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पत्रिका ने समाचार संपादक आवेश तिवारी सहित कई पत्रकारों को नौकरी से निकाल दिया, पढ़ें पत्र और प्रतिक्रिया

छत्तीसगढ़ में शायद पत्रिका अखबार की हालत बेहद खराब है. इस अखबार की विश्वनीयता तो तब ही घट गई थीं जब छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार थीं. पहले इस अखबार ने भाजपा और उसकी नीतियों के खिलाफ जमकर तेवर दिखाए और फिर बाद में जो कुछ हुआ वह किसी से छिपा नहीं है. इस अखबार में पिछले कुछ महीनों में कई कर्मचारियों और पत्रकारों को नौकरी से बाहर कर दिया गया है. कई जगह के ब्यूरो कार्यालय बंद कर दिए गए है.

कल 17 जून 2020 को भी समाचार संपादक आवेश तिवारी सहित कुछ अन्य पत्रकारों को नौकरी से निकाल दिया गया. आवेश ने मेरे साथ काम किया है इसलिए मैं उन्हें जानता हूं. वे मुखर रहे हैं और सांप्रदायिक शक्तियों से लड़ते रहे हैं. अब अखबार में जो लोग बचे हैं उनके बारे में मुझे कुछ नहीं कहना है, लेकिन आवेश ने अपनी व्यथा मुझे लिख भेजी हैं. उनकी यह व्यथा यह बताने के लिए काफी है कि अखबार की दुनिया में जो कुछ घट रहा है वह कितना भयावह और घिनौना है.

मैं राजकुमार सोनी यहां स्पष्ट करना चाहूंगा कि साथी आवेश तिवारी की यह व्यथा भक्त श्रेणी के पत्रकारों के लिए नहीं है. कृपया भूलकर भी पढ़ने की जहमत न उठाए.

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पढ़ें आवेश तिवारी की व्यथा….

आवेश तिवारी

मेरे लिए खबरनवीसी केवल रोजी रोटी कमाने का जरिया कभी नही रही। खबर कवरेज करते वक्त मेरी आँखों की चमक बढ़ जाती है, मेरे चलने का बोलने का तरीका बदल जाता है। मेरे लिए जर्नलिज्म मेरी पहली मोहब्बत है यह वो तरीका है जिससे मैं इस समाज से आप सबसे जुड़ता हूं , मुझे जानने वाले सभी लोग इस बात को जानते हैं।

कई अखबारों से होता हुआ मैं पिछले पांच वर्षों से राजस्थान पत्रिका में बतौर समाचार सम्पादक का काम कर रहा था लेकिन कल अचानक शाम को मेल मिला कि हम आपकी सेवा डिस्कन्टीन्यू कर रहे हैं। मुझे इसका अंदाजा पहले से था लेकिन हम चाहते थे कि पहल उनकी ओर से हो। निस्संदेह ऐसा करने के पीछे मेरी कई विवशताएँ थी।

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मोदी 2.0 और छत्तीसगढ़, एमपी एवम राजस्थान से भाजपा सरकार का जाना ऐसी घटना थी जिसने मीडिया को बहुत प्रभावित किया। मोदी की अप्रत्याशित जीत से न केवल टीवी चैनल अभिभूत हो गए बल्कि अखबारों को भी केंद्र सरकार की जय जयकार करनी पड़ी। संपादकीय लिख दिया गया जन गण मन अधिनायक जय हो। मैं जानता था कि केंद्र में मोदी का दोबारा आना नफरत की जीत है। लेकिन यह भी जानता था कि पत्रकारिता पहले जैसी नही रह जाएगी। मुझसे उम्मीद की जाने लगी कि 15 वर्षों बाद सत्ता में लौटी ग्रामीणों, आदिवासियों, अल्पसंख्यकों की सरकार के खिलाफ तो लिखूं लेकिन मोदी सरकार के खिलाफ खामोश रहूं। लेकिन मुझे तो सब कुछ लिखना था।

पुलवामा हमले के बाद जो न्यूज रूम में माहौल था वो बेहद डरावना होता जा रहा था, हमसे कहा गया कि सरकार के खिलाफ लिखना मतलब मतलब सेना के खिलाफ लिखना,मतलब राष्ट्रद्रोह।

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फिर 11 महीने पहले एक रोज मुझसे कहा गया अब आप खबरे नही लिखेंगे। हमने पूछा क्यों ? तो मुझे कोई जवाब नही मिला। मुझे लगा मेरा सब कुछ खत्म हो गया। हमने फिर सोशल मीडिया पर लिखना शुरू किया। खबरें कैसे भी आप तक पहुंचानी थी।

लॉकडाउन के वक्त समझ मे आ गया था हालात और बुरे होंगे। जानबूझ कर तब्लीगी जमात के बहाने मुसलमानों को अपराधी बनाया जा रहा था ,हमने कहा यह ठीक नही है तो कहा गया खामोश रहें।हमने कहा देश के मजदूरों की कहानी लिखी जाएं, अस्पतालों के हालात लिखे जाएं, दवाएं और पीपीई किट की अनुपलब्धता के बारे में लिखा जाए तो पता चला कि आदरणीय मोदी जी ने संपादकों के साथ बैठक कर ली है। हम कुछ नही कर सकते थे, कुछ नही लिख सकते थे। मेरे पास रोज कई साथियों के फोन आते रहे कि मेरी नौकरी अचानक चली गई, मुझे ठेके पर काम करने को कहा जा रहा, कोई कहता भईया मैं सुसाइड कर लूंगा, कोई कहता घर कैसे बताऊंगा? मैं किसी की मदद नही कर पाया। फिर कल मुझे सीधे तात्कालिक प्रभाव से सेवा समाप्ति का पत्र थमा दिया गया।

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मैं हारा नही हूँ मैं हारूँगा भी नही आज मैं अभिभूत हूं कि आप सब कितना प्यार करते हैं मुझको। कितनी बड़ी ताकत हैं आप सब मेरे लिए आपको अंदाजा नही है। यात्रा में हूं, खबरों के पीछे पीछे हूं। चार महीने से अपने छोटे बच्चे का चेहरा नही देखा, उसे देखकर दो तीन दिन में वापस आता हूँ। अब लड़ाई केवल मोदी से नही मीडिया में छिपे सैकड़ो मोदियों से भी होगी। ताल ठोंक कर होगी। आप सब साथ रहिएगा।

  • आवेश तिवारी

छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ पत्रकार राजकुमार सोनी की एफबी वॉल से.


कोरोना काल में आवेश तिवारी समेत हजारों मीडियाकर्मियों की छंटनी पर एक विस्तृत और खोजपरक रिपोर्ट का प्रकाशन बेबाक पत्रकार अभिषेक श्रीवास्तव ने अपने पोर्टल ‘जनपथ’ पर किया है, इसे भी पढ़ें-

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कोरोना की आड़ में मीडिया को ‘पत्रकारों’ से सैनिटाइज़ करने की साज़िश है इस दौर की छंटनी!

3 Comments

3 Comments

  1. Amit Mishra

    June 18, 2020 at 9:43 pm

    Communist hai yah aadmi, patrakarita ME bhi apna agenda chala raha tha. Jab 4 saal pahle Majithya wage board mamle ME Patrakar sathiyo ke sath khada hone ko kaha tha Tab isko Seth ki catukarita karna acha lagta tha. Ab jab gullu ne pet par laat mari to kah raha hai, likhane nahi diya gaya. Ary jab likhane nahi Diya ja raha tha Tab HI chor deta. Fattu, patrakarita ME aadmi ko nutreal hona cahei, na ki kishi ak ka virodhi. Virodh apne ghar par rakh kar sach ki patrakarita honi cahei, jo iske bas ki baat nahi hai. Jo apne Patrakar sathiyo ka sath nahi DE sakta, wo janta ka kya khak sath dega.

  2. Prem Mishra

    June 19, 2020 at 12:49 pm

    आदेश तिवारी की नौकरी गई यह गलत है. लेकिन यह भी सच है की अमित मिश्रा जी भी गलत नहीं कह रहे हैं. असल बात यह है की पत्रिका में नौकरी करने वाला गुलाब कोठारी का गुलाम बन जाता है. गुलाब कोठारी जब लात मारते हैं तब लोगों को सिद्धांतों की याद आती है. आवेश तिवारी के सामने कितने ही जूनियर ओं को निकाला गया. तब उनकी जुबान नहीं फूटी थी. फिलहाल पूरे पत्रिका समूह की हालत खराब है. जबलपुर में तो हाहाकार मचा हुआ है. यहां पर करीब 15 दिन में 40 लोगों को निकाला जा चुका है. माननीय संपादक महोदय घर में मुंह छुपा कर बैठे हैं. उन्हें सिर्फ अपनी नौकरी की पड़ी है.

  3. Raj

    January 1, 2022 at 9:32 am

    Dalla hai bahut bada ye

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