जनसत्ता के संपादक ओम थानवी ने अपने फेसबुक वॉल पर आज लिखा कि.. ‘माना कि गुस्सा आ सकता है, पर आपसी गलतफहमियां लगता है चरम पर पहुँच गईं। दोनों खेमे जरूर कहीं न कहीं सीमाएं लांघ गए होंगे, पर उन्हें निपटा कर पार्टी को लाइन पर ले आना ही नेतृत्व की सफलता होता।
‘बहरहाल कोई गाली सहज या संसदीय है या नहीं, यह मुद्दा नहीं है; दरअसल स्वराज की बात के साथ यह भाषा सुहाती नहीं; इसलिए मेरी तरह बहुत मानते होंगे (शायद उनके मित्र और शुभेच्छु भी) कि इससे अरविन्द ने खुद को कुछ छोटा किया है। अपनी भाषा और बरताव की फिसलन मान लेते, तब भी भला था। समस्या से खुद दो-चार होते, प्यादों के जरिए नहीं। पर असल समस्या अहंकार की है, जिससे दूसरों को आगाह करना आसान है, खुद निर्वाह करना मुश्किल।
‘अगर सर्वोच्च नेता के नाते अरविन्द अपनी देर से सुधारते भी हैं तो उसका क्या लाभ होगा? स्टिंग क्यों किया या दिखाया गया, यह उतना अहम नहीं; राजनीति में यह धंधा सदा चलता रहेगा। अच्छी सरकार चलाना एक बात है, पार्टी अच्छे से चलाना दूसरी – ‘अच्छे से’ में दुश्मनों, षड्यंत्रकारियों से निपटने के लिए भी कुछ नए तरीके खोजने-आजमाने होते हैं। यह भाषा, ये तरीके बहुत बोदे हैं। सब ऐसा करते हैं कहने से काम नहीं चलेगा। ‘आप’ को अलग कैसे जाहिर और साबित करेंगे – निरंतर कसौटी यह है। यह टूट कोई सबक देगी या मौजूदा तौर-तरीकों के बीच सिलसिला बन जाएगी? वक्त बताएगा।’
उधर, आम आदमी पार्टी की राष्ट्रीय परिषद की दिल्ली में बैठक शुरू हो चुकी है। इससे पहले बैठक स्थल के बाहर पार्टी के नेता योगेंद्र यादव के ख़िलाफ़ नारेबाज़ी और धक्कामुक्की हुई। वहीं योगेंद्र यादव धरने पर बैठ गए। बाद में धरना ख़त्म कर वह बैठक में शामिल होने चले गए। वह यह कहते हुए धरने पर बैठे थे कि जब तक उन सब लोगों को राष्ट्रीय परिषद की बैठक में जाने नहीं दिया जाता जिनके पास न्योता है, तब तक वह धरने पर रहेंगे।
योगेंद्र ने अपने ट्विटर पर पार्टी के लोकपाल एडमिरल (सेवानिवृत्त) एल रामदास की एक चिट्ठी डाली है, जिसमें रामदास ने कहा है कि उन्हें बैठक में आने से मना कर दिया गया है। रामदास बैठक में हिस्सा लेने के लिए महाराष्ट्र से दिल्ली आए हैं।