आम आदमी पार्टी की रैली में किसान गजेन्द्र सिंह कल्याणवत ने ख़ुदकुशी कर ली तो समूचे दिल्ली के टीवी चैनल्स रात दिन डिबेट करने में लगे हैं। लाइव शो, टॉक शो के जरिये यह दिखा रहे हैं कि वो किसानों के कितने हिमायती हैं। यह किसान का दर्द केवल गजेन्द्र तक ही सीमित नहीं है। चौबीस घंटे कैमरे के सामने बने रहने वाले रिपोर्टर / एडिटर ने कभी भी विदर्भ के किसानों के दर्द, पीड़ा को समझा नहीं।
वरिष्ठ पत्रकार पी. साईनाथ को छोड़ दिया जाए तो कोई भी चैनल या प्रिंट मीडिया के दिल्ली स्थित पत्रकार ने इस मसले को गंभीरता से उठाया नहीं। विदर्भ में किसान ख़ुदकुशी का आंकड़ा बहुत बड़ा है। एक संस्था ने पिछले वर्ष एक सर्वे किया गया था, जिसमें कहा गया है की विगत 15 वर्षो में विदर्भ में दो लाख किसानों ने आत्महत्या की है। यूपीए -एक सरकार के वक्त राहत पैकेज के नाम पर विदर्भ के हिस्से में 60 हजार करोड़ का पैकेज दिया गया था किन्तु यह पैकेज सहकारी बैंक डकार गए। सत्तर हजार करोड़ सिंचाई परियोजनाओं के लिए रखी गई राशि भी नेताओं ने गबन कर ली। चुकी ज्यादातर विदर्भ में कॉऑपरेटिव बैंक मंत्री, राजनेताओ के हैं, जो किसी न किसी राजनीतिक दल से तालुक्कात रखते हैं। और इन्ही बैंकों में राहत पैकेज की धन राशि जमा की गई।
केंद्र और राज्य सरकार ने इस मसले का हल ढूंढने के लिए कई सारी कमेटियां बनाईं। मसलन, डॉक्टर नरेंद्र जाधव कमेटी आदि। रोकथाम को लेकर कई कमेटियों ने सुझाव दिए लेकिन समस्या ढाक के तीन पात रही है आज तक। विदर्भ में रोजाना तीन-चार किसान ख़ुदकुशी करते हैं। अब बड़ा सवाल है कि जिस दिल्ली के मीडिया ने विदर्भ के किसानों को भी सूद लेना जरूरी नहीं समझा, जिन्होंने कर्ज के बोझ तले आत्महत्याएं कर लीं, उनकी भी सुननी चाहिए, उनकी भी जिंदगी पीपली के नत्था जैसी आज तक बनी हुई है।