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सियासत

डा. आंबेडकर को ठिकाने लगाने की आरएसएस की एक और कोशिश

Kanwal Bharti : डा. आंबेडकर को ठिकाने लगाने की आरएसएस की एक और कोशिश…  दूरदर्शन पर खबर थी, रामानुजाचार्य की जयंती पर, प्रधानमंत्री मोदीजी ने कहा है कि रामानुजाचार्य के दर्शन से डा. आंबेडकर भी प्रभावित थे. यह जुमलेबाज़ मोदी जी का झूठ नहीं है, बल्कि यह वह एजेंडा है, जिसे आरएसएस ने डा. आंबेडकर के लिए तैयार किया है. इस एजेंडे के दो बिंदु हैं, एक- डा, आंबेडकर को मुस्लिम विरोधी बनाना, और दो, डा. आंबेडकर को हिन्दूवादी बनाना. वैसे, उन्हें मुस्लिम-विरोधी बनाना भी हिन्दूवादी बनाना ही है. यह काम वो नब्बे के दशक से ही कर रहे हैं.

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Kanwal Bharti : डा. आंबेडकर को ठिकाने लगाने की आरएसएस की एक और कोशिश…  दूरदर्शन पर खबर थी, रामानुजाचार्य की जयंती पर, प्रधानमंत्री मोदीजी ने कहा है कि रामानुजाचार्य के दर्शन से डा. आंबेडकर भी प्रभावित थे. यह जुमलेबाज़ मोदी जी का झूठ नहीं है, बल्कि यह वह एजेंडा है, जिसे आरएसएस ने डा. आंबेडकर के लिए तैयार किया है. इस एजेंडे के दो बिंदु हैं, एक- डा, आंबेडकर को मुस्लिम विरोधी बनाना, और दो, डा. आंबेडकर को हिन्दूवादी बनाना. वैसे, उन्हें मुस्लिम-विरोधी बनाना भी हिन्दूवादी बनाना ही है. यह काम वो नब्बे के दशक से ही कर रहे हैं.

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1996 में मैंने “डा. आंबेडकर को नकारे जाने की साजिश” किताब लिख कर आरएसएस के इस एजेंडे का खंडन किया था. उनका सबसे खतरनाक प्रचार, जिसे वे आज भी जोरशोर से कह रहे हैं, वह यह है कि डा. आंबेडकर ने अपने संघर्ष की प्रेरणा भगवद्गीता से ली थी. इस संबंध में 7 दिसम्बर 1944 की वह कतरन आज भी देखी जा सकती है, जिसे फ्री प्रेस आफ इंडिया ने जारी किया था. उसमें के. सुब्रामणियम ने लिखा है, “डा. आंबेडकर ने गीता के अध्ययन में पन्द्रह वर्ष व्यतीत किये हैं. उनकी खोज यह है कि गीता का लेखक या तो पागल था, या मूर्ख था.” भला, ऐसा व्यक्ति गीता से क्या प्रेरणा लेगा?

अब नया शगूफा यह छोड़ा गया है कि डा. आंबेडकर पर रामानुजाचार्य का प्रभाव पड़ा था. एक झूठ को अगर हजार बार हजार लोग एक साथ बोलेंगे, तो वह लोगों को सच लगने लगता है. आरएसएस के झूठे एजेंडे का यही मकसद है. आरएसएस के सामने वह दलित समाज है, जो हिन्दू रंग में रंगा हुआ है और जिसका पढ़ाई-लिखाई से कोई वास्ता नहीं है. वह बस आंबेडकर की माला जपने वाला समुदाय है. ऐसा समुदाय आरएसएस के बहुत काम का है, क्योंकि वह उसका ब्रेनवाश आसानी से कर सकता है.

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रामानुजाचार्य जैसों के दर्शन पर डा. आंबेडकर की किताब “रिडिलस आफ हिन्दुइज्म” को ही पढ़ना काफी होगा. रामानुजाचार्य वह दार्शनिक थे, जिन्होंने ब्रह्म में सगुण को प्रवेश कराया है, और नाम, रूप, लीला, धाम, वर्ण, का मार्ग प्रशस्त किया है. यादव प्रकाश उनके गुरु थे, जिनसे उन्होंने वेदों की शिक्षा ली थी. ऐसे वेद्मार्गी, सगुण मार्गी और वर्ण मार्गी रामानुजाचार्य अम्बेडकर को प्रभावित करेंगे. ऐसा सोचना भी हास्यास्पद होगा.

एक क्षण को अगर मान भी लिया जाये, कि रामानुजाचार्य से डा. आंबेडकर प्रभावित हुए थे, तो फिर उन्होंने हिन्दूधर्म का परित्याग क्यों किया? वेद-विरोधी, वर्ण-विरोधी और ईश्वर-विरोधी बौद्धधर्म को क्यों अपनाया था? आरएसएस के लोग शायद इसका भी तोड़ निकाल ही रहे होंगे. 

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जाने-माने दलित चिंतक कँवल भारती की एफबी वॉल से.

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