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हिन्दीखबर के नेशनल ब्यूरो अजस्र पीयूष शुक्ला ने दिया इस्तीफ़ा

अयोध्या के रहने वाले अजस्र पीयूष ने हिंदी खबर न्यूज़ चैनल को अलविदा कह दिया है। वे चैनल के नेशनल ब्यूरो थे। अजस्र पीयूष ने हिन्दुस्तान अख़बार से करियर की शुरूआत की थी।

इसके बाद महुआ, समाचार प्लस, प्रभात खबर जैसे मीडिया संस्थानों में सेवाएं दीं। वे 2007 से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय हैं।

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हिंदी खबर को दिए इस्तीफ़े की कॉपी के कुछ अंश देखें-

11 जनवरी 2019 हिन्दीखबर में मेरी दूसरी पारी की शुरूआत की दिल्ली में बतौर विशेष संवाददाता सबसे महत्वपूर्ण बीट भाजपा को कवर करने के साथ हुई चुनावी साल में मैंने रात दिन मेहनत कर एक स्पॉट तैयार किया…

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फिर चाहे यूपी रहा हो या उत्तराखंड दोनों राज्यों में चुनाव के दौरान बेहतर से बेहतर काम करते हुए हर जगह चैनल को जगह दिलाई चुनाव के बाद मंत्रीमंडल के गठन समेत कई अवसरों में चैनल को सबसे आगे रखा।

चुनावी राज्यों के दौरों के दौरान भी चैनल को सीमित संसाधनों में भी खड़े रखा ये सबसे अहम रहा था। ऐसी कई ख़बरें रिपोर्टिंग का अवसर मिला जिसे ताउम्र भुला नहीं सकते वंदेभारत की यात्रा हो या अलंग की यात्रा या फिर औरंगाबाद में पानी की रिपोर्टिंग उत्तराखंड में राजनीतिक हलचल रही हो या अयोध्या फैसले पर कवरेज के साथ शिलान्यास की महत्वपूर्ण कवरेज पर भी चैनल को कभी संसाधनों की कमी से खबर पर असर नहीं आने दिया । उधर चैनल ने भी मान सम्मान दिया और बिशेष संवाददाता से ब्यूरो का दायित्व सौंपा।

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मैने हमेशा पहले संस्थान के लिए फिर संस्थान में काम करने वालों के लिए काम किया ना कि अपने लिए बाक़ी तो सबको पता है कौन क्या करता है। इस दौरान कई बडे संस्थानों से जुड़ने का मौक़ा और ऑफर भी मिला पर नहीं गया क्योकि मुझे इस संस्थान को वहाँ तक पहुँचाना था कि लोगों के ज़हन में हिन्दी खबर रहे। हांलाकि दिल्ली से लेकर देहरादून तक ये करके भी दिखाया आप सभी के सहयोग से ये सम्भव हुआ। इसलिए सभी का धन्यवाद ।

कहते हैं कि जीवन में कुछ स्थाई नहीं होता आज जन्म है तो कल मृत्यु जीवन चक्र चलता रहता है और इसी का नाम जीवन है। कभी कभी कुछ कठोर फैसले लेने पड़ते है और आज वैसा ही एक फैसला लेने का वक्त आ गया है। अपने इस सफ़रनामे को यहीं पर पूर्ण विराम देता हूँ। यादें हमेशा साथ रहेंगी ये तय है।

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कुछ लोगों को मेरा रहना अखरता था तो अब नहीं रहूँगा काम के दौरान हो सकता है किसी का दिल दुखा हो तो करबद्ध होकर माफी माँगता हूँ । बाक़ी अतुल सर आपसे किया वादा यहीं तक था, अब इजाज़त दीजिए वक्त अलविदा कहने का आ गया है।
अंत में यही कहूँगा ‘चिरागों को हाथों में महफ़ूज़ रखना अभी जिन्दगी में बड़ी रात होगी मुसाफ़िर हो तुम भी मुसाफ़िर हैं हम भी किसी मोड़ पर फिर मुलाकात होगी’।

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