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मजीठिया वेज बोर्ड : महज 20j ही नहीं और भी हैं खतरे

मजीठिया वेज बोर्ड को लेकर 19 जुलाई को माननीय सुप्रीम कोर्ट का जो आदेश आया है, उसमें पांच राज्यों के बैच को विस्तृत सुनवाई के लिए चुना गया है। इनमें उत्तर प्रदेश, हिमाचल, उत्तराखंड, नागालैंड और मणिपुर राज्य शामिल हैं। यहां असमंजस की स्थिति यह है कि इस आदेश में माननीय न्यायालय ने सिर्फ 20j को बहस का मुद्दा घोषित किया है। हालांकि अधितर बड़े अखबारों ने इसी 20j के सहारे अपने कर्मचारियों से जबरन हस्ताक्षर करवा कर मजीठिया वेज बोर्ड लागू करने से बचने की नाकाम कोशिश की है। वहीं कई अखबारों ने इसके अलावा भी कई तरह के हथकंडे अपनाए हैं।

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मजीठिया वेज बोर्ड को लेकर 19 जुलाई को माननीय सुप्रीम कोर्ट का जो आदेश आया है, उसमें पांच राज्यों के बैच को विस्तृत सुनवाई के लिए चुना गया है। इनमें उत्तर प्रदेश, हिमाचल, उत्तराखंड, नागालैंड और मणिपुर राज्य शामिल हैं। यहां असमंजस की स्थिति यह है कि इस आदेश में माननीय न्यायालय ने सिर्फ 20j को बहस का मुद्दा घोषित किया है। हालांकि अधितर बड़े अखबारों ने इसी 20j के सहारे अपने कर्मचारियों से जबरन हस्ताक्षर करवा कर मजीठिया वेज बोर्ड लागू करने से बचने की नाकाम कोशिश की है। वहीं कई अखबारों ने इसके अलावा भी कई तरह के हथकंडे अपनाए हैं।

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यह बात तो तय है कि मजीठिया वेज बोर्ड के पैरा 20j के प्रावधान वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट को दरकिनार करके लागू किए गए हैं। इस पैरा का कम वेतन के लिए इस्तेमाल किए जाने के चलते निरस्त होना या व्याख्या होना तय है मगर इसके अलावा मैं जो अन्य तीन मुख्य खतरों की बात कर रहा हूं, ये खतरे हमारा पीछा छोडऩे वाले नहीं हैं। अगर इन्हें भी 23 अगस्त से शुरू हो रही राज्यों की बैच आधारित सुनवाई के दौरान नहीं उठाया गया तो 20j पर मात खाने वाले अखबार इन को ढाल बनाकर केस उलझा सकते हैं। लिहाजा इनके बारे में अपने वकीलों के माध्यम से कोर्ट का ध्यान आकर्षित करने की जरूरत है। ये तीन मुद्दे इस प्रकार से हैं:

1. सकल राजस्व की गणना में हेराफेरी

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20j के बाद सबसे बड़ा इश्यू या मुद्दा सकल राजस्व/समाचार स्थापना की कुल वार्षिक आमदनी का है। अमर उजाला सरीखे अखबारों ने अपने सभी प्रकाशन केंद्रों या यूनिटों को सकल राजस्व को कम करने के लिए अलग-अलग बांट दिया है। इसके तहत जहां यह कंपनी सकल राजस्व के मामले में श्रेणी दो की समाचार स्थापना में आती थी, तो वहीं राजस्व के मामले में केंद्रों को विभाजित करके सभी यूनिटें श्रेणी पांच में डाल दी गईं। इससे वेतनमान का गणना इस तरह की गई कि नया वेतन पुराने वेतन के बराबर ही बने। हालांकि इसके चलते कुछ विभागों के नवनियुक्त कर्मचारियों को इसका कुछ फायदा हुआ, मगर अधिकार पुराने कर्मचारी और खासकर संपादकीय विभाग के कर्मियों को इससे कोई लाभ नहीं हुआ। अमर उजाला की इस हेराफेरी के खिलाफ मैने हिमाचल प्रदेश श्रम विभाग में शिकायत की थी। इस पर समझौता वार्ता भी हुई। इसमें अमर उजाला ने इंडियन एक्सप्रेस बनाम भारत सरकार के वर्ष 1995 में आए एक निर्णय की प्रति दिखाकर श्रम विभाग को गुमराह करने की कोशिश भी की थी। जबकि वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट की धारा 10(4) व 2(d) में स्पष्ट लिखा गया है कि वेजबोर्ड का निर्धारण समाचार स्थापना की सकल आय के आधार पर होगा। इतना ही नहीं इस आय में संबंधित समाचार स्थापना द्वारा अन्य प्रकार से अर्जित की गई आय भी शामिल होगी। वहीं एक्ट में शामिल शेड्यूट के तहत परिभाषित धारा 2डी में भी इस बारे में स्पष्ट किया गया है। अमर उजाला जैसे अखबार वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट के प्रावधानों का उल्लंघन करके यह झूठा दावा कर रहे हैं कि उन्होंने माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को लागू कर दिया है। यह बात अभी तक माननीय कोर्ट के समक्ष नहीं उठाई जा सकी है। सारा मामला 20j पर ही घुमा कर रख दिया गया है।

2. नए या पुनरीक्षित वेतनमान में प्रारंभिक वेतनमान का निर्धारण

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कई समाचारपत्र प्रतिष्ठानों ने नए या पुनरीक्षित वेतनमान में प्रारंभिक या बेसिक का निर्धारण करने में भी मजीठिया वेज बोर्ड के पैरा 20 के विभिन्न खंडों में किए गए प्रावधानों की धज्जियां उड़ाते हुए किया है। उदाहरण के तौर पर अमर उजाला ने पहले तो अपनी सभी यूनिटों को अलग-अलग बांट कर समाचार पत्र का सकल राजस्व कम दिखाया और श्रेणी दो के बजाय श्रेणी पांच में आकर वेतनमान की गणना की। इसके बाद नए वेतनमान के तहत बेसिक की गणना में भी हेराफेरी कर दी।

मजीठिया वेजबोर्ड में पुनरीक्षित यानि नए वेतनमान के तहत प्रारंभिक वेतन/बेसिक का निर्धारण करने का फार्मूला पैरा 20 में स्पष्ट तौर पर दिया गया है। इसके तहत प्रारंभिक वेतन यानि बेसिक की गणना पहले से कार्यरत कर्मचारी के 11 नवंबर 2011 से पूर्व मनीसाना वेजबोर्ड के तहत दिए जा रहे बेसिक, डीए और इस बेसिक पर दिए जा रहे 30 फीसदी अंतरिम राहत को जोड़ कर तय किया जाएगा। इन्हें वर्तमान परिलब्धियां / एग्जिस्टिंग अमोल्युमेंट्स कहा गया। अब सबएडिटर कम रिपोर्टर पद के तहत मुझे नवंबर, 2011 से पूर्व जो वेतन मिल रहा था। उसके आधार पर मेरी वर्तमान परिलब्धियां बेसिक 7345 + डीए 8111 + अंतरिम राहत 2204 रुपये जोड़ कर 17660 रुपये बन रही थीं।

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अब पैरा 20 का खंड ग/c कहता है कि अगर पहले से तैनात कर्मी की वर्तमान आहरित परिलब्धियां मजीठिया वेजबोर्ड के तहत दिए गए वेतनमान के न्यूनतम से अधिक हैं, तो उसके बेसिक का निर्धारण पुनरीक्षित वेतनमान के अगले चरण में किया जाएगा। यानी नए वेतनमान के तहत नया बेसिक 17660 रुपये से अधिक बनना था, मगर अमर उजाला ने इस खंड के प्रावधान का उल्लंघन करते हुए 17660 से कहीं कम करते हुए 11275 रुपये कर दिया। इस तरह यहां भी हेराफेरी की गई। इसी तरह अन्य अखबारों ने भी इस खंड की गलत परिभाषा गढ़ कर कर्मियों से धोखा किया है।

3. डीए प्वाइंट का निर्धारण

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मजीठिया वेज बोर्ड में डीए/महंगाई भत्ते का निर्धारण अखिल भारतीय औसत 167 अंकों के आधार पर तय करने का फार्मूला दिया है। वहीं अधिकतर समाचरपत्रों ने इस अंक को मनमाने तरीके से बढ़ाकर 189 कर दिया है। अमर उजाला ने इस प्रावधान का भी उल्लंघन किया है।

इस तरह मजीठिया वेज बोर्ड को माननीय सुप्रीम कोर्ट के सात फरवरी, 2014 के आदेशों के तहत लागू करने का झूठा दावा कर रहे अमर उजाला जैसे समाचारपत्रों ने कई तरीके से इसके प्रावधानों और माननीय अदालत के आदेशों का उल्लंघन किया है। ये सारी बातें मैने श्रम विभाग हिमाचल के अधिकारियों के समक्ष पूरे साक्ष्यों व नियमों/प्रावधानों का हवाला देते हुए रखी थीं, मगर विभाग ने कोई कार्रवाई नहीं की।

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संभावित आशंका

मौजूदा मामले में अवमानना के आरोपी बनाए गए देश भर के अखबारों ने मजीठिया वेजबोर्ड देकर एक जैसा ही अपराध किया है, मगर यह अपराध अलग-अलग हथकंडे अपनाकर किया गया है। अब तक जो बात सामने आ रही है, उसमें महज पैरा 20जे ही उछाला जा रहा है। बाकी की उपरोक्त तीन बातों को कोर्ट के समक्ष नहीं लाया जा सका है। ऐसे में अगर 20जे के अलावा बाकी तीन मुद्दों को एक साथ नहीं उठाया गया तो को मामला लंबा खिंचेगा। यह हो सकता है कि इसके तहत प्रभावित याचिकाकर्ता खूश हो जाएं, मगर वे यह बात जान लें कि उनके अखबार बाकी तीन मुद्दों का फायदा उठाकर मामले को उलझा सकते हैं। या यह भी हो सकता है कि बाकी मुद्दों बाद में ध्यान में लाए जाने पर कोर्ट इन पर फिर से अलग-अलग राज्यों को बुलाकर सुनवाई करने को विवश हो जाए। इससे अनावश्यक देरी होगी। इससे होने वाली देरी से प्रताडि़त किए जा रहे कर्मियों की परेशानियां और बढ़ जाएंगी।

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रविंद्र अग्रवाल
वरिष्ठ पत्रकार
हिमाचल प्रदेश
संपर्क: 9816103265
mail: [email protected]

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