मुंबई से प्रकाशित होने वाले समाचार पत्रों में एक से बढ़कर एक संपादक बैठे है। नौकरी की रेवड़ी बटती देख अपनों में ही बाट दिया। इसी तरह के एक मामले में खुलासा हुआ है क़ि मुम्बई से प्रकाशित हिंदी दैनिक यशोभूमि के संपादक आनंद राज्यवर्द्धन राज नारायण शुक्ला ने अपने तीन सगे भाइयों को नौकरी की रेवड़ी बंटवा दी है। मुम्बई के निर्भीक पत्रकार शशिकांत सिंह ने आरटीआई के जरिये मुम्बई के श्रम आयुक्त कार्यालय से ये जानकारी निकाली है।
इस उपलब्ध जानकारी के मुताबिक़ वर्किंग जर्नलिस्ट कटेगरी में काम करने वाले आनन्द राज्यवर्धन राजनारायण शुक्ला यशोभूमि समाचार पत्र में संपादक हैं। इनका कर्मचारी कोड पी पी 56 है। वर्किंग जर्नलिस्ट कटेगरी के ग्रुप 1a में इनको वेतन दिया जाता है। इस समाचार पत्र का प्रकाशन श्री अम्बिका प्रिंटर्स एन्ड पब्लिकेशन द्वारा किया जाता है। यशोभूमि में एडीएम के 6 ग्रुप में प्यून के पद पर सुनील कुमार राजनारायण शुक्ला की नियुक्ति की गयी है। सुनील का कर्मचारी कोड है पी पी 5282। अब आईये दो अन्य भाइयो का भी हाल चाल जान लें। आरटीआई से प्राप्त जानकारी के मुताबिक़ यशोभूमी में ही वर्किंग जर्नलिस्ट कटेगरी में प्रूफ रीडर पोस्ट पर अनिल कुमार राजनारायण शुक्ला और अरुण कुमार राजनारायण शुक्ला की नियुक्ति की गयी है। इनका कर्मचारी कोड है पी पी 545 और पी पी 59।
इन सभी भाइयो को मिलने वाले वेतन का विवरण मांगने पर श्रम आयुक्त कार्यालय ने दिसंबर 2014 तक प्रत्येक माह दी गयी कुल मासिक वेतन का जो विवरण उपलब्ध कराया है उसके मुताबिक अम्बिका प्रिंटर्स ने यशोभूमि के संपादक आनन्द राज्यवर्धन राज नारायण शुक्ला को दिसंबर 2014 तक प्रत्येक माह 53 हजार 500 रुपये वेतन दिए। इसी तरह प्यून पद पर कार्यरत सुनील कुमार राजनारायण शुक्ला को 17 हजार 770 रूपये कुल वेतन दिए गए प्रत्येक माह। इसी तरह प्रूफ रीडर पद पर कार्यरत अरुण और अनिल को क्रमशः 24 हजार 300 तथा 23 हजार 85 रुपये वेतन दिए गए है। फिलहाल इस मामले को श्रम आयुक्त कार्यालय ने काफी गंभीरता से लिया है और इन नियुक्तियों की जाँच का आदेश भी देने जा रही है। अगर ऐसा हुआ तो संपादक के भाइयो पर गाज गिरनी तय है। आपको बता दूँ की संपादक ने अपने कई और रिश्तेदारों व सगे संबंधियो में नौकरी की रेवड़ी बांटी है जिसे श्रम आयुक्त कार्यालय खंगालने जा रहा है।
शशिकांत सिंह
मुंबई
[email protected]
gopaljira
March 7, 2016 at 5:08 am
प्राइवेट संस्थान मे तो अपने विश्वसनीय लोग ही रखे जाते है और वे अपने रिश्तेदार भी हो सकते है ,इसमे बुराई क्या है