राहुल पांडेय-
विजय शंकर सर से जो सबसे पहली चीज मैंने सीखी, वो थी विनम्रता। हालांकि मैं उतना विनम्र शायद ही कभी बन पाउंगा, जितने विजय सर थे। विरोधी कितनी भी बुरी बात करे, जनता के मुद्दे उठाने पर उनके पर्सनल मुद्दे वहीं खोदकर निकाल दे, विजय सर विनम्रता से उसे जिस तरह से फिर से जनता के मुद्दे पर ले आते थे, वह ताउम्र मेरे लिए सीखते रहने का सबक है।
कभी-कभी तो मुझे ताज्जुब होता और मैं उनको फोन करके खूब भड़ास भी निकालता कि गलत बात पर भी आप इतने विनम्र कैसे हो सकते हैं? वो हंसकर कहते, बल्कि पूछते- और क्या करें? पुलिस की सेवा पूरी करके निकला कोई व्यक्ति इतना भी विनम्र हो सकता है, इतना दयालु और इतना स्नेहिल, विजय सर इसकी मिसाल थे और मुझे लगता है कि पुलिस में अभी नौकरी कर रहे लोगों को भी उनके व्यक्तिव से वही सीखना चाहिए, जो मैंने सीखा। आधा-अधूरा ही सही, पर सीखा। अधूरी विनम्रता भी इस बेरहम दुनिया को कुछ तो आसान बनाती ही होगी।
शायद राफेल मामले की सुनवाइयों में हमारी बातचीत शुरू हुई। वो रोजाना की सुनवाइयां अपने ब्लॉग लोक माध्यम पर लिखा करते थे। मैं वहां से स्क्रिप्ट उठाता, उसे पूरा पढ़ता और एडिट करने से पहले उनसे एक बार बात जरूर करता। एडिट करने के बाद उस पर विडियो बनाता और यूट्यूब पर डाल देता। वो देखते और फिर फोन करके हमेशा तारीफ करते कि बहुत अच्छा एडिट किया है।
ईडी और सीबीआई के जो सुप्रीम कोर्ट में केस चले, इनकी संवैधानिकता और वैधानिकता को लेकर जो सुनवाइयां हुईं, उनमें भी हम दोनों ऐसे ही काम करते रहे। उनकी सबसे अच्छी जो बात थी, वो ये कि एक काबिल वकील की तरह वो हर सुनवाई में एक-दो ऐसे कानूनी पहलू दर्ज कर देते थे, ऐसा कोई रिकॉर्ड लगा देते थे कि लोगों की बहुत ही अच्छी तरह से समझ में आ जाता कि असल में पूरा नाटक है क्या। ऐसे लोग बहुत ही कम हैं लिखने वालों में। मैं भी ऐसा कभी-कभी ही कर पाता हूं, हर बार नहीं। वो इस मामले में भी मेरे गुरु थे।
पिछली बार उन्होंने कहा था कि दिल्ली आएंगे तो यहां मेरे घर भी आएंगे। कह रहे थे, एक बार तुम्हारे घर आकर देखना है कि कैसे रहते हो, कैसे काम करते हो। मैं बड़ा खुश था उनकी इस बात से। कुछेक बेहद नजदीकी लोगों से बताया भी था कि विजय सर आने वाले हैं, मेरी तो भौकाल एकदम टाइट होने वाली है!
कुछ दिन पहले उन्होंने जज लोया पर भी लिखा था, तो मैंने इसरार किया था कि इस पर फिर से एक सीरीज बनाई जाए। तब उन्हें खांसी आ रही थी, जुकाम भी था। बोले, थोड़ी तबियत ठीक हो, फिर काम करते हैं। तबियत की बात निकली तो पिछले साल-डेढ़ साल में जब भी उनको फोन किया, कुछ न कुछ खांसी जुकाम लगा पाया। कई बार तो मैंने कहा कि क्यों नहीं तरीके से इलाज कराते हैं। बोले, सब राजकाज है, ठीक हो जाएगा।
‘सब ठीक हो जाएगा’ जैसा कहने वाले जीवन में कम ही लोग होते हैं और विजय सर उन बेहद कम लोगों में से एक थे। उनके जाने पर बहुत सारी बातें याद आ रही हैं, मगर उनके बगैर सब खाली हैं, सब सूनी हैं।
विजय सर, आप जहां भी हैं, चिंता मत करिए, मैं भी वहीं आ रहा हूं। आज नहीं तो कल। शिष्य कभी अपने गुरु को नहीं छोड़ता। और गुरु आप जैसा हो तो बिलकुल नहीं छोड़ता।