अमीश राय-
मुझे अपनी अबतक की पत्रकारिता में लिखी गई जिस रिपोर्ट पर सबसे अधिक अफ़सोस है वो रिपोर्ट है अतिक्रमण के ख़िलाफ़. झारखंड में काम करने के दौरान मैंने अतिक्रमण को लेकर जब रिपोर्ट्स लिखीं तो हाई कोर्ट ने उनका स्वतः संज्ञान ले लिया. राज्य सरकार को आदेश हुआ कि सारे अतिक्रमण हटाए जायें.
फिर रिपोर्ट्स के ज़रिए मेरी बातचीत राँची के तत्कालीन डीसी से होने लगी. यहाँ उनका नाम देना ज़रूरी नहीं. हमारी कभी मुलाक़ात नहीं हुई. सिर्फ़ फ़ोन पर बात हुई. मैं खबरें लिखता रहा, अतिक्रमण टूटते रहे.
एक रात सबसे बड़ा अतिक्रमण हटाया गया तो मैं मौक़े पर रिपोर्ट करने गया. बिलखते लोग, रोती महिलाएँ, चीखते बच्चे. पूरे माहौल में सिर्फ़ विध्वंस ही विध्वंस.
मुझे लगा कि ये क्या पाप मैंने कर डाला. जिन लोगों को राज्य आजीविका नहीं दे सकता, जिन्हें एक छत नहीं दे सकता, उन्होंने मुश्किल से एक दुनिया बनाई और मैंने अनचाहे वो दुनिया उजाड़ने में सत्ता की मदद कर दी.
आप यक़ीन मानिए मुझे आज भी वो दृश्य अंदर से हिला देता है. मैं ईश्वर से अपने उस गुनाह की माफ़ी आज भी माँगता हूँ.
पता नहीं आपको कैसे हंसी आ रही है. पता नहीं आप जो खुद को धार्मिक बताते हैं कैसे इस अमानवीय काम पर खुश हो सकते हैं. पता नहीं आप जब ईश्वर की अदालत में खड़े होंगे (अगर कहीं वो अदालत है तो) तो आप उसे क्या जवाब देंगे.
जिस धतकर्म के सामने चुप्पी शर्मनाक है उसके आगे आप तो ठहाके लगा रहे हैं. आपको-मुझको ईश्वर माफ़ नहीं करेगा, इसकी गारंटी तो मैं लेता हूँ.