केन्द्र सरकार, सभी राज्य सरकारों, स्थानीय शहरी निकायों और पंचायती-राज संस्थाओं में लागू है। झा ने कहा, ‘‘कानून बनने के बाद माना जा रहा था कि इससे भ्रष्टाचार पर लगाम लगेगी और सरकार की कार्यपद्धति में पारदर्शिता आएगी। लेकिन कानून लागू होने के 14 साल बाद भी सरकारी तंत्र में व्याप्त गोपनीयता की कार्यसंस्कृति के कारण अधिकारियों की सोच में परिवर्तन की रफ़्तार धीमी है।’’

वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट.

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