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उत्तराखंड

हमारे पत्रकारिता जीवन का यह 40वां वर्ष है… हम साठ से पहले सठिया गये हैं…

हमारे पत्रकारिता जीवन का यह 40वां वर्ष है। पत्रकारिता हमारे जीवन यापन का साधन न होने के बावजूद जिस शिद्दत से पत्रकारिता के प्रति हमारा समर्पण है, उससे हमारे अधिकतर मित्र परिचित हैं। अपने दो बच्चों को पत्रकारिता में उतारकर हम उत्साहित रहते हैं कि पत्रकारिता के उस मार्ग पर आगे बढने में हमारा योगदान हो रहा है। हमें लगता है कि 60 में तो लोग अक्सर सठिया जाते हैं जबकि हम 60 से पहले सठिया गये हैं। हमारा भानजा जो कम्प्यूटर प्रोग्राम में हमारा गुरु भी है और बीए फाइनल का छात्र है, से पिछले दिनों आगे की पढाई पर चर्चा हुई। उसने एमए मास काम करने की इच्छा जताई तो हमने इनकार कर दिया। सुझाव दिया कि दूसरे कोर्सेज कर सकते हो। एक पत्रकार जो अपने दो बच्चों को पत्रकारिता और सफल पत्रकारिता में उतार चुका हो वह तीसरे बच्चे को ना कहता हो,  हमें स्वयं अपनी हां-ना पर संशय हो रहा है।

<p>हमारे पत्रकारिता जीवन का यह 40वां वर्ष है। पत्रकारिता हमारे जीवन यापन का साधन न होने के बावजूद जिस शिद्दत से पत्रकारिता के प्रति हमारा समर्पण है, उससे हमारे अधिकतर मित्र परिचित हैं। अपने दो बच्चों को पत्रकारिता में उतारकर हम उत्साहित रहते हैं कि पत्रकारिता के उस मार्ग पर आगे बढने में हमारा योगदान हो रहा है। हमें लगता है कि 60 में तो लोग अक्सर सठिया जाते हैं जबकि हम 60 से पहले सठिया गये हैं। हमारा भानजा जो कम्प्यूटर प्रोग्राम में हमारा गुरु भी है और बीए फाइनल का छात्र है, से पिछले दिनों आगे की पढाई पर चर्चा हुई। उसने एमए मास काम करने की इच्छा जताई तो हमने इनकार कर दिया। सुझाव दिया कि दूसरे कोर्सेज कर सकते हो। एक पत्रकार जो अपने दो बच्चों को पत्रकारिता और सफल पत्रकारिता में उतार चुका हो वह तीसरे बच्चे को ना कहता हो,  हमें स्वयं अपनी हां-ना पर संशय हो रहा है।</p>

हमारे पत्रकारिता जीवन का यह 40वां वर्ष है। पत्रकारिता हमारे जीवन यापन का साधन न होने के बावजूद जिस शिद्दत से पत्रकारिता के प्रति हमारा समर्पण है, उससे हमारे अधिकतर मित्र परिचित हैं। अपने दो बच्चों को पत्रकारिता में उतारकर हम उत्साहित रहते हैं कि पत्रकारिता के उस मार्ग पर आगे बढने में हमारा योगदान हो रहा है। हमें लगता है कि 60 में तो लोग अक्सर सठिया जाते हैं जबकि हम 60 से पहले सठिया गये हैं। हमारा भानजा जो कम्प्यूटर प्रोग्राम में हमारा गुरु भी है और बीए फाइनल का छात्र है, से पिछले दिनों आगे की पढाई पर चर्चा हुई। उसने एमए मास काम करने की इच्छा जताई तो हमने इनकार कर दिया। सुझाव दिया कि दूसरे कोर्सेज कर सकते हो। एक पत्रकार जो अपने दो बच्चों को पत्रकारिता और सफल पत्रकारिता में उतार चुका हो वह तीसरे बच्चे को ना कहता हो,  हमें स्वयं अपनी हां-ना पर संशय हो रहा है।

भानजा उमेश के प्रति हमारी वही जिम्मेदारी है जो भाई भोला और बिटिया गंगा के प्रति है। 40 सालों में हमें पत्रकारिता के उन स्तंभों मसलन उद्भट पत्रकार और महान स्वतंत्रता सेनानी रामप्रसाद बहुगुणा का शिष्य होने का सौभाग्य मिला। हमें स्व. अतुल माहेश्वरी सरीखे सहृदय और दोस्ताना सलूक के धनी शख्शियत के निर्देशन में लम्बे समय तक काम करने का अवसर मिला। हमने देखा कि भाई नरेन्द्र उनियाल के पौडी आने की सूचना पर ही जिला प्रशासन सर्तक हो जाता था, हमने देखा कि उत्तराखण्ड आब्जर्बर का हर अंक किसी न किसी खुलासे के साथ आता था और भ्रष्ट अधिकारियों की नींद उड़ी होती थी। हमने विपिन दा के द्रोणाचल प्रहरी को देखा कि जनता की आवाज कोई अखबार कैसे बन जाता है। हमने ‘जंगल के दावेदार’ के संपादक पीसी तिवारी को कहते सुना कि हमारा अखवार बड़े अधिकारियों या नेताओं का नहीं, जनता के लिए आरक्षित है। लम्बे अंतराल में बहुत अच्छी-बुरी बातें हैं।

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आज के परिदृश्य पर नजर जाती है तो लगता है कि जिस प्रकार नेतागिरी का अवमूल्यन हुआ उसी प्रकार पत्रकारिता का भी। पत्रकार आज चैनल और मीडिया संस्थानों में शोषण का औजार बन गया है। चाहे स्टिंगर हो या पे रोल का कर्मी, इमानदारी से काम करने वाला कोल्हू का बैल है, जब चाहो जोत लो और जब चाहे लात मार दो।  ऐसा पेशा जो आपका भविष्य सिक्योर न करता हो, जो आपको शोषण का औजार बनाता हो और जिसमें आपकी समय, स्वास्थ्य और  साधनों की कोई परवाह न हो कम से कम हम अपने परिजनों को उसमें नहीं लायेंगे। चाहे हम सठिया ही गये हों। हां, वैकल्पिक पत्रकारिता के लिए हम आज भी प्राण पण से समर्पित हैं और उस हेतु नई पीढी को प्रेरित भी करेंगे।

लेखक पुरुषोत्तम असनोड़ा उत्तराखंड के वरिष्ठ पत्रकार हैं.

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