- कैलाश पौनियां विद्रोही
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जब कलम की नुकीली नोंक से निकले शब्द तोप के गोलों से भी भयंकर आवाज करने लगते हैं तो सिहांसन के खम्भे हिलने लगते हैं ,तब सिहांसन पर बैठा हुक्मरान कलम की नुकीली नोंक की धार को भौंथरी करने की कुत्सित कोशिश करने लगता है। जो कलम और जो कैमरा सिंहासन के मतलब के गीत नहीं गा सकता है उसे सिंहासन की मार का शिकार होना पड़ता है। भारतीय लोकतंत्र में बेबाक और निष्पक्ष पत्रकारिता करना बेहद खतरनाक हो गया है।
सत्ता के सिंहासन पर बैठा हुक्मरान जब खुद को तानाशाह समझने लगे और आलोचनाओं टिप्पणियों से डरने लगे, कलम की नोक से निकले शब्दों से भयभीत होने लगे तब वह सबको भयभीत करने लगता है क्योंकि वह जानता है कि जिस डर से मैं डर रहा हूं उसी डर को इनके जेहन में डालो। पिछले 7 सालों से यही देश में चल रहा है सिंहासन पर बैठे हुक्मरान निष्पक्ष पत्रकारिता और मीडिया को डरा रहे हैं।
दैनिक भास्कर अखबार की कलम ने सिंहासन के खंभों को हिला दिया है। अब सिंहासन पर बैठे हुक्मरान अपनी सत्ता को बचाने के लिए खतरनाक दांव पर खेल रहे हैं। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के सिंहासन पर बैठे हुक्मरान ईडी का भय दिखाकर मीडिया को डराने की कुत्सित कोशिश कर रहे हैं । दैनिक भास्कर अखबार और भारत समाचार न्यूज़ चैनल के सम्पादकों के यहां छापेमारी ईडी द्वारा की गई है। सरकार की ईडी सीबीआई और पालतू आईटी सेल ने देश में ऐसा भय का वातावरण बना दिया है जिससे ऐसा लगने लगा है कि अघोषित इमरजेंसी देश में लागू हो गई है।
दैनिक भास्कर अखबार ने कोरोना की त्रासदी की तस्वीरों को जनता के पटल पर रख दिया इतना ही नहीं पेगासस स्पाइवेयर की जासूसी कांड की खबर को भी प्रमुखता से दैनिक भास्कर ने छापा था। भारत समाचार भी बेबाकी से लगातार प्रदेश और केंद्र की सरकार से सवाल कर रहा था बाकायदा भारत समाचार भी लोकतंत्र को बचाने के लिए सही मायनों में अपना कर्तव्य देश में निभा रहा है। सरकार ने पहले एनडीटीवी के रवीश कुमार विश्वविख्यात पत्रकार की आवाज को दबाने की ईडी और सीबीआई के दम पर कोशिश की लेकिन रवीश कुमार की आवाज मुखर होती गई।
अब सरकार के निशाने पर दैनिक भास्कर अखबार और भारत समाचार आ गए हैं । सरकार ने कलम और कैमरे पर नकेल कसने के लिए दांव चल दिये हैं, हो सकता है कि सरकार की पोल खोलने वाले अन्य अखबारों और न्यूज चैनलों को भी इसका शिकार होना पड़े। क्योंकि जब कलम सिंहासन से बगावत करने लगती है तब सरकार अपनी तोपों का इस्तेमाल करने लगती है। निष्पक्ष मीडिया का गला घोंटने का काम सरकार द्वारा लगातार किया जा रहा है जो सही लोकतंत्र के सही मायनों में कितना उचित है इसका जवाब देश की जनता पर निर्भर है।
देश में पत्रकारों का एक धड़ा लोकतंत्र को बचाने के लिए संघर्ष कर रहा है तो देश की मीडिया का दूसरा धड़ा सरकार की गुलामी पूरे कर्तव्यों के साथ कर रहा है। जब से देश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी है तब से देश का मीडिया दो धड़ों में बट गया है। जहां एक धड़ा वामपंथी तो दूसरा धड़ा दक्षिणपंथी है।
प्रकाश
July 24, 2021 at 3:21 am
टैक्स चोरों से कौन डरा है आज तक