Manish Srivastava : भला हम मिले भी तो क्या मिले, वही दूरियाँ वही फ़ासले, न कभी हमारे क़दम बढ़े न कभी तुम्हारी झिझक गई…यूपी की सत्ता पर कोई भी मुख्यमंत्री विराजमान रहे। कमोबेश सभी के लिए यूपी की नौकरशाही के चन्द ईमानदार अफसरों का यही फसाना रहा। अब योगी जी मुख्यमंत्री हैं लेकिन नौकरशाही के मर्म को वो भी नहीं समझ पाए।
इसका सीधा उदाहरण एक दिन पहले ही साफ छवि की वाणिज्य कर कमिश्नर कामिनी रतन चौहान के तबादले में फिर नजर आ गया। इस विभाग के मंत्री योगी जी स्वयं हैं फिर भी भ्रष्ट अफसरों के दबाव में उस महिला आईएएस का तबादला कर बैठे, जो उनके राजकोष में अरबों का राजस्व लाने के लिए अपने अधीनस्थों पर सख्ती कर रही थी। जिससे पूरे प्रदेश में हड़कम्प था। योगी जी अगर आप कमिश्नर को बुला कर एक बार माजरा समझ लेते तो आज मैं भी आपकी शान में कसीदे पढ़ रहा होता। लेकिन आपकी सरकार भ्रष्टों की चरणवन्दना करेगी। इसका अहसास न था।
वाणिज्य कर महकमे के अफसरों को सख्ती ही तो नहीं पसंद है, कमिश्नर ने राजस्व वसूली में 15 हज़ार 495 करोड़ का गड़बड़झाला क्या पकड़ा, आग लग गई। कमिश्नर ने अपर मुख्य सचिव से इस घोटाले का स्पेशल ऑडिट कराने को भी कह डाला। अब यूनियन को आगे रखकर कमिश्नर को हटाने के लिए आंदोलन शुरू करना ही वाणिज्य अफसरों के लिए एकमात्र विकल्प बचा था जिसमे वो माहिर हैं। ये आंदोलन भी कोई नया नहीं है।
इससे पहले दिसम्बर 2012 में तत्कालीन ईमानदार कमिश्नर हिमांशु कुमार के खिलाफ भी कुछ इसी तरह आंदोलन करके हटवा दिया गया था तब हिमांशु कुमार ने विभागीय सीवीओ होने के नाते व्यापारियों की शिकायत पर प्रारम्भिक जांच में ही करीब 33 अरबपति लुटेरे वाणिज्य कर अफसरों के खिलाफ विजिलेंस जांच की सिफारिश की थी। इस सूची में कई बड़े नामी डाकू किस्म के अफसर शामिल थे जिससे सब सकते में आ गए थे। जांच को पिछली सरकार के बड़े अफसर दबाये रहे और हिमांशु जी को हटा दिया। तब मैंने हिमांशु सर के लिए बाकायदा सच उजागर करते हुए खबर भी की थी। लेकिन धनबल के आगे वो नक्कारखाने में तूती की आवाज़ बनकर ही रह गयी।
खैर सूबे का निजाम बदला तो कुछ समय पहले जांच की फाइल आगे बढ़ी, लेकिन उसके बाद क्या हुआ कोई बताने को तैयार नहीं। इन्ही कुबेरपति अफसरों में कानपुर का वो केशवलाल भी था जिसके घर से करोड़ों की नकदी और अरबों की अवैध सम्पत्तियों के साक्ष्य आयकर महकमे को मिले और वो निलम्बित हुआ। आज भी ये खुला घूम रहा है। इसके बावजूद इस महकमे में कई सौ करोड़ के मालिक बने बैठे अफसरों की कोई कमी नहीं है यूनियन भी ऐसे घोषित भ्रष्टों के खिलाफ सिर्फ संरक्षण देने का ही काम करती है।
अगर केशव जैसे लुटेरों के खिलाफ पिछली सरकार ही कार्रवाई करती तो यूपी के हिमांशु कुमार जैसे ईमानदार अफसरों का मनोबल भी बढ़ता और भ्रष्टों में एक डर होता, लेकिन अखिलेश सरकार के नक्शेकदम पर योगी सरकार ने भी बेदाग छवि की कमिश्नर कामिनी चौहान को ही हटाने में अपनी शान समझी। ऐसे में यूपी की नौकरशाही में भ्रष्टों से अपने अस्तित्व की जंग लड़ रहे ईमानदार अफसरों का मनोबल भी गिरेगा। हालांकि वाणिज्य कर अफसरों का कहना है कि मुद्दे को गलत ढंग से पेश किया जा रहा है हमें बकाया वसूली के लिए समय दिया जाना चाहिए था जो कमिश्नर ने नहीं दिया और अनावश्यक सख्ती करते हए अफसरों के खिलाफ कार्रवाई भी शुरू करा दी।
वर्षों की बकाया वसूली चन्द दिनों में नहीं हो जाती है मैं मानता हूं हर महकमे में ईमानदार अफसर रहते हैं और चन्द गन्दी मछलियां ही तालाब को गंदा करती है लेकिन ईमानदार अफसरों को खुलकर इन भ्रष्ट मछलियों के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंकना चाहिए था न कि अपनी बेदाग छवि की कमिश्नर को हटाने के लिए आंदोलन का रास्ता अपनाना चाहिए था। योगी जी आपको तो कम से कम एक महिला आईएएस के इकबाल की रक्षा करनी चाहिए थी।
इसमें सबसे बड़ा दोष तो मैं योगी जी के सचिवालय का मानता हूं क्योंकि पंचम तल के अफसरों को पूरी जानकारी होते हुए भी मुख्यमंत्री को अंधेरे में रखा गया। जबकि वाणिज्य कर महकमे में ये बवाल कई दिनों से अखबारों की सुर्खियों में था। योगी जी मैं अफसरों को मक्खन लगाने वाले पत्रकारों की जमात का हिस्सा नहीं। न ही मैं आज़तक आईएएस कामिनी रतन चौहान से मिला हूँ। कड़वा लिखता हूँ कड़वा बोलता हूं लेकिन सिर्फ सच।
बतौर पत्रकार अगर हम भ्रष्ट अफसरों के खिलाफ कलम चलाते हैं तो यूपी के साफ छवि के अफसरों के सम्मान को बचाने की जिम्मेदारी भी हमारी ही है क्योंकि सरकारें तो भ्रष्टों के हाथों की कठपुतली बन चुकी है। यूपी की आईएएस एसोसिएशन भी कान में तेल डाले बैठी है खैर योगी जी आप एक सन्यासी हैं आपसे उम्मीदें हैं नौकरशाही के खेल को समझिये। वरना ‘चिड़िया चुग गयी खेत, फिर पछतावे से का होत’ जैसी कहावत चरितार्थ होते देर न लगेगी।
संलग्नक
1-अमर उजाला की इस महीने के पहले हफ्ते में मुद्दे पर लिखी गयी महेंद्र भाई की शानदार खबर
2-कुछ समय पहले वाणिज्य कर के भ्रष्टों पर निष्पक्ष प्रतिदिन में लिखी गयी मेरी बेबाक रिपोर्ट
लखनऊ के तेजतर्रार पत्रकार मनीष श्रीवास्तव की एफबी वॉल से.
Vivek
January 19, 2019 at 3:40 pm
कमाल की रिपोर्ट। सारे अधिकारी भ्रष्ट। सारे अक्षम। सभी को एक साथ प्रतिकूल प्रविष्टि। बस विभाग का हेड ही सच्चा, ईमानदार और जानकार। पहले रह चुके हेड भी बेकार। भई वाह ।
manish srivastava
January 24, 2019 at 3:19 pm
मेरे भाई एक तो 15 हज़ार करोड़ से ऊपर का बकाया वाणिज्य कर अफसर दबाए हैं इसके एवज में उन्हें कितने अरब मिलें होंगे। ये भी तो बताइये।।वर्षों बाद जब किसी कमिश्नर ने पूरा ब्यौरा मांगा तो कमिश्नर हटाओ कमिश्नर हटाओ की नारेबाजी।। अब प्रतिकूल प्रविष्टि भी न दें। खुश होइए कि निलंबन की संस्तुति नहीं की। भई वाह विभागीय प्रमुख अब राजस्व की निगरानी भी न करे।बस लूटने वाले अफसरों के आगे नतमस्तक रहे। कुछ उदाहरण छोड़ दें तो वाणिज्य कर महकमे में भ्रष्टों की तादाद कुछ ज्यादा ही तेजी से बढ़ रही है