रुद्रपुर (उत्तरांचल) : दुनिया भर के झगड़े सिर्फ झूठ और सच को सिद्ध करने में ही हो रहे हैं। दो पक्षों में से एक पक्ष सदैव अपने को सच्चा व दूसरे को झूठा बतलाता है और कोर्ट कचहरी तक झूठा भी अपने को सच ठहराने का प्रयास करता रहता है। अंत में न्यायालय ही गवाहों और तथ्यों के आधार पर झूठ को झूठ और सच को सच बताता है। रुद्रपुर में लगता है, न्याय की दकरार न, प्रशासन ने मनमाना तरीके से प्रेस क्लब पर ताले जड़वा दिए। इससे पत्रकारों में रोष है।
सभी जानते हैं कि न्यायालय के बाद अगर जनता किसी पर भरोसा करती है तो वो है प्रिंट और इलैक्ट्रानिक मीडिया। किसी भी विवाद के बारे में जब मीडिया कुछ लिखता या बताता है तो जनता उसे सच के करीब इसलिए मानती है कि एक पत्रकार ने अपने नैतिक धर्म को निभाते हुए दोनों पक्षों के तथ्यों की जांच-पड़ताल के बाद ही सच्चाई जनता के सामने रखी होगी। इसी कारण पत्रकारिता आज भी सत्य की वाहक मानी जाती है।
इसके विपरीत जब कोई पत्रकार अपने क्षुद्र स्वार्थों की पूर्ति व प्रशासनिक चापलूसी के चलते किसी भी मामले में दोनों पक्षों को ठीक से जाने बिना एक पक्षीय तथ्य जनता के सामने परोसता है, तब जनता के बीच तथ्यहीन सामग्री के कारण तरह-तरह के भ्रम और आशंकाएं पैदा होती हैं। ऐसे में पत्रकार की अपनी छवि खराब होती है और पत्रकारिता कलंकित होती है। ऐसे ही उदाहरण के तौर पर रुद्रपुर में प्रेस क्लब भवन के बारे में अमर उजाला, दैनिक जागरण, उत्तरांचल दर्पण, वसुंधरा दीप, न्यूजप्रिंट आदि में खबरें छपीं। लिखा गया कि ‘खंडहर बना 40 लाख का प्रेस क्लब भवन, शासन नहीं ले रहा सुध, नशेड़ियों का अड्डा बनी बिल्डिंग, कब्जे में लिया प्रेस क्लब भवन, प्रेस क्लब भवन पर प्रशासन का ताला, प्रशासन ने लिया कब्जे में प्रेस क्लब भवन, प्रेस क्लब भवन पर एसडीएम ने लिया कब्जा, पत्रकारों के विवाद में डीएम का दखल- आखिर जड़ ही दिए सूचना विभाग ने ताले, प्रेस क्लब भवन जिला सूचना अधिकारी के कब्जे में। सांध्य दैनिक अमन केसरी ने तो छापा कि ‘बिना नोटिस दिए प्रेस क्लब भवन सील’ आदि-आदि…।
जनता को हैरानी होगी यह जानकर कि इन पत्रकारों के प्रेस क्लब के मामले में किसी भी पत्रकार ने प्रेस क्लब भवन के तथ्यों को जानने के लिए जहमत नहीं उठाई और वह सब छाप दिया जो उनके मन में आया। प्रेस क्लब के मजबूत व अच्छी स्थिति में खड़े भवन को अमर उजाला के पत्रकार ने खंडहर, जुआरी, शराबियों, नशेड़ियों का अड्डा ही बता दिया। उसी खबर का संज्ञान लेकर जिलाधिकारी ने भी प्रेस क्लब के बारे में वस्तुस्थिति जानने की कोशिश तक नहीं की और तुगलकी फरमान देकर बिना किसी शिकायत, लिखित सूचना या नोटिस दिये प्रेस क्लब भवन से केयरटेकर को आनन-फानन में निकलवाकर ताले जड़वा दिए। ताला लगने से पूर्व जब प्रेस क्लब अध्यक्ष, जिलाधिकारी के पास अपना पक्ष रखने गये तो उनकी एक न सुनी और बोले आप जाइये, प्रेस क्लब भवन सरकारी भवन है, हम अपना ताला डाल रहे हैं।
कायदे से जिलाधिकारी को प्रेस क्लब अध्यक्ष से प्रेस क्लब की वास्तविक स्थिति जाननी चाहिए थी, या यदि कोई सूचना प्रेस क्लब भवन के दुरुपयोग की उन्हें जानकारी मिली थी तो उसके बारे में स्पष्टीकरण मांगते। यह भी नहीं तो कम से कम प्रेस क्लब भवन को सील करने विषयक सूचना तो लिखित में देनी ही चाहिए थी। जिलाधिकारी की इस कार्रवाई से प्रेस क्लब ऊधम सिंह नगर (रुद्रपुर) रजि0 के लोग ही नहीं, अन्य अनेक पत्रकार भी हतप्रभ हैं कि जिलाधिकारी को आनन-फानन में ऐसा करने करने की क्या जरूरत पड़ गई। या डीएम ने यह कार्रवाई किसी के बरगलाने पर की है। दूसरी ओर चौथे स्तंभ के पत्रकार किसी भी संस्था का पक्ष लिए बिना किसी स्वार्थी व्यक्ति के कहने मात्र पर कुछ भी छाप कर संस्था की प्रतिष्ठा धूल में मिला देंगे?
हालांकि पुष्ट नहीं, पर सूत्रों से मिली खबरों के अनुसार प्रेस क्लब की प्रतिष्ठा को बेवजह धूल में मिलाने का काम अमर उजाला के यशस्वी पत्रकार भाष्कर पोखरियाल ने कर दिखाया है। पत्रकारिता को कलंकित करने वाले ऐसे पत्रकार को शायद पत्रकारिता का दायित्व बोध कम और अमर उजाला के पत्रकार होने का अहम ज्यादा है। उसने एक बेसिर-पैर की खबर छापकर पत्रकार बिरादरी में रोष और समाज में एक भ्रम फैला दिया है।
प्रश्न उठता है कि क्या प्रेस क्लब भवन पर ताला जड़ जाने से अमर उजाला में छपी तथ्यहीन खबर पुष्ट हो गयी ? सच्चाई के सारे तथ्य गायब हो गये ? प्रेस क्लब भवन के बारे में अमर उजाला द्वारा लिखा गया भ्रामक समाचार ही अंतिम सत्य था जिसे जिलाधिकारी ने आंख मूंद कर सच मान लिया और तुगलकी कार्यवाही कर डाली। नहीं, अब नहीं, वास्तविक सच अभी आना और लिखा जाना बाकी है, जिसे कानूनी तौर पर सत्य सिद्ध होकर दूध का दूध और पानी का पानी होना है। सत्य का अंतिम सहारा सिर्फ न्यायालय होता है, व्यक्ति विशेष नहीं।
बी.सी. सिंघल, अध्यक्ष प्रेस क्लब ऊधम सिंह नगर (रुद्रपुर) ऊधम सिंह नगर (उत्तराखण्ड) से संपर्क : 9837776565
purushottam asnora
August 13, 2015 at 1:54 am
yhi sarkar bhi chala rhe hain, vijhapan k liye sarkar ki galatiyou par bhi tali pitane wali patrakarita choutha satambh to nhi ho sakti.iska vikalp sthaniy patrakarota ko sashkat our vishwasaniy bana kar hi ho sakta hai.