प्रवीण झा-
अग्निवीर पर जो विद्यार्थी से पता लगा-
- सेना में भर्ती और देशसेवा का विकल्प सदा से रहा है। कल भी थी, आज भी है। वह वैकल्पिक ही है। यह कहने की ज़रूरत नहीं कि न आना है, तो मत आओ, जबरदस्ती नहीं है। वह तो पता ही है।
- शॉर्ट सर्विस कमीशन पहले से मौजूद है, जिसमें दस वर्ष की सेवा थी। उसके बाद परमानेंट या चार साल के एक्सटेंशन के विकल्प थे। जवानों की भर्ती इस तरीके से लंबे समय से होती रही है। अब यह चार साल की अल्ट्रा-शॉर्ट आयी है।
- एनडीए, आइएमए से अलग जवान बहाली अब शॉर्ट सर्विस कमीशन के बजाय अग्निवीर अल्ट्रा शॉर्ट कमीशन से होगा। यह शॉर्ट सर्विस के मुकाबले बहुत अधिक आकर्षक नहीं लगता।
- जिनकी कुछ परिक्षाएँ ली जा चुकी है, मेडिकल आदि हो चुका है, उन्हें फिर से शून्य से शुरू करने कहा जा रहा है। यह उनके साथ अन्याय है, और पहले लगाए गए संसाधनों को धत्ता बताना भी।
- विद्यार्थी जवान बन कर देशसेवा करना चाहते हैं। वे चार वर्ष बाद वापस लौटने के लिए नहीं जा रहे। कम से कम दस वर्ष सेना में देने की क्षमता है। आखिर इतनी बड़ी संख्या को चुनने के बाद उनकी तीन चौथाई की छँटनी के लिए कौन सी प्रक्रिया होगी? दस-बीस प्रतिशत अनफिट हो गए। दस प्रतिशत ने ऑप्ट-आउट कर लिया। मगर बाकी? वे तो फिट हैं, अनुशासित हैं, मोटिवेटेड हैं। ऐसी बृहत छँटनी व्यवस्था जिसमें कठिन प्रवेश और कड़े प्रशिक्षण के बाद तीन चौथाई ही साफ कर दिए जाएँ बहुत प्रेरक नहीं है।
[मुझे इनमें से बिंदु 4 तो वाजिब लगा, बाकी बिंदुओं पर प्रबंधन और अर्थव्यवस्था के हिसाब से हायर-फायर पॉलिसी अब हर जगह है। क्या करियेगा?]