Upendranath Pandey : शेखर भाई, तुमने यह अच्छा नहीं किया! आखिर तुमने फेसबुक फेस न करने की मेरी कसम तुड़वा दी। इसी छह मार्च को इसी जगह मुझे भाई संतोष तिवारी के जाने का दर्द बयां करना पड़ा, आज तुम इस जहां से चले गए। जाते समय तुमने यह भी नहीं सोचा कि हम मम्मी को कैसे फेस कर पाएंगे, जिनके हार्ट तुम्हीं थे। उनके हार्ट को कैसे बचाएं, क्या करें। गुड़िया भाभी अभी कल रात यशोदा अस्पताल से मेरे लौटते समय डबडबाई आंखों से मुझसे हाल पूछ रही थीं, जब मैं तुम्हें पुकार कर आईसीयू से लौटा था। अगर तुम्हें जाना था तो कंधा उचका कर और गर्दन हिलाकर मुझे संकेत क्यों किया कि फिक्र न करो।
स्व. शेखर त्रिपाठी
तुमने अपना वादा तोड़ दिया, आपरेशन थियेटर जाते समय मुझसे कहा था-फिक्र न करो यार, अभी दस मिनट में लौटता हूं, और लौटकर हमें अपने अंदाज में प्यार से गले लगाने की जगह स्वर्ग पहुंच गए, ईश्वर से इंटरव्यू करने। कहते हैं ईश्वर अच्छे लोगों को जल्दी अपने पास बुला लेता है। ईश्वर तेरी यह कौन सी नीति है। हमें वापस कर दे हमारा शेखर, अच्छा न सही–हम उसे बुरा बनाकर भी अपने पास रोक लेंगे। हमें गाली भी दे और मारे भी तो भी गम नहीं, पर उसे इस तरह स्वर्गलोक क्यों ले गए।
बीते शुक्रवार से फौलाद बने शिवम और मुझसे अभी फोन पर रो-रोकर पुकार कर रहे मासूम प्रखर का तो चेहरा देखते भगवन। …और …साइं बाबा, आपसे तो यह उम्मीद बिलकुल नहीं थी। शेखर के शनिवार की सुबर आपरेशन कक्ष में जाने के बाद से आपरेशन पूरा होने तक गुड़िया भाभी तुम्हारे चरणों में बैठी प्रार्थना ही करती रहीं। मैं तो उन्हें और उनके आंसू देख देख कर घबड़ाहट मे हास्पिटल टेंपल से गीता उठाकर पडने लगा था, साईं बाबा तुम क्या कर रहे थे जो भाभी की पुकार नहीं सुन पाए। मम्मी के चेहरे का दर्द नहीं पढ़ पाए।
अब तुम लापरवाही नहीं कर सकते बाबा, मम्मी भाभी शिवम प्रखर सब तुम्हारे हवाले। हे ईश्वर, एक वर्ष के भीतर दो दो मित्रों की विदाई,.. कैसे झेलेंगे हम। यह तो जिंदगी भर का दर्द दे दिया आपने।
(शेखर त्रिपाठी, दैनिक जागरण के इंटरनेट एडीटर थे, और दैनिक जागरण लखनऊ के संपादक, दैनिक हिंदुस्तान वाराणसी के संपादक, आजतक एडीटोरियल टीम के सदस्य रहे। फाइटर इतने जबरदस्त कि कभी हार नहीं मानी, कभी गलत बातों से समझौता नहीं किया। किंतु जागरण डॉट कॉम के संपादक रूप में दायित्व निभाते संस्थान हित में वह दोष अपने ऊपर ले लिया जिसके लिए वे जिम्मेदार ही नहीं थे। चुनाव सर्वेक्षण प्रकाशन के केस में एक रात की गिरफ्तारी और फिर हाईकोर्ट में पेंडिंग केस के कारण बीते छह महीने से संपादकीय कारोबार से दूर रहने की लाचारी ने उन्हें तोड़ दिया। गाजियाबाद के कौशांबी मेट्रो स्टेशन के निकट यशोदा हास्पिटल में उन्होने अंतिम सांस ली)
वरिष्ठ पत्रकार उपेंद्र पांडेय की एफबी वॉल से.