डाक्टर अरविंद सिंह-
आज़मगढ़ : चलिए! अमर उजाला को जगने में केवल 4-5 दिन ही लगे, उजाला की नींद तो खुली..
देश भर से वरिष्ठ पत्रकारों, एक्टिविस्टों और संगठनों ने गिरफ्तार पत्रकारों के प्रशासनिक उत्पीड़न और जेल भेजे जाने पर आवाज उठायी। आजमगढ़ से जर्नलिस्ट क्लब ने भी इस सरकारी तानाशाही का मुखर विरोध किया। पत्रकारों के हितों में आजमगढ़, मऊ, गाजीपुर में बैठकों को प्रोत्साहित किया।
बलिया जेल से आजमगढ़ जेल में भेजे गए पत्रकारों से मुलाकात की कोशिश की। उनकी आवाज प्रेस काउंसिल आफ इंडिया तक पहुँचाने का प्रण लिया। यह सब इसलिए कि गिरफ्तार व्यक्ति पत्रकार हैं और लोकतंत्र के प्रहरी हैं। उनकी आवाज दबाने का प्रयास किया गया।
यदि अमर उजाला भी शुरू से तेवर दिखाता तो उसके पत्रकारों का उत्पीड़न शायद नहीं होता, जेल जाने की नौबत ही नहीं आती। जिस अखबार में आप काम कर चुके हों, उसके पतित होते या निस्तेज होते या अपनों के साथ खड़े होने की बजाय मूक बनने या तटस्थ होते देखना भी बहुत बड़ा अपराध होता है।
वाल्टेयर के विचारों के साथ अपने आप को जोड़ते हुए – “बेशक मैं तुम्हारे विचारों से सहमत नहीं हूँ लेकिन विचार प्रकट करने के तुम्हारे अधिकार की रक्षा के लिए लड़ता रहूँगा.”
आखिर में इस विश्वास को पुख्ता करता हूँ.-
कुछ तो होगा
कुछ तो होगा
अगर मैं बोलूंगा
न टूटे, न टूटे
तिलिस्म सत्ता का
मेरे अंदर का एक कायर टूटेगा
रघुवीर सहाय जो लिख गए आज भी वह वैचारिक हथियार है.
पत्रकार एकता जिन्दाबाद!!
बागी बलिया!! बागी पूर्वांचल!!
देखें बलिया के पत्रकारों के ज़ोरदार प्रदर्शन का वीडियो-