अंजू शर्मा-
बस अभी यूट्यूब पर उदयप्रकाश जी का बहुप्रतीक्षित साक्षात्कार सुनकर ख़त्म किया। ख़त्म किया कहते हुए मैं विचार कर करती हूँ कि क्या वाकई ख़त्म हो गया, जबकि सोच के जाने कितने सिरे थमा गया ये साक्षात्कार। मैंने अंजुम से कहा था कि सबसे अधिक प्रतीक्षा मुझे उदय जी को सुनने की है। आज मुझे समृद्धि का कोष थमा गया ये साक्षात्कार जिसे मैं साक्षात्कार कम बातचीत या रोचक और अद्भुत बतकही कहूँ तो ज्यादा सटीक होगा।
मैं कभी उनसे नहीं मिली पर उन्हें पढ़ते हुए उनकी रचनाओं के माध्यम से मैंने उनकी जिजीविषा, उनकी उद्विग्नता, उनका विद्रोह, उनकी नाराज़गी सबको खूब खूब जाना है। मैंने मौन रहकर लोगों को उनके बारे में धाराप्रवाह बोलते सुना है। उनकी उन तमाम भावनाओं को उनके अभिभूत प्रशंसकों की आँखों से झरते देखा है। व्यक्तिपूजा में मेरा कतई भरोसा नहीं लेकिन उदय सर को उससे आसपास की श्रेणी में रखे पाया और मैं शायद कभी उनसे इसीलिये नहीं मिली कि कहीं दो छवियों के भीतर कोई दरार पा गई तो मुझे दुःख होगा। शायद उन्हें खोना मुझे गवारा नहीं था।
लेकिन आज उदय सर को बोलते सुना तो एक एक पंक्ति को बहुत ध्यान से सुना। आनंद या तृप्ति जैसा कोई शब्द मेरी भावना को व्यक्त नहीं कर पाएगा। जिसका प्रारंभ होता है उसका अंत अवश्यम्भावी है। साक्षात्कार जब ख़त्म हुआ तो लगा लगा कि मैं ढाई घण्टे से किसी तिलिस्म में बंधी थी जो एकाएक टूट गया। यह जादू उनके कहन का है जिसे और और और सुनने की चाह थी।
सुनते हुए जब विज्ञापन आया तो मुझे 65 वर्षीय दादाजी की याद आयी जो गाँव के दिनों को याद करते माँ की बात करते और माँ की बात करते हुए उन्हें नानी याद आ जातीं। और कब वे अपनी युवा दिनों की कराची यात्रा पर पहुँच जाते उन्हें मालूम न चलता पर उनकी आँखों की चमक और वाणी के आरोह अवरोह से मैं उन दिनों से जुड़ी उनकी भावनाओं की थाह पाने की कोशिश करती। अप्रसन्नता, उत्साह, नैराश्य और उम्मीद मैंने हर भाव को अलगाना उन्हीं दिनों सीखा। आज वही अभ्यास काम आया।
निश्चित तौर पर एक संगत विद उदयप्रकाश 2.0 होना ही चाहिए। बाकी पहली बार आज अंजुम को बेचैनी से भरे हुए पाने का आनंद भी उठाया। पर ये नौ दिन चले अढ़ाई कोस की यात्रा अविस्मरणीय रही। खूब बधाई और शुक्रिया प्रिय Anjum Sharma, इंटरव्यू के लिए!
देखें इंटरव्यू-
https://youtu.be/–hbrJsuBr8?si=2IrT54LPNtJ6AhlJ
मुझे खुशी हुई कि आपने एक ही बार में पूरा इंटरव्यू देखा सुना। इस इंटरव्यू में उदय प्रकाश ने अपने बचपन से लेकर अब तक का बहुत कुछ कहा है। अपने दिल की बात पूरी सच्चाई से कही है। मुझे तो इसलिए भी अच्छा लगा क्योंकि मैं तो लगभग पिछले चार दशक से उदय प्रकाश से जुड़ी हुई हूं। और इन सब घटनाओं से वाकिफ हूं। आपका आभार अंजू। हो सके तो कभी हमारे घर आयें। अंजुम ने भी बहुत अच्छा साक्षात्कार लिया। -कुमकुम सिंह
बहुत शुक्रिया दी। आपने पहले भी बुलाया था पर बस मिलना नहीं हुआ। कभी जरूर आऊँगी। इस इंटरव्यू से कुछ कुछ जानने को मिला। बहुत से सवालों के जवाब भी मिले। ये भी जाना कि ऐसे ही नहीं अपने पाठकों के दिलों पर राज करते हैं प्रिय कथाकार। -अंजू शर्मा