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टाइम्स ऑफ इंडिया के पतन की पराकाष्ठा… सलमान खान पर 5 पेज बिछा दिया!

Nadim S. Akhter : TIMES NOW वाले अर्नब गोस्वामी भी कमाल है. हमेशा लाइमलाइट में रहना चाहते हैं. ये देखकर ताज्जुब हुआ कि कल रात के थकाऊ News Hour शो के बाद आज सुबह-सुबह एंकरिंग करने स्टूडियो में बैठ गए हैं. माने के Live हो गए हैं. बॉम्बे हाई कोर्ट में आज सलमान खान मामले की सुनवाई होनी है, सो अर्नब पूरी फौज के साथ तैयार हैं. और एक मैं हूं कि खामोख्वाह इस इवेंट को लाइटली ले रहा था. जब अर्नब ने इतनी बड़ी तैयारी कर रखी है तो दूसरे चैनलों, खासकर हिन्दी के चैनलों ने क्या किया होगा, अंदाजा लगा रहा हूं.

Nadim S. Akhter : TIMES NOW वाले अर्नब गोस्वामी भी कमाल है. हमेशा लाइमलाइट में रहना चाहते हैं. ये देखकर ताज्जुब हुआ कि कल रात के थकाऊ News Hour शो के बाद आज सुबह-सुबह एंकरिंग करने स्टूडियो में बैठ गए हैं. माने के Live हो गए हैं. बॉम्बे हाई कोर्ट में आज सलमान खान मामले की सुनवाई होनी है, सो अर्नब पूरी फौज के साथ तैयार हैं. और एक मैं हूं कि खामोख्वाह इस इवेंट को लाइटली ले रहा था. जब अर्नब ने इतनी बड़ी तैयारी कर रखी है तो दूसरे चैनलों, खासकर हिन्दी के चैनलों ने क्या किया होगा, अंदाजा लगा रहा हूं.

वैसे एक सवाल मन में उठ रहा है कि क्या सलमान खान इतने महत्वपूर्ण हैं कि उनके एक अपराध पर बन रही स्टोरी पर बड़े मीडिया संस्थान इस तरह की तैयारी करें!!! रिपोर्टरों की फौज तैनात कर दें मैदान में. पल-पल की खबर दें!!! कल मुंबई से एक मित्र का मैसेज आया कि तुम पत्रकार लोग ये कर क्या रहे हो??!! आज मुंबई के The Times of India के शुरुआती पांच पेज सलमान खान के ऊपर हैं. क्या टाइम्स ऑफ इंडिया जैसे बड़े और प्रतिष्ठित अखबार का इतना पतन हो चुका है कि सलमान खान पर वह 5 पेज बिछा दे!! उसका संदेश पढ़कर मैं भी दंग रहा गया. सोचने लगा कि क्या वाकई Times of India ने ऐसा किया है!!!

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समझ नहीं आ रहा है कि मीडिया संस्थानों और उनके धीर-गम्भीर सम्पादकों को हो क्या गया है!!! एक खबर अचानक से नैशनल हेडलाइन्स बनती है, उसे खूब रगड़ा-चलाया जाता है और फिर अचानक से वह सिरे से गायब हो जाती है. ना कोई फॉलोअप, ना कोई याद. और फिर आती है चमचमाती एक नई स्टोरी, रगड़े जाने के लिए. उसे भी दमभर धुना जाता है और फिर एक नई स्टोरी की तलाश शुरु हो जाती है…

ताजा-ताज उदाहरण दे रहा हूं. दिल्ली में आम आदमी पार्टी की रैली में एक किसान सीएम के सामने खुदकुशी कर लेता है और पूरा का पूरा मीडिया उस खबर पर पिल पड़ता है. पूरे देश में गुस्सा भर दिया जाता है और ऐसा लगने लगता है कि मानो अब किसानों के अच्छे दिन वाकई में आने वाले हैं, उनके दिन बहुरेंगे. संसद तक में सवाल उठने लगते हैं. मीडिया के माइकवीर खेतों में जा-जाकर किसानों का हाल पूछने लगते हैं…टीवी की स्क्रीन पर मैला-कुचैलां गांव दिखने लगता है, लेकिन तभी, लेकिन तभी…

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अचनाक खबर आती है कि नेपाल में एक बड़ा भूपकम्प आया है और टीवी कैमरों के तोपनुमा मुंह का रूख किसानों से हटाकर नेपाल भूकम्प पर फोकस कर दिया जाता है. अचानक से किसान, उनकी आत्महत्याएं, उनका मुआवजा, फसल की खरीद जैसे सुलगते सवाल और उन सवालों पर सवाल उठाते एंकरों के तमतमाए चेहरे टीवी स्क्रीन से गायब हो जाते हैं. लड़ाई का मैदान बदल चुका होता है और अब टीवी के माइकवीर नेपाल की धरती पर लैंड कर जाते हैं. कोई हेलिकॉप्टर पर सवार दिखता है, कोई दबे मकानों से अपना बचा-खुचा सामान निकालते लोगों के जख्मों पर नमक लगाकर ये पूछता हुआ कि ये आपका ही मकान था क्या??!! पूरा समान दब गया क्या??? और कोई विध्वंस के बीच झूल रहे शहर के खंडहर मकानों के बीच खड़ा होकर फोटुक खिंचवाता है और फेसबुक-ट्विटर पर अपलोड करके ये घोषणा करता है कि देखों !! हम अब नेपाल में हैं. त्रासदी का तमाशा बनाने को तैयार.

भारतीय मीडिया इस कुदरती हमले पर जिस तरह की कवरेज करता है, उससे नेपाली आवाम और वहां की मीडिया भी आजिज आ जाता है. वो घोषणा कर देते हैं कि भारतीय मीडिया अपने टोटा-टंटा लेकर यहां से उखड़े और घर का रास्ते नापे. कुछ लोग नेपाल की जनता के इस स्वाभिमानी कदम में चीन की साजिश ढूंढते हैं लेकिन ये नहीं देखते कि दूसरे देशों की मीडिया से नेपाल की जनता को कोई शिकायत नहीं. फिर भी हमारा स्वनामधन्य मीडिया उस अतिरेक से कोई सबक नहीं सीखता. कोढ़ में खाज ये कि BEA यानी ब्रॉडकॉस्ट एडिटर्स एसोसिएशन के महासचिव एनके सिंह ये कहते दिखते हैं कि भारतीय मीडिया नें नेपाल में अच्छा काम किया. कोई आत्ममंथन नहीं, कोई विचार नहीं. सब के सब ये मानकर चल रहे हैं कि जो किया, वो बहुत अच्छा किया. खैर !!!

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नेपाल से भगाए जाने के बाद भारतीय मीडिया अचानक से उस त्रासदी को भूल जाता है. टीवी पर 24 घंटे आसन जमाए नेपाल की तस्वीरें यकायक गायब हो जाती हैं. अरे भाई, माना कि आपको खदेड़ दिया गया लेकिन क्या इतना बुरा मान गए कि आप अपने पेशे से न्याय करके भूकम्प की खबर ही दिखाना बंद कर दोगे??!! जिस भूकम्प और उससे जुड़े मानवीय संवेदनाओं से अब तक बहुत सारा सरोकार दिखा रहे थे, अचानक से वे सरोकार क्या उड़न-छू हो गए आपके??!! आपके रिपोर्टर वहां ना सही, कम से कम एजेंसी की खबर-विजुअल लेकर ही खबर दिखा देते भाई. लेकिन ये हो ना सका और नेपाल भूकम्प का तमाशा बनाती खबरें भारतीय टीवी स्क्रीन से फुर्र हो गईं…

नए मसाले की तलाश में लगे मीडिया की उस समय चांदी हो गई जब ये खबर आई कि हिंट एंड रन मामले में सलमान खान पर फैसला आना है. फिर क्या था!!! किसान की आत्महत्या और नेपाल भूकम्प को दुह चुका मीडिया सलमान खान पर बरस पड़ा. सलमान कब घर से निकले, वे किससे गले मिले, उन्होंने क्या पहन रखा है, मामले की सुनवाई के दौरान वे खांसे कि नहीं, उन्हें पसीने आए कि नहीं (शुक्र है इन लोगों ने ये नहीं बताया कि वे टॉयलेट गए कि नहीं और गए तो कितनी बार गए !!!) वगैरह-वगैरह जैसी बातें बताकर सभी चैनल-सम्पादक धन्य महसूस करने लगे. और इन सबके बीच वाट लगी बेचारे रिपोर्टरों की. एक चैनल ने तो बाकायदा टीवी स्क्रीन का स्क्रीन शॉट दिखाकर ये ढोल बजाया कि हमने सलमान खान की हर खबर सबसे पहले आप तक पहुंचाई. शायद औरों ने भी किया हो. लेकिन ये बात बताइए भाई लोगों. बतौर एक दर्शक मुझे क्या फर्क प़ड़ता है कि मैंने सलमान को 5 साल जेल की सजा की खबर 11 बजकर 24 मिनट पर सुनी-देखी या 11 बजकर 30 मिनट पर.

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टीवी का स्क्रीन ना हुआ कि कोई स्पेस शटल हो गया, जहां एक-एक सेकेंड का हिसाब रखना पड़ता है. आपको बता दें कि मंगल ग्रह पर भेजे गए यान को उसके आखिरी चरण में मंगल की धरती पर लैंड करने के लिए सिर्फ 15 सेकेंड मिले थे और ये 15 सेकेंड ही उस अभियान की सफलता या असफलता तय कर देती है. लेकिन टीवी का स्क्रीन कोई स्पेस शटल है क्या कि आप घड़ी दिखाकर अपनी कामयाबी का ढिंढोरा पीट रहे थे??!!! अरे पत्रकारिता ही करनी थी तो सलमान की स्टोरी से जुड़े गंभीर तथ्यों की विवेचना करते ना आप लोग??!! ये क्या बता रहे थे कि सलमान को पसीना आ रहा था आदि-आदि.

खैर, लिखना तो बहुत कुछ चाहता हूं लेकिन बहुत लम्बा हो जाएगा. सुबह-सुबह अर्नब गोस्वामी को स्टूडियो में बैठकर सलमान की सुनवाई मामले पर एंकरिंग करते देखा तो रहा ना गया. सलमान का मामला अभी कुछ दिनों तक और दुहा जाएगा. और जब गन्ने का रस निचोड़ लिया जाएगा तो सलमान नामक यह -राष्ट्रीय आपदा- फिर अचानक से आपके टीवी स्क्रीन से गायब हो जाएगी. फिर किसी नए मसाले को कूटा जाएगा और उसकी फ्रेश बिरयानी बनाई जाएगी. तब तक आप इस ग्रेट इंडियन मीडिया ड्रामे का मजा लीजिए. जय हो.

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लेखक नदीम एस. अख्तर कई न्यूज चैनलों और अखबारों में वरिष्ठ पदों पर रह चुके हैं. इन दिनों आईआईएमसी में अध्यापन के कार्य से जुड़े हैं.

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0 Comments

  1. Baba Dwivedi

    July 21, 2015 at 5:29 am

    Great. Well written Nadim Bhai. Sitting in air cooled offices in Delhi, the so called great editors decide what is important and what could give the TRP. It appears that they have nothing to do with public interest. Breaking is really heartbreaking every morning, nothing fresh. They pick up stories from the newspapers and portray as if they were great masters in searching the stories. Great Bhai

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