रवि प्रकाश-
जिंदगी आराम से चल रही थी। तभी एक दिन अचानक कैंसर ने दस्तक दे दी। अंतिम स्टेज में मेरे शरीर में घुस आया। मेरी साँसें अब चंद घंटे, महीने या साल की मेहमान थीं। उसका भी कोई तय समय नहीं। दुनिया से जाने का वक्त कब आ जाए, इसकी कोई गारंटी आज भी नहीं है।
तभी मैंने कैंसर को समझना शुरू किया। मरीज़ों की दिक़्क़तें समझी तो फिर इसकी आवाज उठानी शुरू की। मुझे ख़ुशी है कि IASLC जैसी प्रतिष्ठित संस्था ने इसे recognises किया और मुझे इस साल के प्रतिष्ठित 2024 IASLC Patient Advocate Educational Award के लिए चुना।
कल जैसे ही यह खबर वायरल हुई, तमाम दोस्तों ने बधाइयाँ भेजनी शुरू कर दी। सोशल मीडिया पोस्ट लिखे। मैं जानता हूँ कि आप सब मुझे कितना प्यार करते हैं। मैं आपके सपोर्ट, दुआएँ और मोहब्बत की वजह से ही ज़िंदा हूँ। कृतज्ञ हूँ आप सबका। मेरी ज़िंदगी पर आप सबका उधार है। यह जिंदगी नहीं चल पाती अगर टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल, मुंबई के प्रोफ़ेसर और मेरे डॉक्टर कुमार प्रभाष और उनकी टीम नहीं होती, राँची के मेरे अंकोलॉजिस्ट डॉ गुंजेश कुमार सिंह नहीं होते। मेरे पैंक्रियाटाइटिस को ठीक रखने वाले डॉ अंतरिक्ष कुमार, आँखों की डॉ भारती कश्यप, स्किन के डॉ कुमार प्रतीक और डायबीटीज़ को नियंत्रित रखने वाले डॉ अंकित श्रीवास्तव का भी आभार।
आपने न केवल मेरा इलाज किया बल्कि इज़्ज़त और मोहब्बत भी दी। मेरा परिवार आप डॉक्टर्स का आभारी है। आभार लंग कनेक्ट की शानदार टीम का भी, जिसने कभी लगने ही नहीं दिया कि मैं बीमार हूँ। आभार मेरी संपादक रुपा झा और बीबीसी के सभी साथियों का, जो मज़बूत दीवार की तरह मेरे पीछे खड़े हो गए। मुझे लड़खड़ाने ही नहीं दिया।
इस कैंसर ने मौत निश्चित कर दी लेकिन इतने लोगों से मेरा वास्ता भी कराया, इसलिए कैंसर का भी शुक्रिया। मेरी पत्नी संगीता और बेटे प्रतीक को प्यार, जिन्होंने मेरी हर ज़रूरत का ख्याल रखा। हम कभी साथ रोए, तो कभी अगले ही पल कॉफी भी पी। आभार उनका भी, जो मेरी इस यात्रा में कहीं नजर नहीं आए। यह पुरस्कार आप सबको और कैंसर के लाखों मरीज़ों को समर्पित है। सबको प्रणाम।
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लंग कैंसर से पीड़ित पत्रकार रवि प्रकाश को इस प्रतिष्ठित अवार्ड के लिए चुना गया है!
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