Dinesh Shrinet : पिछले कुछ दिनों से ‘इमोशनल इंटैलीजेंस’ पर कुछ कुछ पढ़ने का प्रयास कर रहा था। फिर इसके इधर-उधर भी बहुत कुछ पढ़ गया। कुल मिलाकर कुछ बातें समझ में आयीं, जो मैं यहां आप सबके साथ शेयर कर रहा हूँ।
पहला, दुनिया के ज्यादातर सफल लोग ज्ञान के बोझ से लदे नहीं घूमते। वे ज्ञान और सूचनाओं के अनंत प्रवाह में से सिर्फ वही चुनते हैं जो उनके लिए सबसे ज्यादा जरूरी होता है। शतरंज का एक बड़ा खिलाड़ी इस बात पर शर्मिंदा नहीं होगा कि वह राजनीति पर ज्यादा चर्चा नहीं कर सकता या यह जरूरी नहीं है कि एक सफल संगीतकार नये लिखे बेस्टसेलर के बारे में भी जानता हो।
दूसरा, हममें से ज्यादातर लोग बाहरी प्रभावों से संचालित होते हैं। हम धर्म, विचार, राजनीति को फॉलो करते हैं और काफी समय उस पर चल रही बहस और वाव-विवाद में खराब करते हैं। दिलचस्प यह है कि जीसस, बुद्ध, मोहम्मद, मार्क्स या गांधी फॉलोअर नहीं थे। वे विद्रोही थे और उन्होंने समाज के तत्कालीन तौर-तरीकों का विरोध किया।
तीसरा, हमें अपने बचपन की तरफ लौटना चाहिए। यह वो उम्र होती है जब हम बिना किसी बाहरी प्रभाव के अपनी खुद की सहज बुद्धि के आधार पर सोच रहे होते हैं। हमें अपने जीवन में उस स्थिति को दोबारा हासिल करने का प्रयास करना चाहिए। यह वो उम्र होती है जब इमोशनल इंटैलीजेंस की ऊर्जा सबसे ज्यादा होती है।
चौथा, जीवन में वो करें या वह करने का प्रयास करें जो आपका पैशन है। अपने पैशन की पहचान कैसे होगी? उसकी सीधी सी कसौटी यह है कि जिस काम घंटों, दिनों, महीनों करते हुए आपका मन न तो ऊबता है और न ही थकता है, दरअसल वही आपका पैशन है। वह हर एक में अलग अलग हो सकता है। रामानुजन समीकरण हल करने में नहीं थकते थे तो मोजार्ट संगीत से नहीं ऊबते थे। तोलस्तोय या प्रेमचंद का पैशन लिखना था तो मोहम्मद अली का मुक्केबाजी।
पांचवां, उन कामों से बचना चाहिए जो समय और ऊर्जा का अपव्यय करती हैं। यानी काम को इस तरह से करना चाहिए कि इन दोनों के न्यूनतम अपव्यय से अधिकतम रिजल्ट हासिल हो। विज्ञान भी इसी तरह काम करता है और ज्यादातर अविष्कार भी समय और ऊर्जा के कम इस्तेमाल से अधिक हासिल करने के आधार पर बने हैं। चाहे तो पहिया हो या इंजन।
जो सबसे अहम बात है वो यह है कि अपनी ऊर्जा को रचनात्मक कार्यों के लिए एकत्रित रखना और रोजमर्रा के जीवन में ऊर्जावान बने रहना।
वरिष्ठ पत्रकार दिनेश श्रीनेत की एफबी वॉल से.