उत्तरकाशी में हर वर्ष मकर सक्रांति के पर्व पर जिला पंचायत द्वारा सात दिवसीय मांघ मेले का भव्य आयोजन होता है जिसमे स्टाल, चरखी के किराये से लाखों की कमाई भी जिला पंचायत को होती है। जिला पंचायत पत्रकारों को खुश करने के लिए हर साल कुछ पैसा पत्रकार गोष्ठी के लिए देती है। गोष्ठी में किसी टॉपिक को लेकर पत्रकार अपने विचार रखते हैं। दिन के भोज का आयोजन होता है जिसमें बाकायदा जिलाधिकारी व जिला पंचायत अध्यक्ष भी मौजूद रहते हैं। पर इस बार जो हुआ उसने उत्तरकाशी के पत्रकारों को शर्मशार कर दिया।
प्रेस क्लब के एक गुट ने जिला पंचायत अध्यक्ष पर पत्रकार गोष्ठी न कराने और उसका पैसा विज्ञापन के रूप में देने का दबाव बनाया तो वहीं दूसरा गुट शुरुवात से ही पत्रकार गोष्ठी कराने के पक्ष में रहा। विज्ञापन तो सबने लिए पर एक मीटिंग के बाद एक गुट टूटे फूटे पत्रकार संघ के अध्यक्ष के साथ दल बल लेकर जिलापंचायत अध्यक्ष से पत्रकार गोष्ठी के लिए पैसा देने की मांग करने लगा। अध्यक्ष मरती क्या न करती, उसने एक लाख बीस हजार का चेक गोष्ठी के नाम पर जिला सूचना अधिकारी को थमा दिया। आनन फानन में गोष्ठी हुई। दूर दराज के पत्रकारों का जमावड़ा लगा। छोटे बड़े सभी बैनरों के पत्रकारों के बीच जिला पंचायत अध्यक्ष जसोदा राणा व जिलाधिकारी इंदुधर बोडाई भी पहुंचे।
गोष्ठी में कोई टॉपिक नही रखा गया था तो परिचय के बाद सभी एक दूसरे का मुख ताकने लगे। सभी ने जिलापंचायत अध्यक्ष से कुछ कहने को कहा। गोष्ठी का पैसा विज्ञापन में लुटा चुकी जसोदा राणा को दबाव में गोष्ठी के लिए दुबारा पैसा देना पच नहीं रहा था। उसने छूटते ही पत्रकारों के मुंह में तमाचा मारते हुए पूछा कि पहले ये बताओ तुम्हारा अध्यक्ष है कौन। मेरे यहां हर तीसरे दिन नया अध्यक्ष आता है। कोई कहता है गोष्ठी कराओ। कोई कहता है नहीं। किसका भरोसा करूं। पत्रकारों के पास जवाब नहीं था। जिससे सवाल पूछने थे वही अटपटा सवाल पूछ बैठी। जाते जाते अध्यक्ष बोली बुरा मत मानना। जिलाधिकारी, अध्यक्ष व एक गुट के पत्रकार उठ कर चल दिए। बचे हुए पत्रकारों ने प्रीतिभोज लिया। दूर दराज के पत्रकार गाड़ियों का किराया मांगने लगे। वो भी मिला और फिर आया कंबलों से भरा एक टेम्पो जिसे देख के लगा कि असली लड़ाई तो शायद इसी की हो रही थी। ये कंबल जिला पंचायत के पैसों से खरीदे गए थे। इक्का दुक्का पत्रकारों को छोड़ सभी पत्रकारों ने कंबल लिए। उनके चहरों से लग रहा था कि अध्यक्ष ने भले शब्दों के थप्पड़ मारे लेकिन ठंड से बचने के लिए कंबल तो मिले।
एक पत्रकार द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित.