
पंकज कुमार झा-
नहीं रहे सहारा! सहारा से अनेक यादें जुड़ी हुई हैं। अपन इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में करियर बनाने की सोच के साथ पहुंच गये थे भोपाल। प्रसारण पत्रकारिता में जब एम ए करने। तब समूचे एशिया में अकेला माखनलाल विश्वविद्यालय ही इस विषय में मास्टर का डिग्री कोर्स चलाता था। एशिया का पहला पत्रकारिता विश्वविद्यालय भी उसे कहा जाता है।
यह इक्कीसवीं सदी के बिल्कुल शुरुआत की बात है। तब प्रवेश पा सके छात्रों की आशा का अकेला केंद्रबिंदु ईटीवी हुआ करता था। हमारे अनेक वरिष्ठ और कनिष्ठ साथी वाया ईटीवी ही आगे राष्ट्रीय चेहरा बने। अन्य अनेक बड़े पत्रकार बने लोगों ने भी उसी समय यह संस्थान से शुरुआत की थी। तब चयन के बाद ईटीवी नहीं जा पाने की एक अलग कहानी है। बहरहाल।
तब आया था सहारा। उसका राष्ट्रीय चैनल तो था ही, ईटीवी से प्रतिस्पर्धा में उसने भी अपना क्षेत्रीय चैनल लांच करना शुरू कर दिया था। शीघ्र ही प्रदेशों में काफी स्थापित हो गया था वह। कोर्स के अंतिम सेमेस्टर में इंटर्नशिप करने पहुंच गया था सहारा। उसके राष्ट्रीय चैनल के ब्यूरो में काम करने पटना चला गया था।
गजब का अनुभव मिला वहां दो-ढाई महीने में। हालांकि इंटर्न के पास करने को कुछ अधिक नहीं होता, फिर भी बिहार है तो खबरें हैं। वहां की उर्वर धरती कभी समाचारों के मामले में निराश नहीं करती। खूब अपहरण हुए उन दिनों, लगातार अपराधों और हत्याओं का दौर चल रहा था। रात के दो-दो बजे कमरे पर पहुंचता था कई बार, काम निपटाने के बाद। राष्ट्रपति कलाम को कवर करने से लेकर लालू यादव से नये रूप में ‘मुठभेड़’ तक लंबा अनुभव है वहां का। रोचक संस्मरण भी। तब शशि रंजन जी वहां ब्यूरो प्रमुख हुआ करते थे। खैर।
इंटर्न का समय समाप्त हुआ और फिर आगे दिल्ली की तरफ निकलना था। इंटर्न का सर्टिफिकेट और कुछ संपर्क ही बचा था सहारा अपना एकमात्र। उस समय थोड़ा बहुत ठीकठाक था व्यक्तित्व, नोएडा के सेक्टर 11 में बड़ा सा ऑफिस था उसका जिसमें सभी कार्यालय वहीं थे। उनके टाउनशिप का भी दफ्तर वहीं था और रिसेप्शन भी एक ही। बताते हुए हँसी आ रही है, नोएडा में एक दो बार तो ऐसा हुआ कि रिसेप्शन पर वार्म स्वागत मिला, उन्हें गलतफहमी हो गयी थी कि अपन उनके हाउसिंग प्रोजेक्ट के बारे में पूछताछ करने आये हैं। फिर पता चलते ही कि नौकरी मांगने आया हूं, बेचारी स्वागतोत्सुक बालिका का चेहरा देखने लायक था फिर।
तब प्रतीक्षा में ही था जॉब की, वहां काम कर रहे संस्थान के सीनियर्स के आश्वासन, इंटर्न का अनुभव .. इसके सहारे चल रहा था संघर्ष अपना। एक थोड़ी ठंडी सी सुबह सहारा के सेक्टर 11 के गेट पर ही था अपने बायोडेटा वाली फाइल के साथ कि घर से फोन आया था – पिताजी नहीं रहे। आदत है लिखते-लिखते बहक जाने की।

मोटे तौर पर सहारा से अधिकांश उत्तर भारतीयों का जुड़ाव किसी न किसी रूप में रहा ही है। सबसे पहला निवेश काफी कम उम्र में अपन ने सहारा में ही किया था, और तय समय पर ही अच्छा रिटर्न मिल गया था। फिर ‘सहारा समय’ नाम का इसका साप्ताहिक पढ़-पढ़ कर एक दृष्टि बनी थी। अद्भुत साप्ताहिक था वह। अखबार क्या, पूरा का पूरा जर्नल होता था वह, तब जर्नलिस्ट बनने की सोचा भी नहीं था, पर आधे किलो का वह साप्ताहिक पांच रुपये में खरीद कर लाता ही था और घोट डालता था उसे। उस समय पांच रुपये भी ठीकठाक पैसे होते थे, फिर भी काफी सस्ता था वह। खूब पढ़ता था उसे। काफी प्रतीक्षा रहती थी। शहर से बुलाना पड़ता था उसे लेकिन लाता अवश्य था। फिर राष्ट्रीय सहारा नाम से उसका दैनिक भी था ही…. लब्बोलुआब यह कि सहारा ने अपने समय में बहुत बड़ा हस्तक्षेप किया था।
उत्थान और पतन प्रकृति का क्रम है। उससे कोई बच भी नहीं सकता। तीन-चार दिन पहले ही एक मित्र बता रहे थे कि एक बार मुख्यमंत्री के शपथ ग्रहण समारोह में बड़े ही तामझाम से पहुंचे ‘सहाराश्री’ केवल इसलिए उल्टे पांव लौट गये थे क्योंकि उनका स्थान आगे की पंक्ति में आरक्षित नहीं था। प्रभुत्व के साथ अहंकार एक बाय प्रॉडक्ट की तरह आ जाता ही है, जो सुब्रत राय के सर चढ़ कर बोलने लगा ही रहा होगा।
उस शिखर से लेकर अंततः बियाबान तक जाने की कहानी सब जानते ही हैं। अंत बुरा ही हुआ सुब्रत का भी। निवेशकों के 24000 करोड़ से अधिक की रकम पचा जाने का मुकदमा अंत तक सुब्रत का पीछा नहीं छोड़ पाया। लंबे समय तक जेल में भी रहे। हालांकि अभियुक्त के जेल में लगातार रहने में मुकदमे के मेरिट का कम, सुप्रीम कोर्ट से की गई बे-अदबी को जज द्वारा निजी रूप में ले लेना अधिक रहा होगा।
एक बात यह भी है कि इतनी बड़ी रकम शायद जनता का नहीं रहा होगा क्योंकि अन्य मामलों की तरह इस मामले में लुटे-पिटे निवेशक अधिक सामने नहीं आये। शायद यह रकम सुब्रत से जुड़े नेताओं की काली कमाई अधिक रही होगी जो समाजवाद के कारण बबुआ धीरे धीरे आ गई थी। उस काली कमाई को सफेद करने में सहारा बने रहे होंगे सुब्रत, जिसे खूब भुगता रॉय ने।
बहरहाल! एक केस स्टडी तो है ही सहारा के उत्थान और पतन की कहानी भी। सहारा प्रणाम।
One comment on “प्रभुत्व के साथ आया अहंकार सुब्रत राय के सर चढ़ कर बोलने लगा था!”
All funds of poor people.pls collect right information before comments.