अजय कुमार, लखनऊ
हिन्दुस्तान ही क्या दुनिया के किसी भी देश में अभी तक सियासत का कोई ऐसा हिट फार्मूला नहीं इजाद हुआ है, जिससे किसी भी दल की हमेशा के लिए जीत सुनिश्चत हो जाए। ऐसी तमाम मिसालें हैं जिसके आधार पर कहा जा सकता है कि कल तक जिन सियासी दलों का सिक्का चलता था, आज उनका नाम लेने वाला भी कोई नहीं बचा है। इसका जनता पार्टी से बड़ा और कोई उदाहरण नहीं हो सकता है। सत्तर के दशक में आयरन लेडी इंदिरा गांधी को सत्ता उखाड़ फेंकने का करिश्मा करने वाली जनता पार्टी आज इतिहास के पन्नों में सिमट गई है। दशकों तक देश की राजनीति को अपने हिसाब से चलाने वाली कांग्रेस के कभी बुरे दिन नहीं आते। देश की सोच के साथ कदमताल नहीं कर पाने के कारण वामपंथी पार्टिंयां भी धीरे-धीरे इतिहास के पन्नों में सिमटती जा रही है।
दरअसल, सियासत में जीत का होई हिट फार्मूला नहीं है। अगर होता तो उक्त दलों का वजूद बचा रहता और भाजपा को भी उभरने का मौका नहीं मिलता। मौजूदा हालात में यह बात महाराष्ट्र और हरियाणा के चुनाव नतीजों पर फिट बैठती है। दोनों ही जगह भाजपा का दंभ कहीं थोड़ा तो कहीं ज्यादा टूटता दिखा। कांग्रेस एक बार फिर खड़ी होती दिखी तो शरद पवांर की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने काफी बेहतर प्रदर्शन किया। शिवसेना का भी हिसाब-किताब ठीकठाक रहा, लेकिन भारतीय जनता पार्टी जीत के बाद भी हारती नजर आई। भाजपा कश्मीर से धारा 370 खत्म करने, तीन तलाक, पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक, मोदी सरकार की उपलब्धियों जैसे राष्ट्रीय मुद्दों के सहारे अपनी बैतरणी पार करना चाहती थी,लेकिन महाराष्ट्र में कांगे्रस के क्षेत्रीय क्षत्रपों के साथ-साथ एनसीपी नेता शरद पवार तो उधर हरियाणा में कांगे्रस के दिग्गज नेता और पूर्व मुख्यमंत्री भुपेन्द्र सिंह हुड्डा, जेजेपी के दुष्यंत चैटाला जैसे नेताओं ने बेरोजगारी, किसानों की समस्याओं जैसी क्षेत्रीय समस्याओं पर अपना फोकस केन्द्रित रखा,जिसका इनको फायदा भी मिला। हरियाणा में जाट बिरादरी की नाराजगी भाजपा के लिए भारी पड़ी।
बहरहाल, उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार अगर चाहे तो महाराष्ट्र और हरियाणा के चुनाव नतीजांे से सबक ले सकती है। वर्ना यूपी में आज हाशिये पर नजर आ रही सपा-बसपा और कांगे्रस कल फिर से वापसी कर लें तो किसी को आश्चर्य नहीं होगा। यूपी की 11 विधान सभा सीटों पर हुए उप-चुनावों के नतीजे भी काफी कुछ कह रहे हैं। भले बीजेपी गठबंधन आठ सीटें जीतने में सफल रहा हो लेकिन समाजवादी पार्टी की वापसी भी कम चैंकाने वाली नहीं दिखी। उत्तर प्रदेश की स्थितियां भी महाराष्ट्र और हरियाणा से कुछ अलग नहीं है।
प्रदेश में अपराध नियंत्रण के लिए किए जा रहे तमाम कदम बौने साबित हो रहे हैं। बेरोजगारी ही नहीं बढ़ रही है, लोगों की लगी-लगाई नौकरी भी छूट रही है। विकास की बातें तो बहुत हो रही हैं,लेकिन जमीन पर यह कहीं देखने को नहीं मिलता है। चौतरफा अतिक्रमण ने शहर की ट्रैफिक को रेंगने को मजबूर कर दिया है। अतिक्रमण हटाने की बजाए पुल बनाकर जाम की समस्याओं से छुटकारा पाने की कोशिशें की जा रही हैं, जिसमें सरकार का धन श्रम दोनों खर्च हो रहे हैं। बिजली के दाम बेतहाशा बढ़ते जा रहे हैं, जिसका खामियाजा ईमानदारी से बिल चुकाने वालों को भुगतना पड़ रहा है।
सरकारी मशीनरी पूरी तरह से ठप हो गई है। गन्ना किसान बकाए का भुगतान नहीं होने से नाराज हैं। प्रदेश में सड़कों का बुरा हाल है। योगी जी को यह समझना होगा कि सिर्फ धार्मिक आधार पर लम्बे समय तक वोटों का ध्रुवीकरण नहीं किया जा सकता है। किसी सरकार को इस बात की छूट नहीं दी जा सकती है कि अयोघ्या में पांच लाख दिए जलाने के लिए सरकारी खजाने से करीब 125 करोड़ रूपए व्यय कर दिए जाएं। आदमी की पेट भरने की जरूरत सबसे पहली और बड़ी है। अगर वह पूरी नहीं होगी तो सब बातें बेईमानी साबित हो जाती हैं।
आज की तारीख में यही कहा जा सकता है कि एक तरफ योगी जी और यूपी भाजपा को यह सोचने की जरूरत है कि किस तरह वह अपना जनाधार बचाए रखे तो दूसरी तरफ बात सपा की कि जाए तो समाजवादी पार्टी के लिए इस बार दीपावली जगमगाने वाली रही। उपचुनाव के नतीजों ने सपा के पंख लगा दिए। उसने भगवा पार्टी से बाराबंकी की जैदपुर सीट छीन ली तो बसपा से उसकी मौजूदा जलालपुर विधान सभा सीट झटकने में कामयाब रही। यह तब हुआ जब बसपा लोकसभा चुनाव बाद सपा के मूल वोट बैंक खिसक जाने की बात कहती थी।
सपा ने रामपुर का प्रतिष्ठित चुनाव भी जीत लिया। यही नहीं सपा ने महाराष्ट्र विधानसभा उपचुनाव में मुंबई की दो सीटें मानखुर्द शिवाजी नगर व भिवंडी ईस्ट पर भी अपना परचम फहराया। अब तो राजनैतिक पंडितों को भी यही लगने लगा है कि यूपी में सपा ही भाजपा को कड़ी चुनौती देने की स्थिति में है। 11 में उसने तीन सीटें जीतीं, उप-चुनाव के कुछ समय पहले बसपा ने लोकसभा चुनाव में सपा से बने गठबंधन को तोड़ते हुए आरोप लगाया था कि उसका मूल वोट बैंक ही उससे खिसक गया है और सपा अपने परिवार के सदस्यों को नहीं जिता पाई। पर, उपचुनाव में सपा के प्रदर्शन से यह बात बेमानी साबित होती नजर आई। लोकसभा चुनाव नतीजों में नंबर तीन पर पहुंच गई सपा विधानसभा उपचुनाव में अब नंबर दो पर आ गई है।
लोकसभा चुनाव में झटका खाकर निराशा में डूबी सपा के लिए यह नतीजे किसी ‘टानिक’ से कम नहीं रहे। हालांकि गठबंधन तोड़ने की पहल सपा की ओर से नहीं हुई लेकिन अब सपा को अहसास है कि अकेले चुनाव लड़कर कार्यकर्ताओं में खोया आत्मविश्वास लौटाया जा सकता है। जिसकी उसे सख्त जरूरत है। यही कारण है कि उपचुनाव के बीच ही सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव कहने लगे थे कि अगले विधानसभा चुनाव में सपा न बसपा से समझौता करेगी न कांग्रेस से।
सपा के लिए रामपुर का उप-चुनाव खासा महत्वपूर्ण रहा। एक ओर सपा के दिग्गज आजम खां पर बड़ी संख्या में प्रशासन ने मुकदमे दर्ज कर दिए थे। वहीं कांग्रेस व बसपा भी लड़कर कहीं न कहीं सपा को नुकसान पहुंचा रहे थे। लंबे समय तक सपा की सांसद रहीं जया प्रदा ने भी आजम खां के खिलाफ भाजपा के पक्ष में खूब जनसभाएं कीं। रामपुर में सपा की जीत ने साबित कर दिया है कि वहां अभी आजम का जलवा बरकरार है।
समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने विधानसभा के उपचुनावों में बेहतर प्रदर्शन करने के बाद बीजेपी पर हमला बोलते हुए कहा तमाम प्रशासनिक दबावों और भाजपाई छल प्रपंच के बावजूद तंजीन फातिमा रामपुर से जीत दर्ज की है। उत्तर प्रदेश में सपा के प्रति जनता में बढ़ते विश्वास और भाजपा की कुनीतियों से त्रस्त जनता के ताजा रूझान से राजनीति में बदलाव की नई आहट सुनाई दे रहे है।
बात कांग्रेस की कि जाए तो यूपी में हुए उप-चुनाव में वह अपना खाता भले ही न खोल सकी हो, लेकिन पार्टी नतीजों को लेकर खासा उत्साहित है। कारण- पार्टी के वोट प्रतिशत में करीब दोगुनी बढ़ोतरी हुई है तो पार्टी गंगोह और गोविन्द नगर दो सीट पर दूसरे नंबर पर रही है। जैदपुर सुरक्षित सीट समेत आधा दर्जन सीटों पर कांग्रेस बहुजन समाज पार्टी से आगे रही है। पार्टी नेता उप-चुनाव में मिले नतीजों को प्रियंका गांधी की सक्रियता का परिणाम मानते हैं। इससे पहले किसी यूपी प्रभारी महासचिव ने शायद ही इतना समय दिया हो। अभी तक प्रभारी महासचिव मौके-बेमौके ही आते थे। वो भी फ्लाइंग विजिट पर।
प्रियंका संगठन को मजबूती देने और संघर्ष कर मजबूत विपक्षी दल की भूमिका निभाने में पूरा समय दे रही हैं। पहली बार उप-चुनाव के लिए कई महीने पहले प्रभारी नेताओं की टीम बनाई गई। प्रत्याशी चयन से लेकर प्रबंधन तक में इन्हें लगाया गया। समय से प्रत्याशी चयन और नए युवा चेहरों को तरजीह वोट प्रतिशत में बढ़ोत्तरी की बड़ी वजह रही। लंबे समय से प्रदेश में चैथे नंबर पर आने वाली कांग्रेस के लिए उपचुनाव नतीजे इस मायने में भी संतोषजनक कहे जा सकते हैं कि 11 में से छह सीटों गंगोह, रामपुर, लखनऊ कैंट, गोविन्द नगर, प्रतापगढ़ और जैदपुर में पार्टी बसपा से आगे हैं। वोट प्रतिशत 11.49 पर पहुंचा जो 6.25 प्रतिशत था।
भाजपा से इत्तर बसपा के लिए भी यह चुनाव किसी सबक से कम नहीं रहे। सपा से गठबंधन तोडने के बाद पहली बार विधानसभा उपचुनाव अपने दम पर लड़ले वाले वाली बसपा के हाथ से लोकसभा चुनाव में खाली हुई अंबेडकर नगर की जलालपुर सीट भी इस चुनाव में फिसल गई। यहां से उसे दूसरे स्थान पर रहकर ही संतोष करना पड़ा। गठबंधन टूटने के बाद और बसपा अपने दम पर अकेले उपचुनाव वाले सभी 11 सीटों पर उम्मीदवार उतारे मायावती ने प्रत्येक सीट पर मंडल भर के पदाधिकारियों को लगाया। जिससे उसे सफलता मिल सके। मगर देखा जाए तो वोट का गणित अपने पक्ष मंे रखने में बसपाई फेल साबित हुए। इतना ही नहीं विधानसभा उपचुनाव में बसपा का मत प्रतिशत सपा से पांच फीसदी कम हो गया। सपा को जहां कुल 22.57 प्रतिशत वोट मिले तो बसपा को मात्र 17 फीसदी वोट पर ही संतोष करना पड़ा।
गौरतलब हो जलालपुर विधानसभा सीट से 2017 के विधानसभा चुनाव में बसपा के रितेश पांडये जीते थे। लोस चुनाव 2019 में वह बसपा के टिकट से सांसद चुने गए। रीतेश 2017 में विस चुनाव दलित और सवर्ण वोटों के सहारे जीते थे। मायावती चाहती थी कि उनके पिता रीतेश के पिता उपचुनाव लड़े, लेकिन उन्होनें मना कर दिया । इसके चलते विधानसभा में नेता विधायक दल लालजी वर्मा की पुत्री डा.छाया वर्मा को टिकट दिया गया। बसपा की छाया वर्मा सपा के सुभाष राय से मामूली वोटों से चुनाव हार गईं।
बसपा सुप्रीमों मायावती ने हार के बाद आरोप लगाया कि बसपाइयों का मनोबल गिराने के लिए भाजपा ने सपा को कुछ सीटें जिताई है। मायावती ने ट्वीट कर कहा कि उत्तर प्रदेश विधानसभा आम चुनाव से पहले बसपा के लोगों का मनोबल गिराने के षडयंत्र के तहत भाजपा द्वारा इस उप-चुनाव में सपा की कुछ सीटें जिताने व बसपा को एक भी सीट नही जीतने देने को पार्टी के लोग अच्छी तरह से समझ रहे है। वे इनके इस षडयंत्र को फेल करने के लिए पूरे जी-जान से जरूर जुटेंगे। लोस चुनाव में 10 लोकसभा सीट जीतकर यूपी की राजनीति में संजीवनी पाने वाली बसपा के लिए विधानसभा का उप चुनाव को किसी झटके से कम नहीं माना जा रहा है।
यूपी में राजनीति में भाजपा का विकल्प बनने के लिए सपा व बसपा दोनों पार्टियां जी जान से लगी हुईं हैं। ऐसे में बसपा का वोटिंग प्रतिशत गिरना और एक भी सीट न मिलना उसे नए सिरे से राजनीतिक रणनीति तैयार करने पर जरूर मजबूर करेगा। सबसे बड़ी बात यह है कि मुस्लिम वोटरों का भी सपा-बसपा को लेकर भ्रम टूट गया है। मुस्लिम समाजवादी का साथ छोड़ने को तैयार नहीं लगते हैं। अगर ऐसा ही रहा तो यादव-मुस्लिम गठजोड़ के सहारे समाजवादी पार्टी पुनः अपना खोया हुआ रसूख हासिल कर सकती है।
लब्बोलुआब यह है कि केन्द्र की मोदी सरकार की उपलब्धियों का ढिंढोरा पीटकर लोकसभा का चुनाव तो जीता जा सकता है, लेकिन राज्यों की अपनी अलग तरह की समस्याएं होती हैं। राज्यों को जीतने के लिए क्षेत्रीय समस्याओं को सुलझाना किसी भी सरकार की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। तब ही सियासत की पिच पर लम्बे समय तक टिका जा सकता है।
लेखक अजय कुमार लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं.