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विरल प्रजाति के पत्रकार-लेखक अशोक सेकसरिया नहीं रहे

Priyankar Paliwal : अशोक सेकसरिया नहीं रहे. दैनिक हिंदुस्तान, जन (समाजवादी पार्टी की पत्रिका), दिनमान तथा वार्ता से जुड़े रहे अशोक जी विरल प्रजाति के पत्रकार-लेखक थे. अब वैसे लोग नहीं दिखते. उन्होंने जन-पक्षधर पत्रकारिता की. अपना नाम छिपाकर गुणेन्द्र सिह कम्पनी के नाम से कहानियां लिखीं. युवा लेखकों के तो वे अघोषित संरक्षक थे. लॉर्ड सिन्हा रोड का उनका घर एक्टिविस्टों और लेखकों की शरणस्थली रहा करता था.

<p>Priyankar Paliwal : अशोक सेकसरिया नहीं रहे. दैनिक हिंदुस्तान, जन (समाजवादी पार्टी की पत्रिका), दिनमान तथा वार्ता से जुड़े रहे अशोक जी विरल प्रजाति के पत्रकार-लेखक थे. अब वैसे लोग नहीं दिखते. उन्होंने जन-पक्षधर पत्रकारिता की. अपना नाम छिपाकर गुणेन्द्र सिह कम्पनी के नाम से कहानियां लिखीं. युवा लेखकों के तो वे अघोषित संरक्षक थे. लॉर्ड सिन्हा रोड का उनका घर एक्टिविस्टों और लेखकों की शरणस्थली रहा करता था.</p>

Priyankar Paliwal : अशोक सेकसरिया नहीं रहे. दैनिक हिंदुस्तान, जन (समाजवादी पार्टी की पत्रिका), दिनमान तथा वार्ता से जुड़े रहे अशोक जी विरल प्रजाति के पत्रकार-लेखक थे. अब वैसे लोग नहीं दिखते. उन्होंने जन-पक्षधर पत्रकारिता की. अपना नाम छिपाकर गुणेन्द्र सिह कम्पनी के नाम से कहानियां लिखीं. युवा लेखकों के तो वे अघोषित संरक्षक थे. लॉर्ड सिन्हा रोड का उनका घर एक्टिविस्टों और लेखकों की शरणस्थली रहा करता था.

अपने और अपने रहन-सहन के बारे में अशोक जी इतने बेपरवाह थे कि किसी को यह आभास ही नहीं होता था कि वे पद्मभूषण से सम्मानित स्वतंत्रता-सेनानी सेठ सीताराम जी सेकसरिया जैसे जगत्प्रसिद्ध आदमी के बेटे हैं जिनके समाजसुधार और स्त्री-शिक्षा के क्षेत्र में गए कार्यों के गांधी जी भी प्रशंसक थे. कलकत्ता की शायद ही कोई तत्कालीन सामाजिक-सांस्कृतिक-शैक्षिक संस्था हो जिसकी स्थापना में उनका योगदान न हो. श्री शिक्षायतन कॉलेज, भारतीय भाषा परिषद, विश्वभारती का हिंदी भवन …. कितनी ही संस्थाएं. नवलगढ़ अशोक जी के मन का कमजोर कोना था. नवलगढ से संबंध रखने के कारण अशोक जी का मुझ पर विशेष स्नेह था. जब मिलते थे तो नवलगढ़ के बारे में बात ज़रूर करते थे. शेखावाटी का यह कस्बा उनका पैतृक स्थान था. मेरे लिए भी कलकत्ता में एक छोटा-सा कोना था नवलगढ का जो अब नहीं रहा. अशोक जी को विनम्र श्रद्धांजलि!

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Ashutosh Kumar : एक युग अपने पंख समेट रहा है। दस-बारह की उम्र रही होगी जब हिन्दुस्तान में अशोक जी का एक लेख पढ़ा था। आपातकाल के सन्दर्भ में उस लेख में आज़ादी के तीन दशकों की समीक्षा की गई थी। वह लेख की याद आज भी ताज़ा है। चिंतन की वह गहराई और स्पस्टता हैरान कर देने वाली थी। अनंतर सेकसरिया जी का लिखा और उन पर लिखा यत्किंचित पढ़ने को मिलता रहा लेकिन अधिकतर पर्दे के पीछे से ही उनकी मौजूदगी अपने होने का अहसास दिलाती रही। न कभी मुलाक़ात हुई न पत्राचार। ईमानदारी और साहस के बिना समझ की स्पस्टता हासिल नहीं हो सकती -ये हमने सेकसरिया जी से सीखा। गुरु मान कर उन्हें अंतिम प्रणाम कहता हूँ।

प्रियंकर पालीवाल और आशुतोष कुमार के फेसबुक वॉल से.

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