Mayank Saxena : माननीय ने तय किया था कि जिस चौथे खम्भे की रंगाई पुताई कर के उसका हुलिया ही बदल देने में उन्होंने (उनके प्रायोजकों ने) करोड़ों खर्च किए थे, उनसे भी मिल लेंगे। माननीय को देश का सबसे बड़ा वक्ता (भाषणबाज़) बनना था और वो चाहते थे कि वो हर कहीं से भाषण देते हुए, हर कहीं दिखाई दे। वो बचपन से ही वक्ता बनना चाहते थे, बनिए के यहां तेल भी लेने जाते थे तो भाषण कर के मुफ्त में ले आते थे, मतलब वो मुफ्त दे कर हाथ जोड़ लेता था कि भाई और ग्राहक भी हैं, तुम दो घेटे से बिज़नेस मॉडल पर बोल रहे हो, यहां बिज़नेस ठप हुआ जा रहा है। तो सबसे बड़ा वक्ता बनने का सपना इसी चौथे खम्भे ने पूरा किया था, क्योंकि खम्भे पर सैकड़ों टीवी लगे थे और वो हर वक्त माननीय को ही प्रसारित करते थे।
अंततः माननीय ने ‘हमलावरों’ के बनवाए एक लाल पत्थर के किले और दुनिया में ‘शांति’ लाने के लिए ‘सैनिक मदद भिजवाने’ वाले दफ्तर में भी भाषण दे डाला था। लेकिन खम्भे के मजदूर उनसे नाराज़ थे कि खम्भे का फ़ायदा उठा लिया पर खम्भे का हाल भी न लिया। दरअसल चौथे खम्भे का इस्तेमाल अभी खत्म नहीं हुआ था, अभी तो शुरु हुआ था। और खम्भा भी अपनी नक्काशी कराए जाने के इंतज़ार में टीवी फुंक जाने तक उन्हें चलाने को तैयार था। सबसे पहले आंसू वाला गीला भाषण हुआ और फिर सूखे, थोड़े गीले और पपड़ीदार हर तरह के भाषण हुए, लेकिन माननीय खम्भे का हाल लेने भी नहीं आए।
यहां तक कि खम्भे के आगे बाड़ लगा दी गई। खम्भा और मजदूर नाराज़ थे लेकिन जानते थे कि माननीय नाराज़ हो गए तो खम्भा और रंग दोनों उखाड़ दिए जाएंगे। खम्भा था जो जनता को रोशनी देने के लिए, लेकिन खम्भे के मजदूरों की नीयत खास बनने की थी। खास मतलब कि वो जो रोशनी दे या न दे, ख़ुद जगमगाता रहे। ऐसे में खम्भे ने शिकायत करनी शुरु की, कि भई हमने तो आपको अपने ऊपर चढ़ा कर आपकी लम्बाई बढ़ा दी, आपके सिवा किसी और को दिखाया ही नहीं, देश में तानाशाही तक का समर्थन कर दिया और आप हो कि….लोकतंत्र को ही खत्म कर रहे हो… तो पहले भाषण के 5 महीने बाद माननीय ने कहा कि वो खम्भे का हाल लेंगे। अब आप कहेंगे कि चम्पादक कहां गया, तो जनाब ये जो डी न्यूज़ चैनल के बाहर एक कार और एक ओबी वैन खड़ी है, उसे ग़ौर से देखिए।
कार में एक ‘डम्बवाद’दाता बैठा है, जो अपनी गर्लफ्रैंड से बतिया रहा है…
डम्बवाददाता – जानू…कहो तो तुम्हारे लिए एक ऑटोग्राफ ले आऊं माननीय का…?
(उधर से जो कहा जा रहा है, उसका सिर्फ अंदाज़ा ही लगाया जा सकता है…)
डम्बवाददाता – अब तुम्हें कैसे ले जा सकता हूं…जानती हो माननीय की सुरक्षा दुनिया में सबसे कड़ी है…
डम्बवाददाता – देखो तुम्हारे लिए तस्वीर पर ऑटोग्राफ ले आऊंगा…
डम्बवाददाता – अच्छा कोशिश करूंगा कि तुमको उनके हस्ताक्षर वाली चिट्ठी आ जाए…
डम्बवाददाता – ओह्हो…झिलायंस में नौकरी के लिए भी गिड़गिड़ा लूंगा…लेकिन इतनी बात करने को तो मिले…
डम्बवाददाता – अरे पहचानते थे…अब तो चुनाव हो गए…वो प्रधान वक्ता भी बन गए…अब पता नहीं पहचानेंगे या नहीं…
डम्बवाददाता – अच्छा ठीक है…उनसे बात हुई तो कहूंगा कि किसी एक भाषण में तुम्हारा नाम ले दें…उनको क्या है…दिन में चालीस भाषण तो दे ही देते हैं…कहीं न कहीं ले लेंगे नाम…अब ये मत कहना कि तुम्हारे नाम पर भी कोई योजना शुरु कर दें…
डम्बवाददाता – क्या तुम्हारी मम्मी के नाम पर…
डम्बवाददाता – रुको यार…चम्पादक जी का फोन आ रहा है…अब पता नहीं क्या हो गया…?
(डम्बवाददाता फोन काट कर चम्पादक को कॉल लगाता है)
चम्पादक डी न्यूज़ – कहां हो…
डम्बवाददाता – सर, गाड़ी में बैठा हूं…ओबी में तेल पड़ रहा है….
चम्पादक डी न्यूज़ – रुको तुम रहने दो…माननीय की प्रेस मीट में मैं जा रहा हूं…
डम्बवाददाता – सर लेकिन मैं जा रहा हूं न…इनविटेशन भी मेरे नाम का है…
चम्पादक डी न्यूज़ – लेकिन चम्पादक कौन है?
डम्बवाददाता – सर…लेकिन
चम्पादक डी न्यूज़ – अरे…24 घंटे उनको दिखाने का फैसला कौन लेता है…किसकी मर्ज़ी से हर बुलेटिन की शुरुआत उनके चेहरे से होती है…किसकी मर्ज़ी से न्यूज़रूम में उनकी तस्वीर टांगी गई है…किसकी मर्ज़ी से चैनल के लोगो तक में उनकी तस्वीर लगाने की चर्चा हो रही है?
डम्बवाददाता – सर…ये सब आपकी मर्ज़ी से तो नहीं हो रहा है…ये तो ऊपर वाले की मर्ज़ी है…विज्ञापन तो वही देता है…और सैलरी भी…
चम्पादक डी न्यूज़ (खिसियाते हुए) – फिर भी…उनका इंटरव्यू किसने किया था?
डम्बवाददाता – सर, इंटरव्यू के लिए सेटिंग किसने की थी?
चम्पादक डी न्यूज़ – तो उनकी पार्टी के नेताओं की पैनल में खुशामद कौन करता था?
डम्बवाददाता – तो सर…चुनाव में उनका विज्ञापन कौन लाया था?
चम्पादक डी न्यूज़ (डर जाता है) – अच्छा चलो…दोनों साथ ही चलते हैं…
डम्बवाददाता – लेकिन सर…वहां सवाल मैं पूछूंगा…
चम्पादक डी न्यूज़ – सवाल? माननीय तो साक्षात जवाब हैं…हा हा हा…रुको मैं आ रहा हूं…और आज इंडिका से मत जाओ भाई…मालिकान ने बड़ी गाड़ी से जाने को कहा है…
डम्बवाददाता – सर, सोचा तो ये ही था कि सरकार आते ही बड़ी गाड़ी भी आ जाएगी लेकिन…
चम्पादक डी न्यूज़ – आज उसी का जुगाड़ करना है…चलो तैयार रहो…
(गाड़ी चल देती है…इस एक दृश्य को आप थोड़ा बहुत हेरफेर कर के लगभग सभी चैनल्स का सीन मान सकते हैं…)
उसी समय उसी सड़क से एक और गाड़ी जा रही है, जिसके अंदर मीनिया न्यूज़ के चम्पादक काला चश्मा लगाए बैठे हैं, चम्पादक जी पहले ‘डम्बवाद’दाता थे और देश की नई पीढ़ी के ज़्यादातर डम्बवाददाताओं ने इन्हीं को प्रेरणास्रोत मान कर, ‘डम्बवाद’ का रास्ता अपनाया। ‘डम्बवाद’ देश की पत्रकारिता में आदर्शवाद के प्रतिरोध के आंदोलन के रूप में शुरू हुआ था और अब देश में डम्बवादी पतितकारिता ही पत्रकारिता की मुख्यधारा मानी जाती है। चम्पादक जी पिछले कुछ साल से चम्पादक के तौर पर डम्बवाददाता की ज़िम्मेदारी को कुशलता से निभाते आए हैं कि जनता को पता ही नहीं है कि वो दोनों में से कौन हैं। क्लीन शेव से हल्की दाढ़ी और फूल-पत्ती वाली शर्ट से एक्ज़ीक्यूटव सूट के दौर तक माइक इनके साथ वैसे ही रहा है, अब तो ऐसा लगता है कि माइक इनके शरीर का हिस्सा है। जानने वाले बताते हैं कि वो सोते, खाते और नित्यक्रिया के समय भी माइक पकड़े रहते हैं, माइक नहीं होता है तो हाथ में माइक रहने का अभिनय करते हुए बात करते हैं। इनके मशहूर अनुयायियों में हिमेश रेशमिया भी हैं। तो गाड़ी आगे चलती है…
मीनिया न्यूज़ चम्पादक – अरे ड्राइवर… क्या नाम है तुम्हारा… ज़रा गाड़ी किनारे लगाओ पान की दुकान पर…
(गाड़ी रुकते ही पानवाला दौड़ कर चम्पादक जी के हाथ में राजश्री पकड़ा देता है, राजश्री क्या है, ये जानने के लिए सम्पर्क करें पान की दुकान पर, चम्पादक जी राजश्री का पैकेट फाड़ कर उसमें जर्दा मिलाते हैं और मुंह को हुआं-हुआं करने के अंदाज़ में ऊपर उठाते ही हैं कि सामने से डी न्यूज़ के चम्पादक गाड़ी में जाते दिखते हैं…)
मीनिया न्यूज़ चम्पादक – अबे राजिंदर…जल्दी गाड़ी भगा…
(ऐसे मौके पर ड्राइवर का नाम याद आ जाना स्वाभाविक है…)
कैमरामैन टिल्टअप नेगी – क्या हुआ सर…अभी तो देर है…
मीनिया न्यूज़ चम्पादक – अबे वो देखो अधीरवा जा रहा है…साला जल्दी पहुंच कर सबसे आगे की सीट ले लेगा…माननीय के बगल वाली…अबे अपन तो पुराने स्वयंसेवक रहे हैं…माइक के अलावा बस निकर ही थी जो हमेशा पहने रहे…प्रेस कांफ्रेंस में जाते थे तो बाकी लोग जॉकी की अंडरवियर उघाड़े रहते थे…हमारे तो चेहरे पे ही निकर दिखती थी…सबसे आगे तो अपन बैठेंगे…
टिल्ट अप नेगी – सर…हां…आगे से सवाल भी पहले पूछ सकते हैं…
मीनिया न्यूज़ चम्पादक – सवाल…हा हा हा… माननीय सवाल नहीं सुनते… जवाब देते हैं… साक्षात उत्तर रूप हैं…
गाड़ी चलती है, स्पीड ब्रेकर आते ही माननीय के मुंह के अंदर जर्दे से प्रतिक्रिया कर रहे राजश्री की पीक उनके होठों के किनारे छलक आती है, ठीक जैसे पत्रकारों के सवालों में उनकी समझ) इधर ऐसी ही और कई गाड़ियां सड़कों पर एक दूसरे से रेस कर रही थी, माननीय ने पांच महीने में पहली बार मिलने जो बुलाया था। ज़ाहिर है अब अगला मौका शायद पांच साल बाद ही आता। गाड़ियों और उनमें बैठे लोगों के नाम चैनलों के नाम के हिसाब से आप तय कर सकते हैं।
इधर एल सी डी टीवी के दफ्तर में चम्पादक कुर्सी पर उकड़ू बैठे थे, सामने 1 दर्जन टीवी स्क्रीन थी, ये मॉनीटर करने के लिए कि कौन सा चैनल क्या चला रहा है। लेकिन पिछले 8 महीने से 1 को छोड़ कर बाकी सारी टीवी स्क्रीन बंद कर दी गई थी। एडमिन और प्रबंधन का तर्क था कि सारे चैनल जब माननीय को ही दिखा रहे हैं तो कोई भी एक देख लो, बिजली बचेगी और कॉस्ट कटिंग भी नहीं कहलाएगी। एल सी डी टी वी के चम्पादक औऱ चैनल को भी पहले साम्यवाद और फिर अवसरवाद का अनुयायी माना जाता था, हालांकि चम्पादक जो पहले काडर हुआ करते थे और कैम्पस में लाल झंडा ले कर नाचते थे, अब कहते थे कि वो वाम के नहीं, अवाम के अनुयायी हैं।
ग़ौरतलब बात यह है कि पिछले 8 महीने से उनके चैनल ने भी माननीय को इतना दिखाया था, जितना कि सेट मैक्स पर सूर्यवंशम नहीं दिखाई जाती है। पर चम्पादक जी के अंदर का जीव अभी जीवित था, इसलिए उन्होंने तय किया था कि वो माननीय की प्रेस मीटिंग में नहीं जाएंगे। अंदर से उनको डर था कि माननीय अपने खिलाफ की गई रिपोर्टिंग पर उन से मौज ले सकते हैं, या कहीं उन्हें देखते ही माननीय को पुरानी रंजिश याद न आ जाए। लेकिन ऊपर से उन्होंने सबसे ये ही कहा था कि वो माननीय के नैतिक सैद्धांतिक विरोध में नहीं जा रहे हैं।
उकड़ू बैठे चम्पादक जी के हाथ में एक डम्बवाददाता चाय देता हुआ बोला, डम्बवाददाता – सर, आप नहीं गए…
चम्पादक एल सी डी टीवी – नहीं… अपना माइकेश कुमार गया है न…
डम्बवाददाता – सर, आपको जाना चाहिए…
चम्पादक एल सी डी टीवी – तुम तो जानते हो…अपना छत्तीस का आंकड़ा है…
डम्बवाददाता – अब कैसा आंकड़ा सर…अब तो उनके पास बहुमत का आंकड़ा है…देश के माननीय हैं…अब क्या दुश्मनी…आपकी नाराज़गी व्यक्ति से है…विरोध व्यक्ति से है…देश से थोड़े ही…लोगों ने चुना है…
चम्पादक एल सी डी टीवी – वो तो ठीक है लेकिन उनको भी अच्छा नहीं लगेगा…
डम्बवाददाता – लगेगा सर…प्रवक्ता जी बता रहे थे कि आपका हाल चाल पूछ रहे थे…
(चम्पादक एल सी डी टीवी कुर्सी पर ही उकड़ू से खड़े हो जाते हैं…ऊपर से ही पूछते हें)
चम्पादक एल सी डी टीवी – सच कह रहे हो…
डम्बवाददाता – जी सर, आपकी तारीफ कर रहे थे कि कर्मठ और ईमानदार आदमी हैं, इनको तो पीएमओ में होना चाहिए…
चम्पादक एल सी डी टीवी – मतलब लोग ठीक कहते हैं…ये आदमी वाकई बदल गया है…ख़ैर लेकिन अब तो देर हो जाएगी…
डम्बवाददाता – आप तो हर प्रेस कांफ्रेंस में देर से ही पहुंचते थे सर…दफ्तर भी तो…
चम्पादक एल सी डी टीवी – हां ये भी है…ओए मेरा मज़ाक उड़ा रहे हो…
डम्बवाददाता – सर बाहर गाड़ी तैयार है…
चम्पादक एल सी डी टीवी – ओह…ठीक है मैं चलता हूं…चैनल तो वैसे भी मेरी मर्ज़ी के बिना ही चल रहा है…
डम्बवाददाता – सर….चप्पल तो पहन लीजिए….
(लेकिन तब तक चम्पादक एल सी डी टीवी कार में बैठ कर फुर्र हो चुके हैं और सोच रहे हैं कि आज माननीय को ख़तरनाक सवाल पूछ कर ध्वस्त कर दूंगा।)
उधर सारे चैनलों पर सुबह से सिर्फ एक ही ख़बर है, आज चम्पादकों से मिलेंगे माननीय…माननीय और मीडिया का मिलन (जो कि साल भर पहले ही हो गया था)
…देश का नेता कैसा हो (डांडिया टीवी)…
माननीय की मीडिया मस्ती…
मजदूरों से मिलेगा मालिक…
मीडिया और माननीय बदलेंगे देश…
मीडिया की जीत…
इस तरह की हेडलाइन्स…क्रोमा और ब्रेकिंग के साथ चैनल देश की सेवा में जुटे हैं। ऐसा आत्मविश्वास कि देश ये ही बदलेंगे, शहीदों ने केवल ड्रामा किया था। एक एंकर तो एक रात पहले से ही लगातार चिल्ला रहा है, हालांकि वो हर रात चिल्लाता है पर इस बार तो ख़रज के सुर भी बिल्कुल सटीक हैं। प्रेस मीटिंग शुरु हो गई है, राष्ट्रगान के बाद माननीय पधारते हैं और उनको देख कर सारे चम्पादक और डम्बवाददाता उठ कर तन कर खड़े हो जाते हैं…वो भी जो राष्ट्रदान में या तो फोन पर थे या ऊंघ रहे थे। माननीय मुस्कुरा कर हाथ जोड़ते हैं और बैठने का इशारा करते हैं।
चाय नाश्ता आने लगता है लेकिन पहली बार पतितकारों की दृष्टि नाश्ते पर नहीं बल्कि माननीय के आभामयी मुखमंडल की ओर है। चम्पादक एल सी डी टीवी सबसे पहला सवाल पूछना चाहते हैं लेकिन तब तक माननीय जवाब देना शुरु कर चुके हैं। माननीय बोलते जाते हैं…बोलते जाते हैं…चम्पादक हाथ जोड़ कर ऐसे बैठे हैं जैसे सत्यनारायण की कथा चल रही हो और माननीय की जिव्हा पर तो साक्षात सरस्वती विराजमान है। जी हां, वही सरस्वती, जिसे चम्पादक जी कब का हिंडन में प्रवाहित कर आए हैं…लेकिन वो हैरान हैं कि सरस्वती और लक्ष्मी का ये कैसा डेडली कॉम्बिनेशन है।
प्रेस मीटिंग के तीन घंटे के समय में लगभग नारको टेस्ट की सी स्थिति में चम्पादक और डम्बवाददाता बैठे रहते हैं और माननीय 2 घंटे और 55 मिनट बोलते हैं।
माननीय – मैं आपका आभारी हूं… (चम्पादक बेहोश होना शुरू होते हैं)
माननीय – आप लोगों का समर्थन चाहिए…
चम्पादक डांडिया टीवी – अरे सर…घर की ही बात है…
माननीय – हम देश बदल देंगे…
चम्पादक मीनिया न्यूज़ – जैसे हम ने पत्रकारिता बदल दी सर…
माननीय – देश की सेवा करनी है…
माननीय – देश महान है…संस्कृति महान है…गुरुजी ने कहा था….
माननीय – भारतवर्ष की लाखों साल पुरानी परम्परा…
माननीय – पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब…
माननीय – मीडिया हमारी दोस्त है…
चम्पादक डी न्यूज़ – इतनी हमारी औकात कहां सर….
माननीय – देखिए देश की कई समस्याएं हैं…
माननीय – पिछली सरकार में…
माननीय – देश में हिंसा नहीं होनी चाहिए…
माननीय – मित्रों…मित्रों…मित्रों…
माननीय – देखिए आप सब माइक फेंक दीजिए…झाड़ू ले लीजिए…
माननीय – काला धन…सॉरी…गड़ब-गड़ब-गड़ब
माननीय – विकास… परम्परा… विकास… संस्कृति… विकास… भारतवर्ष… विकास… ऋषि-मुनि… विकास… कारपोरेट… विकास… डिज़ाइनर कुर्ते… विकास… झाड़ू…. विकास… गंगा… विकास… कश्मीर… विकास… सेनाएं… विकास… देख लेंगे… विकास… गुरु जी… विकास… नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे… विकास… अम्बानी… विकास… अदानी… विकास… येदियुरप्पा… विकास… पाकिस्तानी एजेंट… विकास… ट्वीट… ट्वीट… ट्वीट… विकास… फेसबुक… विकास… बुलेट… ट्रेन… विकास… अमेरिका… विकास… एनआरआई… विकास… आतंकवाद…. विकास… दीवाली…
(अंत में माननीय घड़ी देखते हैं…5 मिनट का समय बचा है)
माननीय – अब आप लोग कुछ पूछना चाहें तो…
माननीय – एक मिनट…अरे कुछ खाइए तो…आप लोग तो…
माननीय – अरे मीनिया न्यूज़ वाले चम्पादक जी…और घर पर सब कैसे हैं…क्या हाल चाल हैं आपके…
चम्पादक मीनिया न्यूज़ (कुर्सी से मेज़ तक लोट पोट हो जाते हैं) सर…बस आप की दुआ है…क्या कहें… (पैर पटक कर खुश होने लगते हैं…कोट पर चाय गिरा लेते हैं…उधर मीनिया न्यूज़ पर ब्रेकिंग फ्लैश होती है..) “माननीय ने पूछा चम्पादक जी का हाल चाल….माननीय ने चम्पादक जी को पहचाना…माननीय विकास…देश…चम्पादक…विकास…मीडिया…विकास….@#$%”)
इधर चम्पादक एल सी डी टीवी फिर से सवाल पूछने के लिए आगे बढ़ते ही हैं कि डी न्यूज़ के चम्पादक लगभग हिस्टीरिया की हालत में भागते हुए माननीय की ओर बढ़ते हैं….माननीय उठ कर खड़े हो रहे हैं…चम्पादक जी के पैर में डांडिया टीवी के चम्पादक पैर अड़ाते हैं और वो सीधे साष्टांग दंडवत की स्थिति में माननीय के पैरों में गिर जाते हैं….
माननीय – अरे नहीं नहीं…अभी तो शुरुआत है…आप अभी से पैरों में गिर गए…
चम्पादक डी न्यूज़ – अरे नहीं…वो तो परम्परा… विकास… संस्कृति… विकास… ऋषि-मुनि… विकास…
माननीय – ठीक है…ठीक है…ये तो मेरा ही भाषण है…
चम्पादक डी न्यूज़ – सर, वो क्या है आपके साथ एक तस्वीर खिंचवानी है…
माननीय – देखिए अगली बार मिलते हैं तो…
चम्पादक डी न्यूज़ – सर… वो दफ्तर में लगानी है… न्यूज़रूम में… कई सारे वामपंथी भरे हैं… थोड़ा ख़ौफ़ तो पैदा हो…
माननीय – ठीक है…ठीक है…लेकिन कैमरा…
चम्पादक डी न्यूज़ – अरे सर…आप तो ख़ुद सेल्फी के एक्सपर्ट हैं… कैमरा क्यों… एक सेल्फी ले लेते हैं…
और इससे पहले कि माननीय एक शब्द कहें, चम्पादक जी एक सेल्फी लेते हैं…और उनके सेल्फी लेने से पहले ही डी न्यूज़ ब्रेकिंग चला रहा है…
“माननीय के चरणों तक पहुंचा डी न्यूज़”
“भारतीय संस्कृति का बढ़ा मान”
“डी न्यूज़ चम्पादक का माननीय को दंडवत्”
“माननीय ने खिंचवाई डी न्यूज़ चम्पादक के साथ सेल्फी”
“विकास की सेल्फी में माननीय”
“डी न्यूज़ की एक्सक्लूसिव सेल्फी”
तब तक माननीय को अपने पैरों में गुदगुदी से महसूस होती है…वो नीचे देखते हैं तो डांडिया टीवी के चम्पादक, हनुमानी मुद्रा में उनके चरणों में बैठे थे।
माननीय – अरे कर्मा जी…ये क्या कर रहे हैं…आप तो पुराने स्वयंसेवक हैं…
कर्मा जी – सर…आपके फीते खुल गए थे…सोचा कि बांध दूं…आप तो व्यस्त थे…मुंह के बल गिर जाते तो…
माननीय – चलिए अच्छा किया…मैं भी कम-पानी जी के फीते बांध कर बोर हो गया हूं…आज किसी ने मेरे ही बांध दिए… तो आपको डांडिया टीवी भी लिए चलते हैं…
एंकर – और डांडिया टीवी ने रचा इतिहास…माननीय के खुले फीते बांध कर…कर्मा जी ने उनको गिरने से बचाया…और ख़ुद गिरते ही चले गए…माननीय के जूतों के साथ कर्मा जी की एक्सक्लूसिव तस्वीरें आपको हम दिखा रहे हैं…ये देखिए ये लाल गोले में हैं माननीय के जूते…काले रंग के जूते…और ये छोटे गोले में कर्मा जी के हाथ…और ये तीर दिखा रहा है…उन फीतों को, जिनको बांधा गया…ये एक्सक्लूसिव तस्वीरें आप देख रहे हैं सिर्फ डांडिया टीवी पर….
चम्पादक एल सी डी टीवी बाहर निकल रहे थे…खिसियाए से…उनका डम्बवाददाता उनके पास पहुंचा माइकेश कुमार – क्या हुआ सर…तबीयत ठीक नहीं है क्या…
चम्पादक एल सी डी टीवी – नहीं यार एक सवाल भी न पूछ सका…
माइकेश – हा हा हा…माननीय से सवाल…ये प्रेस मीटिंग थी सर…जैसे इलेक्शन मीटिंग होती है…बोर्ड मीटिंग होती है…
चम्पादक एल सी डी टीवी – मतलब…
माइकेश – मतलब सर…मीटिंग में सवाल नहीं पूछे जाते…एडीटोरियल मीटिंग में आप किसी को सवाल पूछने देते हैं क्या…
चम्पादक एल सी डी टीवी – मतलब…
माइकेश – आप क्या कहते हैं वहां…सवाल मत पूछो…जो कहा जा रहा है..वो करो…
चम्पादक एल सी डी टीवी – तो…
माइकेश – तो ये भी वही था…सवाल मत पूछो…जो कहा जा रहा है करो…
चम्पादक एल सी डी टीवी – तो क्या करें…
माइकेश – सबसे पहले तो माइक और कलम को फेंक दीजए…और फिर झाड़ू उठा लीजिए…
चम्पादक एल सी डी टीवी – मतलब?
माइकेश – मतलब पत्रकारिता और विचारधारा पर झाड़ू फिराइए…
चम्पादक एल सी डी टीवी – यार…एक सवाल पूछ लेता तो…
माइकेश – सवाल तो नहीं ही पूछ पाते…इससे अच्छा था कि एक सेल्फी ही खिंचा लेते…उस पर ही एक आधे घंटे का शो प्लान हो जाता…मुझे लगा कि आप कर लेगें सो मैंने नहीं खिंचाई…
चम्पादक एल सी डी टीवी – यार लोकतंत्र में सवाल और असहमति तो होंगे न…
माइकेश – सर…ये लोकतंत्र वोट वाला है…बहुसंख्यक का लोकतंत्र…और ये तो एक तरह की राजशाही ही है…बल्कि तानाशाही…बहुसंख्यक बोले तो वोट डाल पाने वालों का बहुमत…लोकतंत्र…आप क्या इसे वाकई लोकतंत्र समझते हैं…मुझे लगा था कि आप बहुत पढ़े लिखे हैं…
चम्पादक एल सी डी टीवी – लेकिन रेल किराया देखो…महंगाई…एक सवाल तो बनता था न…
माइकेश – आपको इससे क्या…आप न तो रेल से सफर करते हैं और न आप को महंगाई से दिक्कत है…सर ये लोकतंत्र वो वाला नहीं है…इस में मामला अलग है…ये मध्य वर्ग और उच्च वर्ग का लोकतंत्र है जो अपने फायदे के लिए सरकार बनाता है…गरीब और अमीर के फायदे अलग हैं सो लोकतंत्र अलग है…
चम्पादक एल सी डी टीवी – लेकिन बेसिक नीड्स…
माइकेश – वो भी अलग हैं…जैसे आपकी नीड है कि एक और फ्लैट…और मेरी बच्चे का एडमिशन…हैं न अलग अलग…आप सेल्फी ले लेते तो राइम टाइम बन जाता…
चम्पादक जी दुखी होते हुए कार की ओर जा रहे हैं, सेल्फी लेने वाले फेसबुक पर बधाईयां गिन रहे हैं, चम्पादक जी सोच रहे हैं कि न तो सेल्फी ही ली…न सवाल ही पूछा…मैं यहां आया ही क्यों…आप अगर चम्पादक हैं तो ये सवाल खुद से मत पूछिएगा, नौकरी नहीं कर पाएंगे…बस अगली बार सेल्फी लेने की कोशिश कीजिएगा…वरना फ्लैट, गाड़ी और क्रेडिट कार्ड की किश्तें आपके घर को विदर्भ बना देंगी…
(इस कहानी का किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति से कोई सम्बंध नहीं है और अगर है तो ये उसकी ख़ुद की ज़िम्मेदारी है। व्यंग्य है, अन्यथा ही लें।)”
लेखक मयंक सक्सेना पत्रकार और सोशल एक्टिविस्ट हैं.