जनरल साहब कारपोरेट मीडिया के मालिकों पर भी तो कुछ सचबयानी करिए !!

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जनरल साहब आपने अगर मीडिया को #presstitude कहा तो अपने हिसाब से ठीक ही कहा होगा. हो सकता है इस बार खरीद बिक्री में कुछ कमी रह गयी होगी और सौदा नहीं पटा होगा जिसकी परिणति तल्खबयानी में हुई. 

लोग कहते हैं कि आप साहसी हैं, फिर इस साहस का प्रयोग आप कभी मीडिया मालिकों के मनमानेपन के विरोध में क्यों नहीं करते हैं? आप मुकेश भाई को कभी क्यों नहीं डांटते हैं, जो पूरी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को ही अपने जेब में रखते जा रहे हैं? आप ऐसा कोई प्रस्ताव क्यों नहीं देते हैं, जो किसी एक व्यक्ति को मीडिया के सभी माध्यमों पर एकाधिकार स्थापित करने से रोके? आप उन मीडिया मालिकों पर अपने तोप (जुबानी)  क्यों नहीं बरसाते, जो पत्रकारों को न्यूनतम वेज भी देना नहीं चाह रहे हैं और “संगठित अपराध ” जैसा कृत्य करने के लिए प्रयासरत हैं? आप उन मीडिया मालिकों का गिरेबां क्यों नहीं पकड़ते, जो पत्रकारों को आत्महत्या करने के लिए विवश कर रहे हैं? आप उन अमीरों का नाम सार्वजनिक क्यों नहीं करते हैं, जो सौदेबाज हैं और जिनसे सौदा न पटने के कारण आपको गुस्सा आ जाता है? 

मैं जानता हूँ कि  आप किसी से नहीं डरते होंगे जनरल साहब। अपने मुखिया और मुखिया के सुखिया से भी नहीं. तो कुछ कहिये सर, सुना है, आप तोप चलाते हैं तो फिर आतिशबाजी क्यों?  मुंह खोलिए सर जनता बहुत इज्ज़त करती है जवानों की तो जवान की तरह बोलिए “उनकी ” तरह नहीं. वैसे आपके इस दोमुहेपन के कारण को आसानी से समझा जा सकता है. जिस मुखिया के आप मातहत हैं, जनरल साहब उनकी ताजपोशी में इन मीडिया मालिकों का बहुत योगदान है तो हम उस जनरल से ये कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि वो अपने प्रमुख के चहेतों के विरोध में बोले, जो एक वर्ष और नौकरी में बने रहने के लिए तमाम प्रकार के तिकड़म कर चुका हो. 

लेकिन मैं आपको बहुत दोषी नहीं मानता हूं सिंह साहब, क्योंकि हम जिस समाज में रहते हैं वहां का यही दस्तूर है. अगर आपके काम आए तो ठीक, नहीं तो बाजारू और प्रेस्टीट्यूट. देखिए न जनता का एक वर्ग भी आपके इस बयान से खुश है, उसे इस बात का जरा भी इल्म नहीं है कि अभिव्यक्ति पर पाबंदी की ये राह एक दिन उनके मुंह तक भी जाएगी, फिर सिवाय वाल्टेयर का नाम लेकर रोने के और कोई चारा नहीं होगा. मैं इसलिए भी आपको दोष नहीं देना चाहता हूँ जनरल साहब, क्योंकि जो लोग रोज मीडिया के गिरते स्तर का रोना रोते हैं, उनके आंख से एक कतरा भी इस बात के लिए नहीं छलकता है कि चौबीसों घंटे काम करने वाला पत्रकार किन अमानवीय दशाओं में काम करने को मजबूर हैं? बिना पर्याप्त वेतन के कोई विशेषज्ञ कैसे मिलेगा? लेकिन इस ओर किसी का ध्यान नहीं जाता है तो आपका क्यों जाएगा जनरल साहब? इसलिए मैं कहता हूँ कि इसमें आपका कोई दोष नहीं है, ये उन शोषणपसंदों का समाज है, जहाँ लोग तब तक तमाशा देखते रहते हैं, जब तक उनके घर में न आग लग जाए!

सनी कुमार के फेसबुक वॉल से

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