चौबीस साल पुरानी बात है। उन दिनों मैं जनसत्ता अखबार में कार्यरत था और चंडीगढ़ में तैनात था। एक दिन सफीदों का एक पाठक मुझे मिलने आया। वह खासतौर पर ‘असली इंसान’ नामक किताब मुझे देने के लिए आए थे। उन दिनों बहुचर्चित महम कांड हुआ था और मैं महम और ग्रीन ब्रिगेड की गतिविधियों पर रिपोर्टिंग कर रहा था। किताब भेंट करते हुए उन्होंने उस पर लिखा कि पत्रकारिता के असली इंसान को भेंट। वो क्षण मेरे लिए किसी राष्ट्रीय सम्मान से कम नहीं थे। पत्रकारिता में किसी भी पत्रकार की सबसे बड़ी पूंजी उसके पाठक होते हैं। वह पुस्तक मुझे सदैव प्रेरणा देती रही है।
कल रोहतक से राकेश नाम के एक पाठक मुझे मिलने के लिए आए। वह मूलतः कथूरा (सोनीपत) से हैं लेकिन वर्तमान में रोहतक रह रहे हैं। उन्होंने हाल ही में हरियाणा की राजनीति पर प्रकाशित मेरी नई पुस्तक ‘गुस्ताखी माफ हरियाणा’ पढ़ी थी। उनकी प्रतिक्रिया काफी सकारात्मक थी इसलिए संतोष का अनुभव हुआ। रोहतक से दिल्ली आकर उनकी प्रतिक्रिया का प्राप्त करना एक और यादगारी अनुभव बन गया। राकेश से राज्य की राजनीति पर भी खूब चर्चा हुई। उनसे हुई बातचीत में मिलनसार राज्य की संस्कृति और बेबाक स्वभाव के दर्शन यथावत थे।
राकेश मेरे लिए रोहतक से गांव का शुद्ध देसी घी बड़े चाव से लाए थे, मैंने भी उन्हें अपनी एक अन्य पुस्तक पत्रकारिता क्यों और कैसे उपहार में दी। कौन कहता है कि हरियाणा में सिर्फ एग्रीकल्चर है, कल्चर नहीं और पढ़ने लिखने का शौक नहीं है। हिन्दी के पाठकों की संख्या कभी कम नहीं हो सकती क्योंकि अपनी बात को प्रभावपूर्ण ढ़ंग से व्यक्त करने में हिन्दी का कोई सानी नहीं है।
पवन कुमार बंसल