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साहित्य

26 मई को किसानों द्वारा आयोजित ‘काला दिवस’ को जनवादी लेखक संघ का समर्थन!

26 मई को ‘काला दिवस’ मनाने के किसान आंदोलनकारियों के आह्वान की हिमायत में

चालीस आन्दोलनरत किसान संगठनों के साझा मंच, संयुक्त किसान मोर्चा ने आनेवाली 26 मई के दिन को ‘काला दिवस’ के रूप में मनाने का जो आह्वान किया है, जनवादी लेखक संघ उसके साथ है।

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26 नवंबर 2020 को देश के अनेक हिस्सों से, तमाम तरह की बाधाओं और उत्पीड़न का सामना करते हुए किसान दिल्ली की सीमाओं पर पहुंचे थे। तब से कभी शीतलहर, कभी बारिश और जलजमाव, तो कभी भयानक गर्मी और लू के बीच वे वहाँ जमे हुए हैं। वार्ताओं के ग्यारह चक्रों के बावजूद उनकी मांगों के पूरा होने के कोई आसार नहीं दिख रहे, क्योंकि कॉर्पोरेट सेक्टर को फायदा पहुंचाने के लिए दृढ़संकल्प यह सरकार दिखावटी तरमीम भर के लिए राज़ी है, कानूनों को वापस लेने के लिए नहीं। इस रवैये के खिलाफ़ किसानों ने जिस तरह के जीवट का प्रदर्शन किया है, वह एक ऐतिहासिक मिसाल बनने जा रहा है। सड़कों पर गाड़े गए कील-कांटे, बाड़ेबंदी, पानीबंदी, खानाबंदी, अंदर से तोड़ देने की सरकारी साज़िशें, मौसम की मार और कोरोना की दो-दो लहरें उन्हें अपनी जगह से हिला न सकीं। दिल्ली की चौखट पर उनके धरने के छह महीने इस 26 तारीख को पूरे हो जाएंगे।

और इसी 26 तारीख को नरेंद्र मोदी के तानाशाही शासन के सात साल भी पूरे होंगे, ऐसे सात साल जिनमें नोटबंदी से लेकर तालाबंदी तक और अल्पसंखयकों पर हमलों से लेकर कोरोना-काल की मृत्यु-लीला तक—सरकारी लापरवाही, दमन और क्रूरता के एक-के-बाद-एक अंधकारपूर्ण अध्याय खुलते गए हैं।

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इन दोनों को ध्यान में रखते हुए संयुक्त किसान मोर्चा ने उस दिन ‘काला दिवस’ मनाने का आह्वान किया है। उनकी अपील है कि देश भर के किसान और आंदोलन के साथ हमदर्दी रखनेवाले लोग उस दिन अपने घरों, दुकानों, वाहनों आदि पर काला झण्डा लगाएं और सरकार के असंवेदनशील रवैये के प्रति अपने गुस्से का इज़हार करें।

जनवादी लेखक संघ ‘काला दिवस’ मनाने के इस आह्वान के साथ अपनी एकजुटता व्यक्त करता है। हम लेखकों-कलाकारों से अपील करते हैं कि वे 26 मई को हर संभव तरीक़े से किसान आंदोलनकारियों का इस्तक़बाल करते हुए तीनों कृषि-क़ानूनों की वापसी और न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी के पक्ष में अपनी आवाज़ बुलंद करें। हम अपने घरों, वाहनों आदि पर काले झंडे लगा सकते हैं, प्रिन्ट माध्यमों के लिए लेख लिख सकते हैं, सोशल मीडिया पर अपनी टिप्पणियां, हाथ के बनाए पोस्टर को थामे अपनी तस्वीर, अपनी रचनाएं और नारे आदि पोस्ट कर सकते हैं।

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आइए, इस असंवेदनशील सरकार के खिलाफ़ और किसान आंदोलन के पक्ष में खड़े हों।

मुरली मनोहर प्रसाद सिंह (महासचिव)

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राजेश जोशी (संयुक्त महासचिव)

जनवादी लेखक संघ

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