राजस्थान पत्रिका के मप्र संस्करणों के कर्मचारी इन दिनों बंधुआ मजदूर की तरह लगातार चार माह से बगैर साप्ताहिक अवकाश लिए कार्य किए जा रहे हैं। कथित स्थानीय संपादकों की मनमानी के कारण उन्हें साप्ताहिक अवकाश नहीं मिल रहा है जबकि प्रबंधन की ओर से साप्ताहिक अवकाश और अर्जित, उपार्जित अवकाश प्रदान किए जाने के निर्देश दिए जा चुके हैं।
दरअसल पत्रिका में वर्क फ्रॉम होम पूरी तरह से लागू हो गया है। इसके तहत पत्रकारों को कम्प्यूटर सेट दे दिए गए हैं। वे अपनी बिजली और इंटरनेट से ऑफिस का कार्य कर रहे हैं। इस दौरान नए-नवेले कथित संपादकों को अपनी कुर्सी का खतरा मंडरा रहा है। कारण साफ है कि जब कर्मचारी घर से ही बेहतरीन कार्य करके दे रहा है तो इन अधिकारियों की जरूरत ही क्या है। लेकिन अपनी कुर्सी बचाने के लिए ये कथित संपादक मनमाने निर्णय लिए जा रहे हैं। इसमें कर्मचारियों के साप्ताहिक अवकाश डकार जाने का निर्णय भी शामिल है क्योंकि अगर कर्मचारी अवकाश लेता है तो उसका कार्य कौन करेगा, यह इन कथित संपादकों को सूझ नहीं रहा।
चमचागिरी और चापलूसी के गुण के कारण ये संपादक लोग प्रबंधन से सवाल भी नहीं पूछ सकते। साथ ही कम से कम लोगों में कार्य कर प्रबंधन की नजरों में ‘अच्छे गुलाम’ भी साबित होना चाहते हैं। ऐसे में बेचारे छोटे कर्मचारी शोषित हो रहे हैं। नौकरी का डर बताकर बीमार होने पर भी उनसे कार्य करवाया जा रहा है। अगर कोई कर्मचारी कथित संपादकों से साप्ताहिक अवकाश की मांग करता है तो उनसे जयपुर से आदेश नहीं होने का हवाला दिया जा रहा है और हास्यास्पद रूप से कहा जा रहा है कि जब घर से ही कार्य कर रहे हो तो साप्ताहिक अवकाश की क्या जरूरत।
अब सवाल यह है कि घर से कार्य करने पर कोई पावर बूस्टर मिलता है क्या, जो मानसिक थकान नहीं होती। साप्ताहिक अवकाश हर कर्मचारी की सामान्य जरूरत है।
संपादक बन सकते हैं रिलीवर
इधर कुछ कर्मचारियों का कहना है इन कथित संपादकों के पास ज्यादा काम नहीं है। ऐसे में मल्टीटास्किंग को बढ़ावा देने के लिए प्रसिद्ध पत्रिका प्रबंधन को इन कथित संपादकों से पेजमेकिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग भी करवाना चाहिए, क्योंकि इनका मूल कार्य भी यही है। ऐसे में कर्मचारियों की कमी से जूझ रहे संस्थान को भी कुछ राहत मिल सकेगी और कर्मचारियों द्वारा साप्ताहिक अवकाश लेने पर उसका रिलीवर भी तैयार हो जाएगा।