मजीठिया : यह है 16 नवंबर, 2016 की तारीख का कोर्ट आर्डर

जागरण प्रकाशन लिमिटेड की ओर से सीनियर काउंसिल श्री अनिल दीवान ने उपस्थित होकर मामले के प्रतिभागी द्वारा तैयार की गईं कानूनी प्रस्तुतियों पर विचार किए जाने को लेकर प्रारंभिक आपत्ति दर्ज करवाई गई कि यह नए सवाल उठाती हैं जो इस न्यायालय द्वारा पारित आदेशों के दायरे से बाहर जा रही हैं, इस संबंध में अवज्ञा का आरोप लगाया गया। श्री दीवान ने आगे कहा कि अवमानना के अधिकार क्षेत्र की कसरत में इस तरह के सवालों पर निर्णय नहीं लिया जा सकता है।

मजीठिया : श्रमायुक्तों को शक्तियां देकर रिकवरी की गई आसान, शिकायतें निपटाने को छह सप्ताह का समय

अवमानना मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपने ताजा आदेश में 23 अगस्त की सुनवाई के दिन उपस्थित चार राज्यों के श्रमायुक्तों को वेजबोर्ड लागू करवाने और शिकायतकर्ताओं की सुनवाई स्वयं करने के आदेश जारी किए हैं। वहीं 20जे के मामले में उत्साहित कर्मियों को इन आदेशों से निराशा जरूर हुई है, मगर कोर्ट ने साफ कर दिया है कि अगली सुनवाई के दिन यानि 04 अक्तूबर, 2016 को इस पर प्रबंधन का पक्ष सुनने के बाद निर्णय दे दिया जाएगा। हालांकि सुनवाई के दौरान जिस प्रकार से जज ने जागरण प्रबंधन के वकील को 20जे के संबंध में स्पष्ट कर दिया है, उससे यह बात साफ हो चुकी है कि अब अगली बार 20जे पर फैसला कर्मचारियों के पक्ष में ही रहेगा।

मजीठिया वेज बोर्ड : महज 20j ही नहीं और भी हैं खतरे

मजीठिया वेज बोर्ड को लेकर 19 जुलाई को माननीय सुप्रीम कोर्ट का जो आदेश आया है, उसमें पांच राज्यों के बैच को विस्तृत सुनवाई के लिए चुना गया है। इनमें उत्तर प्रदेश, हिमाचल, उत्तराखंड, नागालैंड और मणिपुर राज्य शामिल हैं। यहां असमंजस की स्थिति यह है कि इस आदेश में माननीय न्यायालय ने सिर्फ 20j को बहस का मुद्दा घोषित किया है। हालांकि अधितर बड़े अखबारों ने इसी 20j के सहारे अपने कर्मचारियों से जबरन हस्ताक्षर करवा कर मजीठिया वेज बोर्ड लागू करने से बचने की नाकाम कोशिश की है। वहीं कई अखबारों ने इसके अलावा भी कई तरह के हथकंडे अपनाए हैं।

स्व. अतुल जी के साथ चले गए अमर उजाला के सिद्धांत

पिछले दिनों अमर उजाला के नवोन्मेषक स्व. अतुल माहेश्वरी जी की पुण्यतिथि थी। अमर उजाला ने उनको याद करने की औपचारिकता भी निभाई, मगर सवाल यह है कि क्या अमर उजाला की नई मैनेजमेंट के दिमाग में उनकी नीतियां व दूरगामी सोच अभी अमर उजाला में जिंदा या है या फिर उनके साथ ही उनके मूल्यों का भी देहावसान हो चुका है। वैसे मौजूदा परिस्थितियों का आकलन करें, तो ऐसा लग नहीं रहा कि उनके जाने के बाद उनके द्वारा स्थापित सिद्धांतों तथा मूल्यों को पोषित किया जा रहा है। अब हालात बदल चुके हैं। शायद ऐसा होना भी चाहिए, क्योंकि हर व्यक्ति एक जैसा नहीं होता, मगर एक पद की परंपरा व मूल्य एक जैसे हो सकते हैं। ऐसा होने से ही तो आदर्श स्थापित होते हैं। अब असल बात यह है कि स्व. अतुल जी के निधन के बाद अमर उजाला में स्थापित मूल्यों का पतन होता जा रहा है या यह कहें कि उनकी हत्या कर दी गई है या नहीं।

अमर उजाला ने हिमाचल हाईकोर्ट में दाखिल कर दिया अपना जवाब

आखिर अमर उजाला ने सात महीनों से अपनाए जा रहे टालमटोल रवैये के बीच हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट की सख्ती के चलते मजीठिया वेज बोर्ड से संबंधित मामले में अपना जवाब दाखिल कर दिया है। रविंद्र अग्रवाल की याचिका पर 11 मार्च को कोर्ट में सुनवाई हुई। इस दौरान हालांकि अमर उजाला की रिप्लाई की फाइल आन रिकार्ड नहीं आ पाई थी, मगर अमर उजाला के वकील ने कोर्ट को बताया कि जवाब दाखिल कर दिया गया है। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने रविंद्र के वकील को रिज्वाइंडर फाइल करने के लिए तीन सप्ताह का समय दिया है। अगली तारीख एक अप्रैल को रखी गई है।

मजीठिया वेज बोर्ड संघर्ष : अमर उजाला को जवाब दायर करने का अब आखिरी मौका, भारत सरकार भी पार्टी

अमर उजाला हिमाचल से खबर है कि यहां से मजीठिया वेज बोर्ड के लिए लड़ाई लड़ रहे प्रदेश के एकमात्र पत्रकार को सब्र का फल मिलता दिख रहा है। अमर उजाला के पत्रकार रविंद्र अग्रवाल की अगस्त 2014 की याचिका पर सात माह से जवाब के लिए समय मांग रहे अमर उजाला प्रबंधन को इस बार 25 फरवरी को हुई सुनवाई के दौरान कोर्ट ने आखिरी बार दस दिन में जवाब देने का समय दिया है। अबकी बार कोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट कर दिया है कि अगर इस बार जवाब न मिला तो अमर उजाला प्रबंधन जवाब दायर करने का हक खो देगा और कोर्ट एकतरफा कार्रवाई करेगा।

मजीठिया की जंग : जो लेबर इंस्पेक्टर कभी अखबार दफ्तरों की तरफ झांकते न थे, वे आज वहां जाकर जानकारी मांगने को मजबूर हैं

साथियों,  हिमाचल प्रदेश में मजीठिया वेज बोर्ड लागू करने को लेकर मेरे द्वारा बनाया गया दबाव काम करता नजर आ रहा है। हालांकि श्रम विभाग हरकत में तो आया है, मगर अखबार प्रबंधन के दबाव के भय और सहयोग न करने की आदत के चलते श्रम निरीक्षकों को वांछित जानकारी नहीं मिल पा रही है। राहत वाली खबर यह है कि जो श्रम निरीक्षक कभी अखबारों के दफ्तरों की तरफ देखने से भी हिचकिचाते थे, वे आज वहां जाकर जानकारी मांगने को मजबूर हैं। जैसे की आपको ज्ञात है कि मैं मजीठिया वेज बोर्ड के खिलाफ मई २०१४ से लड़ाई लड़ रहा हूं। श्रम विभाग में शिकायतों व आरटीआई के तहत जानकारियां मांगने का दौर जारी है। हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय में पिछले सात माह से मामला चल रहा है। हाल ही में माननीय सुप्रीम कोर्ट में भी लड़ाई पहुंचा दी है।