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द वायर ने डिलीट किया इस प्लेटफार्म ने छापा, लेख का मुद्दा भी वजनदार है, देखें- पढ़ें!

यूपी के बलिया निवासी शुभनीत कौशिक, पेशे से शिक्षक हैं. उन्होंने जेएनयू, दिल्ली से आधुनिक इतिहास में पीएचडी की है.

शुभनीत ने एक मामले को लेकर रिसर्च की और फिर पूरा लेख लिखा. यह लेख 29 सितंबर को द वायर नामक न्यूज़ वेबसाइट पर प्रकाशित किया गया था. खबर पब्लिश होने के कुछ घंटे बाद इसे द वायर ने हटा लिया.

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वायर से हटने के बाद यह लेख बोले भारत नाम की न्यूज वेबसाइट ने प्रकाशित किया है.

खबर का शीर्षक है- अज्ञेय के निजी दस्तावेज, अशोक यूनिवर्सिटी और द वायर द्वारा डिलीट किया गया लेख.

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इस लेख को प्रसिद्ध साहित्यकार, कवि, संपादक सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय द्वारा 1980 में स्थापित वत्सल निधि द्वारा अज्ञेय के निधन के 37 वर्षों बाद उनके दस्तावेज एक निजी विश्वविद्यालय अशोका यूनिवर्सिटी के आर्काइव के दिए जाने के मुद्दे से उठाया गया है.

इस लेख में वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी की एक फेसबुक पोस्ट का भी जिक्र किया गया है. उसे नीचे पढ़िए. उससे पहले बता दें कि वरिष्ठ पत्रकार रंगनाथ मिश्रा ने इस लेख को शेयर कर लिखा है, “युवा इतिहासकार शुभनीत कौशिक का जो लेख दि वायर ने प्रकाशन के कुछ देर बाद ही डिलीट कर दिया था, अब उस लेख को बोले भारत पर पढ़ा जा सकता है.”

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यह तो रही इस लेख और लेखक तक की बात. अब ओम थानवी जी ने 25 सितंबर की पोस्ट में क्या लिखा था, वह पढ़िए…

अध्येताओं, शोधार्थियों की जानकारी के लिए —

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वत्सल निधि ने एक निर्णय से सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ के हजारों महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ — पांडुलिपियाँ, विभिन्न आलेख, पत्राचार, आयोजनों के ब्योरे, अन्य काग़ज़ात, कतरनें, चित्र, फ़्रेम, नेगेटिव आदि — समुचित रखरखाव और अध्येताओं-शोधार्थियों की सहज उपलब्धि के लिए अशोक विश्वविद्यालय, सोनीपत के अभिलेखागार के सुपुर्द कर दिए हैं।

निधि के प्रबंध न्यासी के नाते मैंने विश्वविद्यालय जाकर उसके व्यवस्थित अभिलेखागार (Archive of Contemporary India) को देखा। अभिलेखागार के अध्यक्ष प्रोफ़ेसर महेश रंगराजन, निदेशक प्रोफ़ेसर दीपा भटनागर और उनके अन्य सहयोगियों में अज्ञेयजी के दस्तावेज़ों के संरक्षण में बहुत उत्साह पाया।

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न्यास (निधि) और अशोक विवि के बीच हुए लिखित क़रार के अनुसार “अज्ञेय-पेपर्स” की सामग्री का नवीनतम तकनीक से संरक्षण होगा। समूची सामग्री की डिजिटाइज़ किया जाएगा। वह सूचीबद्ध (कैटलॉगिंग) होगी। शोध के लिए समूची सामग्री ऑनलाइन भी उपलब्ध रहेगी।

चित्रों, स्लाइड्ज़ आदि की डिज़िटल सारसंभाल होगी और कटे-फटे चित्रों का सुधार (रिपेयर) करवाया जाएगा; नेगेटिव से पॉज़िटिव प्रिंट तैयार होंगे। ऐतिहासिक महत्त्व के कतिपय दस्तावेज़ों को अभिलेखागार के संग्रहालय में प्रदर्शित किया जाएगा।

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समस्त दस्तावेज़ों का स्वत्वाधिकार (कॉपीराइट) पहले की तरह निधि के पास रहेगा।

प्रसंगवश, अशोक विश्वविद्यालय के अभिलेखागार में द्वितीय राष्ट्रपति सर्वेपल्ली राधाकृष्णनन, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के अलावा चंडीप्रसाद भट्ट, लक्ष्मी सहगल, बालकृष्ण शर्मा नवीन, प्रभाकर माचवे, गिरीश कारनाड, गोपालकृष्ण गांधी, बीजी वर्गीज़, कुलदीप नायर आदि के दस्तावेज़ भी संरक्षित हैं।

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शुभनीत के लेख में विस्तार से इसे लेकर तमाम बातें लिखी बताई गई हैं. सवाल भी उठाए गए हैं. तमाम ऐसी जानकारियां हैं जो हैरान करती हैं. वह लेख उपर दिए गए खबर के शीर्षक पर जाकर पढ़ा जा सकता है.

देखें, ओम थानवी जी की वॉल पर मिली कुछ तस्वीरें…

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शेखर: एक जीवनी की पांडुलिपि, अज्ञेय की लिखाई में। जेल में बंदीकाल में लिखे उपन्यास के दोनों खंड अपने आप में दस्तावेज़ हैं। हाशिए पर टिप्पणियाँ, अँगरेज़ी इबारतें, काट-छाँट लेखक के ‘कारख़ाने’ की अलग छवि देती हैं। (बाद में ये आरंभिक पन्ने उपन्यास में लेखक ने शामिल नहीं किए। जैसा कि पेंसिल से ऊपर बाएँ उन्होंने लिखा था कि इस प्रस्तावना की शायद ज़रूरत नहीं।)
अशोक विश्वविद्यालय का अभिलेखागार। दस्तावेज़ों का सुरक्षा विधान।

नोट- सबसे ऊपर दी गई तस्वीर- अशोक विश्वविद्यालय में महात्मा गांधी की प्रतिमा। प्रसिद्ध कलाकार (अब दिवंगत) ए. रामचंद्रन का सृजन।

इस खबर को लेकर किसी तरह के पक्ष अथवा अपनी बात कहने-रखने के लिए इस पते पर मेल कर सकते हैं- [email protected]

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